सिंधु जल संधि खतरे मे ,भारत ने पाकिस्तान को भेजा नोटिस,ये है बड़ा कारण

सूत्रों ने कहा कि भारत द्वारा लगातार परस्पर सहमति से स्वीकार्य रास्ता तलाशने के प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष 2017 से 2022 के दौरान स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लगातर जोर देने पर विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रियाएं शुरू की. उन्होंने कहा कि एक ही मुद्दे पर समानांतर विचार किया जाना सिंधु जल संधि के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है. सूत्रों ने कहा कि इस तरह से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर भारत संशोधन का नोटिस देने के लिए बाध्य हो गया.

न्यूज जंगल इटंरनेशनल डेस्क :- भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में (Indus Water Treaty of 1960) संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है । और सरकारी सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि यह नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रूख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है । और सूत्रों ने बताया कि यह नोटिस सिंधु जल संबंधी आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को भेजा गया है । और उन्होंने बताया कि पाकिस्तान (Pakistan) के साथ हुई सिंधु जल संधि और उसकी भावना को अक्षरश: लागू करने का भारत (India) दृढ़ समर्थक व जिम्मेदार साझेदार रहा है ।

सूत्रों ने बताया, ‘‘ पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों एवं इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है । और भारत को इसमें संशोधन के लिए उचित नोटिस जारी करने के लिए मजबूर किया है । गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षो की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे । और विश्व बैंक (World Bank) भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था । और इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है । और भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी (Ravi), सतलुज (Satluj) और ब्यास (Vyas) नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली (Electricity) और कृषि (Farming) के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया है ।

वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं (Indian Kishanganga and Ratle hydroelectric projects) पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ करी है । नियुक्ति करने का आग्रह किया था । और वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया है । और सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिये बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है ।

इसी के अनुरूप, भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया है । और सूत्र ने बताया, ‘‘एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है. । और उन्होंने बोला कि विश्व बैंक ने 2016 में इसे माना था और दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करने को रोकने का निर्णय किया था । और साथ ही भारत और पाकिस्तान से परस्पर सुसंगत रास्ता तलाशने का आग्रह किया था ।

सूत्रों ने बोला कि भारत द्वारा लगातार परस्पर सहमति से स्वीकार्य रास्ता तलाशने के प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष 2017 से 2022 के दौरान स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इंकार कर दिया है । उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लगातर जोर देने पर विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रियाएं शुरू करी है । और उन्होंने कहा कि एक ही मुद्दे पर समानांतर विचार किया जाना सिंधु जल संधि के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है. सूत्रों ने कहा कि इस तरह से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर भारत संशोधन का नोटिस देने के लिए बाध्य हो गया

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