न्यूज जंगल डेस्क कानपुर : डॉ. घासीराम वर्मा का नाम पूरे राजस्थान में फेमस है. हर कोई जानता है कि वह बेटियों की शिक्षा में करोड़ों रुपये खर्च करते हैं. जाने-माने गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा सालों से यह काम कर रहे हैं. गणितज्ञ डॉक्टर घासीराम वर्मा 95 साल में से 64 साल अमरीका में ही रहे और नौकरी करते रहे. सेवानिवृ्त्ति के 22 साल बाद स्थायी रूप से झुंझुनूं रहने आ गए हैं. उन्हें पेंशन डॉसर्स मिलते हैं जिसे वह बेटियों की शिक्षा में खर्च करते हैं. डॉ. वर्मा करते हैं कि उन्हें अपनी पत्नी रुकमणी देवी के साथ रहने पर सुख की उतनी ही अनुभूति होती है जो अमरीका में अपने बेटे-बहू और पोते-पोतियों के साथ थी. 1 अगस्त 2022 को 96 साल में प्रवेश करने वाले डॉक्टर वर्मा की याददाश्त आज भी पहले जैसी ही है.
उनके स्वास्थ्य के बारे में बात करने पर वे तपाक से बोले, ‘मैं एकदम ठीक हूं और मैं अपने वतन में बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं. मैं 95 साल की उम्र में बाकि लोगों की तुलना में ठीक ही हूं’. वे कहते हैं, मैं अब जीवन पर्यंत यहीं रहूंगा, वैसे भी अब मुझे अमरीका आने-जाने का हवाई सफर सूट भी नहीं करता है. बेटे-बहुओं और पोते-पोतियों ने मुझे खुशी से भारत भेजा है. एक-दूसरे की याद तो सभी को आएगी, लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में WhatsApp पर सभी मुलाकात हो जाती है.
टियों की पढ़ाई पर खर्च करते हैं पैसे
डॉक्टर वर्मा का कहना है कि व्यक्ति ने जीवन में देना सीख लिया तो उसे लेने की आवश्यकता नहीं रहती. इसी का जीता जागता उदाहरण हैं कि वे न तो अपने बेटों को रुपये देते हैं और न ही उनसे लेते हैं. उन्हें ऐसे लेनदेन की जरूरत ही नहीं पड़ी. उनके बेटे भी पिता की तरह शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग करते रहते हैं. उनका कहना है कि उम्रदराज होने के बावजूद जो सिलसिला पहले से चल रहा है, वह आगे भी बदस्तूर जारी रहेगा और भी कार्यक्रमों में पहले से ज्यादा कार्य करेंगे. उनका मानना है कि जो था वह दे दिया, उसका रिकॉर्ड क्या रखना. मेरे दिए से किसी का भला होता है, इससे बड़ा सुख मेरे लिए और क्या होगा.
डॉक्टर वर्मा का कहना है कि मेरे नाम से जो समिति डॉक्टर घासीराम वर्मा समाज सेवा समिति बनी है, वह इसे देखती ही है. डॉक्टर वर्मा ने अमरीका में खुरांट इंस्टीट्यूट गणित-विज्ञान संस्थान से काम की शुरुआत की और 1960 में चार हजार रुपये (भारतीय मुद्रा) प्रतिमाह के वेतन पर हार्दम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन किया. उन्होंने 1964 में अमरीका के रोडे आइलैंड यूनिवर्सिटी में 11 हजार डॉलर के वेतन पर एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. उन्होंने नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन में कंसलटेंट के रूप में कार्य किया. उन्होंने वहां इंजीनियरिंग जैसे विषयों पर रिसर्च भी किया, इसलिए उन्हें नेवी के प्रोजेक्ट में नौकरी भी मिली. डॉक्टर वर्मा साल 2000 में अमरीका में वहां की नौकरी से सेवानिवृत्त हुए. डॉ. घासीराम वर्मा करीब 20 साल पहले रिटायर हो चुके हैं. हर साल पेंशन व नियमित निवेश से उनको करीब 68 लाख रुपये मिलते हैं. इनमें से 50 लाख रुपये वे हर साल भारत आकर बालिका शिक्षा पर खर्च करते हैं. खास बात ये है कि वे किसी को कोई व्यक्तिगत मदद नहीं करते हैं बल्कि बालिका शिक्षा के लिए ही राशि खर्च करते हैं.
कई पुस्तक का किया प्रकाशन
डॉक्टर वर्मा अब तक एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और कुछ प्रकाशनाधीन हैं और उन्हें भारत व अमरीका में अनेक संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया जा चुका है. डॉक्टर वर्मा ने अमरीका प्रवास के बारे में बताया कि वहां के गांवों में भी शहरों जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं. वहां न्यूयार्क-शिकागो में पीस ऑफ डेल शांति की घाटी एक छोटा सा गांव है जहां वे अपनी पत्नी के साथ स्वयं के मकान में रहते थे. अब वह मकान अपने बच्चों को सौंप आए हैं.
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