टाइटैनिक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण जानकारी,सवाल और उनके कुछ जबाव

1912 में एक विशालकाय समुद्री जहाज़ बनाया गया था जिसके बारे में कहा जाता था कि इसे तो ईश्वर भी नहीं डूबा सकते.

News Jungal Desk: टाइटैनिक नाम का ये जहाज़ 269 मीटर लंबा था और उस वक्त स्टील से बनाया गया था. चालक दल और यात्रियों को मिलाकर इस पर करीब 3300 लोगों के ठहरने की सुविधा थी.

लेकिन ब्रिटेन से अमरीका जाते वक्त अटलांटिक सागर में एक रात हुए हादसे के बाद ये जहाज़ महज़ कुछ घंटों में डूब गया था . जिसका मलबा आज तक वहीं पड़ा है, इसे आज तक निकाला नहीं जा सका है.

जानकारों का कहना था कि इंजीनियरिंग के लिहाज़ से ये डिज़ाइन के आधार पर विकसित पहला जहाज़ था जिसमें कई वाटरटाइट कंपार्टमेंट बनाए गए थे.

जहाज़ का डिज़ाइन कुछ ऐसा था कि अगर जहाज़ का कोई एक कमरा पानी से भर जाए तो वह दूसरे कमरे को डूबा नहीं सकता था.

जहाज़ बनाने और नेविगेटर सिविल इंजीनियर थियेरी के अनुसार ‘टाइटैनिक का प्रचार इस तरह से किया गया था कि यह जहाज़ डूब नहीं सकता है. इसकी वजह यह थी कि इसमें बहुत सारे तहखाने बनाए थे जो वाटरटाइट दीवारों से बने थे. तहखाने की दो कतारों में पानी भरने की स्थिति में भी जहाज डूबने वाला नहीं था.’

1-टाइटैनिक कितना बड़ा था?

टाइटैनिक का असली नाम था आरएमएस टाइटैनिक था क्योंकि ये एक रॉयल मेल शिप था जो 3500 बस्ते भर कर चिट्ठियां ले जा रहा था.

इसमें चिट्ठियां और पैकेट सभी शामिल थे.

आयरलैंड के बेलफास्ट में हार्लैंड एंड वूल्फ नाम की कंपनी का बनाया ये जहाज़ 269 मीटर लंबा, 28 मीटर चौड़ा और 53 मीटर ऊंचा था.

इसमें तीन इंजन थे और इसकी भट्टियों में 600 टन तक कोयला लगता था.

इसे बनाने में उस वक्त 15 लाख ब्रितानी पाउंड का खर्च आया था और इसे बनाने में तीन साल का वक्त लगा.

इसमें 3300 लोगों के लिए जगह थी. पहली बार जब टाइटैनिक सफर पर निकला तो उस पर 1300 यात्री और 900 चालकदल के सदस्य सवार थे.

टाइटैनिक लग्ज़री जहाज़ था और इसकी टिकट भी महंगी थीं.

इसकी थर्ड क्लास की टिकट सात पाउंड की थी, सेकंड क्लास की क़रीब 13 पाउंड की और फर्स्ट क्लास की टिकट की क़ीमत 30 पाउंड तक की थी.

2-टाइटैनिक कब और कहां डूबा?

टाइटैनिक के डूबने से कुछ महीनों पहले 1911 में ग्रीनलैण्ड के दक्षिणपश्चिमी हिस्से में मौजूद एक ग्लेशियर का 500 मीटर एक बड़ा टुकड़ा उससे अलग हो गया.

हवा और समुद्र की लहरों के साथ ये हिमखंड तैरता हुआ दक्षिण की तरफ जाने लगा.

14 अप्रैल की रात को ये हिमखंड जो अब मात्र 125 मीटर का ही बचा था, टाइटैनिक से टकरा गया.

हिमखंड से टकराने के बाद महज़ चार घंटे के भीतर टाइटैनिक डूब गया.

हादसे के वक्त टाइटैनिक 41 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से इंग्लैंड के साउथम्पैटन से अमेरिका के न्यूयार्क की ओर बढ़ रहा था.

3-कहां मिला था टाइटैनिक का मलबा?

टाइटैनिक का मलबा 1सितम्बर 1995  को अटलांटिक सागर के समुद्रतल में 2,600 फीट नीचे मिला था.

इसकी तलाश अमेरीका और फ्रांस के साझा एक्सपीडिशन ने की थी जिसका नेतृत्व डॉक्टर रॉबर्ट बैलार्ड कर रहे थे. अमेरिकी नौसेना की मदद से की गई इस तलाश में दो जहाज़ों की मदद ली गई थी.

इसके सबसे पहले इसकी तस्वीरें आर्गो नाम के मानवरहित सबमरीन ने ली थीं.

टाइटैनिक का मलबा कनाडा के न्यूफ़ाउंडलैंड में सेंट जॉन्स के दक्षिण में 700 किलोमीटर दूर मिला था.

ये जगह अमरिका के नोवा स्कोटिया के हैलिफेक्स से क़रीब 595 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में है.

ये जहाज़ दो टुकड़े हो गया था और समुद्रतल में दोनों टुकड़े, बो और स्टर्न एकदूसरे से 800 मीटर दूर गिरे.

जहाज़ के आसपास भारी मात्रा में मलबा इकट्ठा हो गया है.

4-क्यों डूब गया टाइटैनिक ?

इंग्लैंड के साउथहैम्पटन से अमरीका की तरफ़ चला ये जहाज़ अटलांटिक सागर पार करते हुए ये विशाल हिमखंड से टकरा गया.

रियो डि जेनेरियो की फ़ेडरल यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ नेवल एंड ओशियन इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफ़ेसर अलक्जेंडर द पिन्हो अल्हो का कहना है “टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि जहाज की मुख्य बॉडी की आधी लंबाई तक सुराख हो गया था. ऐसी परिस्थिति में पानी छत तक पहुंच गया था.”

हिमखंड से टक्कर ने जहाज को काफी नुक़सान पहुंचाया और इसमें वाटरटाइट कंपार्टमेंट्स की कई दीवारें नष्ट हो गईं जिसके कारण जहाज़ में बड़ी तेज़ी से पानी घुसने लगा.

कुछ और रिपोर्ट्स के अनुसार इसके क़रीब पांच वाटरटाइट कमरों में पानी भर गया था

फ्लूमिनेंसे फ़ेडरल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और ट्रांसपोर्ट इंजीनियर ऑरिलो सोरास मूर्ता कहते हैं कि एक समस्या उस वक्त के स्टील की थी जो उतना मज़बूत नहीं था.

सोरास मूर्ता कहते हैं, “टक्कर के बाद जहाज के ढांचे में भी बदलाव आ गया था. दरवाजे बंद नहीं हो रहे थे. उस वक्त भी टाइटैनिक शुद्ध स्टील से बनाया गया था लेकिन तब का स्टील आज के स्टील जितना मज़बूत नहीं होता था.”

हादसे के वक्त टाइटैनिक में यात्रियों और चालकदल मिलाकर कुल 2200 लोग सवार थे. हादसे में 1500 के क़रीब लोग भी मारे गए. 111 साल बाद भी सबसे बड़ा समुद्री हादसा माना जाता है.

हादसे के कारणों की जांच ब्रितानी सरकार ने तो करवाई ही, अमरीकी सरकार ने भी इसकी विस्तृत जांच करवाई

5-टाइटैनिक को क्यों नहीं बचाया जा सका?

जिस दिन टाइटैनिक ने अपनी यात्रा शुरू की उससे कुछ दिन पहले एक और जहाज़ ने अटलांटिक पार कर रहा था, इस जहाज़ ने टाइटैनिक को चेतावनी दी थी.

एसएस मसाबा नाम के इस जहाज़ ने 12 अप्रैल को टाइटैनिक को हिमखंड के बारे में एक वायरलेस भेजा था. लेकिन इसका संदेश शायद कभी टाइटैनिक तक नहीं पहुंच सका था.

बाद में मसाबा 1918 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पानी में समा गया.

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