जानें, राष्ट्रपति ने किन क्रांतिकारियों का किया जिक्र

न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर कानपुर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जिन गुमनाम क्रांतिकारियों का जिक्र किया, आखिर वे कौन हैं? उनका क्या योगदान रहा है और अब उनकी चर्चा क्यों हो रही है?

पेशवा की बेटी थी मैनावती

मैनावती 1857 गदर के जनक नाना राव पेशवा की बेटी थीं। मैनावती ने अपने पिता के साथ उस क्रांति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। अंग्रेजों को खदेड़ने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, लेकिन बाद में नाना राव पेशवा के पकड़े जाने और गायब होने के बाद अंग्रेजों ने मैनावती को गिरफ्तार कर लिया था। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि अंग्रेजों ने बड़ी बेरहमी के साथ उनको जिंदा जला दिया था।

अजीजन बाई ने अंग्रेजों के सीक्रेट क्रांतिकारियों को बताए थे

अजीजन बाई के बारे में बताया जाता है कि जब अंग्रेज कानपुर आए थे तो उन्होंने यहां पर शराब खाना भी खोला था। अजीजन बाई यहीं से अंग्रेजों से संपर्क में रहती थीं। वह बेहद खूबसूरत थीं। अंग्रेजों के उच्च अधिकारी उनसे लगातार संपर्क में थे। इस बीच जब 1857 की गदर शुरू हुई, तब अजीजन बाई ने बहुत ही महत्वपूर्ण रोल प्ले किया। उन्होंने सभी क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के सारे सीक्रेट प्लान बताए। नाना राव पेशवा का लगातार सहयोग किया। इस बात की जानकारी जब अंग्रेजों को हुई तो इनको तोप की नाल में बांधकर उड़ा दिया गया था।

अजीमुल्ला खान पेशवा के निजी सचिव थे

बचपन से अंग्रेजों के घर नौकरी करते थे, जिसकी वजह से अंग्रेजी का ज्ञान बहुत अच्छा हो गया था। फिर इन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया। इसी बीच यह नाना राव पेशवा के संपर्क में आए और उनके निजी सचिव बन गए। नानाजी की पेंशन बन्द होने पर इंग्लैंड में मुकदमा चला तो उस मुकदमे की पैरवी करने इंग्लैंड पहुंचे थे। वापसी के वक्त देखा कि कीमिया में युद्ध चल रहा था। वहां अंग्रेजों को कीमिया के लोगों ने युद्ध में परास्त करके खदेड़ दिया था।

अंग्रेजों की पराजय ने नाना राव पेशवा को इस बात के लिए प्रेरित किया कि अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला जाए तो हम लोग भी अंग्रेजों को खदेड़ सकते हैं। दरअसल इसी सोच ने 1857 की गदर को जन्म दिया था।

जयदेव कपूर बम बनाने की ट्रेनिंग देते थे

कानपुर के पटकापुर में इनका निवास था। क्रांतिकारियों को बम बनाने की ट्रेनिंग देते थे। एक बार टेस्टिंग के दौरान घर के पास ही बम फट गया था। चंद्र शेखर आजाद से लेकर के सभी नामी क्रांतिकारियों के साथ इनका मिलना जुलना उठना बैठना रहता था। क्रांतिकारी गतिविधियों में पूरी तरह से सक्रिय भी रहे। देश आजाद होने के बाद इनको जेल से रिहा किया गया था।

शिव वर्मा भगत सिंह के मित्र थे

कानपुर में यह भगत सिंह के सबसे घनिष्ठ मित्रों में से एक थे। DAV हॉस्टल में भगत सिंह इन्हीं के साथ रहते थे। वहीं से क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने का कार्य करते थे। आजादी के बाद इनके द्वारा क्रांतिकारियों के मुकदमों पर पुस्तक लिखी गई है। आजादी के बाद इतिहास के बारे में लिखना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नाट्य मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाई।

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नाना राव पेशवा ने सीधे मोर्चा लिया था अंग्रेजों से

नाना राव पेशवा बाजीराव पेशवा के दत्तक पुत्र थे। अंग्रेजों से बाजीराव पेशवा 1818 में पराजित हुए थे। इसके बाद हुए समझौते में अंग्रेज पेशवा परिवार को 8 लाख सालाना पेंशन देंगे यह तय हुआ था। नाना राव पेशवा की मौत के बाद अंग्रेजों के पेंशन देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मई 1857 के ग़दर में नाना राव पेशवा ने बगावत कर अंग्रेजों से सीधा मोर्चा लिया था।

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