Air Quality in Delhi-NCR : वायु प्रदूषण से निपटने के लिए जापान में कई प्रयोग हुए हैं. इसमें से एक हाइड्रोजन फ्यूल तकनीक वहां काफी सफल भी रही है, जिससे हवा को साफ रखने में कामयाबी पाई गई है. आखिर क्या है ये हाइड्रोजन फ्यूल तकनीक



न्यूज जगंल डेस्क, कानपुर : दिल्ली और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का संकट खतरनाक स्थिति में है. हवा की ये हालत गंभीर बीमारियां दे सकती है. दिल्ली और एनसीआर में हवा की गुणवत्ता को देखते हुए कई कदम उठाए गए हैं. स्कूल बंद हो गए. आफिसों में जाने वाले लोगों से घर से ही काम करने को कहा गया है. दिल्ली एनसीआर के आसमान पर स्मॉग की गहरी चादर बिछी है. जापान भी कुछ सालों पहले ऐसी ही स्थितियों से दो-चार हुआ था लेकिन फिर उसने हाइड्रोजन फ्यूल तकनीक का इस्तेमाल करके काफी हद तक इस संकट पर काबू पा लिया है.
जापान की हाइड्रोजन फ्यूल आधारित टेक्नोलॉजी से दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण के लिए हमेशा से छुटकारा मिल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 3 दिसंबर तक का वक्त दिया है. इस दौरान सरकार जापान की टेक्नोलॉजी और उसके प्रभाव के बारे में अध्ययन कर कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी.
जापान यूनिवर्सिटी ने की है दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर रिसर्च
दो साल पहले सुप्नीम कोर्ट के सामने भी इस तकनीक के फायदे रखे गए थे. तब सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जापान की हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी के कुछ पॉइंट्स रखे थे. कोर्ट को बताया गया कि जापान यूनिवर्सिटी में इस पर रिसर्च चल रही है.
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का संकट बड़ा हो गया है
जापान यूनिवर्सिटी ने दिल्ली-एनसीआर को ध्यान में रखते हुए रिसर्च की है. उनका कहना था कि जापान की रिसर्च दिलचस्प है और इससे दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से हमेशा के लिए छुटकारा मिल सकता है. उन्होंने कोर्ट को जापान यूनिवर्सिटी में रिसर्च करने वाले रिसर्चर विश्वनाथ जोशी से मिलवाया. विश्वनाथ जोशी का कहना था कि हाइड्रोजन आधारित टेक्नोलॉजी के जरिए यहां के प्रदूषण को खत्म किया जा सकता है.
क्या है जापान की हाइड्रोजन फ्यूल टेक्नोलॉजी
जापान में प्रदूषण की भीषण समस्या थी. जापान ने हाइड्रोजन फ्यूल के जरिए अपने यहां के प्रदूषण को कम करने में सफलता पाई है. अब इसी हाइड्रोजन फ्यूल टेक्नोलॉजी के भारत में इस्तेमाल किए जाने की बात चल रही है. इस टेक्नोलॉजी में गाड़ियों के इंधन के तौर पर हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल किया जाता है.



हाइड्रोजन फ्यूल के इस्तेमाल से बाईप्रोडक्ट के तौर पर सिर्फ पानी उत्पन्न होता है. हाइड्रोजन फ्यूल से किसी भी तरह की जहरीली गैस नहीं निकलती है. जापान अपने पब्लिक ट्रांसपोर्ट में फ्यूल के तौर पर हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल करता है. इसकी वजह से वहां के प्रदूषण का स्तर काफी कम हुआ है. प्रदूषण से निपटने के लिए चीन और जर्मनी जैसे देश भी हाइड्रोजन फ्यूल का इस्तेमाल कर रहे हैं.
प्रदूषण से निपटने के लिए जापान में हुए कई प्रयोग
जापान में हाइड्रोजन फ्यूल को लेकर कई तरह के प्रयोग किए गए. हाइड्रोजन सप्लाई एंड यूटिलाइजेशन टेक्नोलॉजी के रिसर्च एसोसिएशन के साथ पार्टनरशिप करके जापान की स्थानीय सरकारों ने ने हाइड्रोजन टाउन बनाए. इन शहरों में फ्यूल के तौर पर हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल किया जाता है
प्रदूषण के स्तर पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है
जापान के एक शहर किटाकियुशु को हाइड्रोजन टाउन घोषित किया गया. इस शहर में हाइड्रोजन पावर की सप्लाई आवासीय और इंडस्ट्रियल इलाकों में होती है. पाइपलाइन के जरिए डायरेक्ट पावर सप्लाई की जाती है. ये स्ट्रैटेजी प्रदूषण से निपटने में इतनी कारगर रही कि अब किटाकियुशु इस स्ट्रैटेजी के जरिए प्रदूषण से निपटने में चीन, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों की मदद कर रहा है.
किटाकियुशु में प्रदूषण को लेकर लोगों को जागरुक करने का काम भी किया गया. वर्कर्स, कम्यूनिटी और कंपनियों के बीच प्रदूषण से निपटने के लिए टेक्नोलॉजी की जानकारी दी गई. प्रदूषण से निपटने में जापान के एक और शहर ने कामयाबी पाई. कावासाकी शहर में प्रदूषण से निपटने के लिए जापान का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट लगाया गया.
इस शहर में इंडस्ट्रियल लैंडफिल साइट थी. जापान ने अपने इस पूरे इलाको को चमका दिया. यहां इंडस्ट्रियल कचरे को रिसाइकिल करने का बिजनेस चल पड़ा. इन सब उपायों के जरिए जापान ने अपने यहां का प्रदूषण काफी हद तक कम कर लिया.