भारत के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक, कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर

यूं तो दक्षिण और उत्तर भारत में महालक्ष्मी माता के कई मंदिर है, जिनमें से कुछ तो बहुत ही प्राचीन है। मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है। इसी तरह महाराष्ट्र में अष्‍टलक्ष्मी और अष्टविनायक के मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। परंतु इस बार जानिए कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर के बारे में

News jungal desk : मुंबई से लगभग 400 किमी दूर कोल्हापुर महाराष्ट्र का एक जिला है। यहां धन की देवी लक्ष्मी का एक सुंदर मंदिर बना हुआ है. कोल्‍हापुर का यह श्री महालक्ष्मी मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। यदि इतिहास में दर्ज तथ्यों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्‍दी में चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने करवाया था। ऐसी मान्‍यता है कि इस मंदिर में स्‍थापित माता लक्ष्मी की प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी बताई जा रही है। मंदिर के अन्दर नवग्रहों सहित, भगवान सूर्य, महिषासुर मर्दिनी, विट्टल रखमाई, शिवजी, विष्णु, तुलजा भवानी आदि देवी देवताओं के भी पूजा स्थल बने हुए हैं। इन देवी देवताओं की प्रतिमाओं में से कुछ तो 11वीं सदी की भी बताई जा रही हैं। इसके अलावा मंदिर के आंगन में मणिकर्णिका कुंड पर विश्वेश्वर महादेव मंदिर भी बना हुआ है। 

मंदिर का स्‍थापत्‍य अत्‍यंत भव्‍य लगता है। एक काले पत्थर के मंच पर देवी महालक्ष्मीजी की चार हस्थों वाली प्रतिमा है, सिर पर मुकुट पहने हुए है। माता की प्रतिमा को बहुमूल्‍य गहनों से सजाया जाता है। उनका मुकुट भी लगभग चालीस किलोग्राम वजन का है जो बेशकीमती रत्‍नों से जड़ा हुआ है। काले पत्थर से निर्मित मां महालक्ष्मी की प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 3 फीट है। मंदिर की एक दीवार पर श्री यंत्र पत्थर पर उकेरा गया है। देवी की मूर्ति के पीछे पत्‍थर से बनी उनके वाहन शेर की प्रतिमा भी स्थित है। वहीं देवी के मुकुट में भगवान विष्णु के प्रिय सर्प शेषनाग का चित्र बना हुआ है । देवी महालक्ष्मी ने अपने चारों हाथों में गदा,ढाल, निम्बू फल ,पानपात्र लिए हुए हैं । निचले दाहिने हाथ में निम्बू फल, ऊपरी दायें हाथ में गदा कौमोदकी है जिसका सिरा नीचे जमीन से सटा हुआ है। ऊपरी बायें हाथ में एक ढाल और निचले बायें हाथ में एक पानपात्र है। इस मन्दिर में मां महालक्ष्मी पूर्व या उत्तर दिशा की बजाये यहां महालक्ष्मी पश्चिम दिशा की ओर मुख करें हुए स्‍थापित हैं। देवी के सामने की पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की है, जिससे होकर सूरज की किरणें देवी लक्ष्मी का पद अभिषेक करते मध्य भाग पर आती हैं और अंत में उनके मुखमंडल को रोशन करती हैं। 

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