कानपुर को मैंचेस्‍टर बनाने वाली लाल इमली इतिहास के पन्नों में होगी दर्ज  

न्यूज जंगल डेस्क कानपुर :कानपुर में लगे उद्योग कानपुर महानगर आजादी के पहले से उत्तर प्रदेश की इकोनॉमिकल कैपिटल इसीलिए बना रहा है क्योंकि यहां पर कई उद्योग थे, जिनका बोलबाला पूरे देश में था. इसी में शामिल थी कानपुर की लाल इमली, भी जिसने कानपुर को देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक एक अलग पहचान दिलाई थी. कानपुर की लाल इमली में बने उत्पाद देश ही नहीं बल्कि दुनिया में एक अलग पहचान रखते है . कभी अपने कपड़े और वुलेन के लिए पूरी दुनिया में लाल इमली का नाम था. 1876 में इस मिल की शुरुआत करी गई थी जिसके बाद यहां के उत्पाद लोगों की पहली पसंद बन गए और कानपुर को मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट का नाम भी इसी की वजह से मिला था.

याद बनकर रह जाएगी यह लाल इमली

कानपुर की कभी शान होने वाली मिल अब पूरी तरह से बंद पड़ी है. जिसने कानपुर के औद्योगिक स्वरूप को कहीं न कहीं काफी क्षति पहुंचाई है. लोक उद्यम विभाग ने बीआईसीएल को बंद करने के लिए नोट तैयार कर लिया गया है. जिससे अब लाल इमली को पूरी तरीके से बंद करने का रास्ता साफ हो गया है. इसके साथ ही नेशनल टैक्सटाइल कॉरपोरेशन को भी बंद करा जाऐगा लाल इमली की स्थापना 1876 में करी गई थी. जिसके बाद से यहां के उद्योग जगत को जो पंख लगे उसकी पूरी दुनिया दीवानी रही. यहां के बने उत्पाद की चमक सात समंदर पार भी दिखाई देती थी. लेकिन धीरे-धीरे जो कानपुर का औद्योगिक स्वरूप था वह बिगड़ता गया और यहां की मिल बंद होने लगी. यही हाल कानपुर की लाल इमली का भी हुआ. हालांकि इसमें जान फूंकने की भी कई बार कोशिश की गई 2001 में सरकार द्वारा 211 करोड़ रुपए का बज़ट दिया गया था. 2005 में ₹47 करोड़ का बजट दिया गया और 2011 में 338 करोड रुपए का बजट देकर लाल इमली को सुधारने की कोशिश की गई. लेकिन इसके हालातों में सुधार न हो सका. जिसके बाद नीति आयोग ने लाल इमली को बंद करने का सुझाव दिया था. साथ में यह भी कहा गया था कि कंपनी के कर्मचारियों की सैलरी भी उनको दे दी जाए. अब जब लोक उद्यम विभाग ने इसको बंद करने के लिए कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है, अब कभी भी इसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है.

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