कांग्रेस छोड़ने वाले नेता, अपने गिरेबां में भी झांकें?

अब आजाद अपनी पार्टी बनाएंगे या भाजपा के खेमे में जाएंगे, यह सब अभी स्पष्ट नही है। वैसे, उन्होंने नई पार्टी बनाने का एलान किया है। ऐसा हुआ तो यह 65वां मौका होगा, जब कोई कांग्रेस छोड़कर नए राजनीतिक दल का गठन करेगा। वर्ष 1885 में पार्टी की स्थापना हुई। तब से अब तक कांग्रेस ने 64 ऐसे बड़े मौके देखे, जब कांग्रेस छोड़ने के बाद नेताओं ने अपनी पार्टी बनाई

न्यूज जंगल डेस्क कानपुर:—जब जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहे भागना शुरू करते हैं, यह कहावत आजकल कांग्रेस पार्टी पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है,दरअसल बता दें कि जब कांग्रेस ‘कामधेनु’ थी, तो उसके आसपास मंडराने वालों की भीड़ लगी  रहती  थी, लेकिन इधर कुछ वर्षों से उसकी राजनीतिक स्थिति क्या डावांडोल हुई!सके तथाकथित मतलबपरस्त नेता ही शीर्ष नेतृत्व पर पार्टी को न संभालने का आरोप मढ़कर किनारा करना शुरू कर दिया?

बता दें कि यहां एक बात जो समझ में नहीं आती, वह यह कि जब कोई कांग्रेस से इस्तीफा देता है तो गांधी परिवार पर ही क्यों आरोप लगाकर पीठ दिखाता है? जबकि उनका कहना होता है कि उन्होंने पचास वर्ष तक इस पार्टी के लिए त्याग किया है, इसे खून-पसीने से सींचा है, और भी  न जाने क्या-क्या किया है, लेकिन पार्टी ने, और विशेष रूप से गांधी परिवार ने उन्हें अपमानित किया और उचित सम्मान नहीं दिया?

दरअसल बता दें कि यह ठीक है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी आज बीच समुद्र में बिना पतवार के हिलते-डुलते डूबने की स्थिति में नजर आ रही है (हालांकि ऐसा सोचना दिवास्वप्न ही होगा), लेकिन यह स्थिति आई क्यों, इस पर देश के बुद्धिजीवियों को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है!

कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सी. राजगोपालाचारी ने वर्ष 1956 में पार्टी छोड़ दी। बताया जाता है कि तमिलनाडु में कांग्रेस नेतृत्व से विवाद होने के बाद उन्होंने अलग होने का फैसला लिया था। रोजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ने के बाद इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स कांग्रेस पार्टी की स्थापना की, जो मद्रास तक ही सीमित रही।

जबकि बाद में राजगोपालाचारी ने एनसी रंगा के साथ 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना कर इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स पार्टी का उसमें विलय कर दिया, दरअसल स्वतंत्र पार्टी का फोकस बिहार, राजस्थान, गुजरात, ओडिशा और मद्रास में ज्यादा था,वर्ष 1974 में स्वतंत्र पार्टी का विलय भी भारतीय क्रांति दल में हो गया था, बता दें कि इसके अलावा वर्ष 1964 में केएम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस नाम से नई पार्टी का गठन किया। हालांकि, बाद में इस पार्टी से निकले नेताओं ने अपनी सात अलग-अलग पार्टियां खड़ी कर लीं,वर्ष 1966 में कांग्रेस छोड़ने वाले हरेकृष्णा मेहताब ने ओडिशा जन कांग्रेस की स्थापना की?

दरअसल बता दें कि, वर्ष 2014 में भाजपा की सरकार आने के बाद से अब तक कई दिग्गज और बड़े नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्मस की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 और 2021 के बीच हुए चुनावों के दौरान 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी, जबकि बता दें कि 177 सांसदों और विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहा, इसके अलावा 2016 और 2020 के बीच दलबदल करने वाले लगभग 45 प्रतिशत विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में एक नजर उन नेताओं पर डालते हैं जो वर्ष 2014 से लेकर अबतक कांग्रेस से दूरी बना चुके हैं!

सच तो यह है कि जिस परिवार पर आरोप लगाकर इन नेताओं ने पार्टी से अपना नाता तोड़ा है बता दें कि उनमें ऐसा आकर्षण या उनका व्यक्तित्व ऐसा नहीं है दरअसल, उस गांधी परिवार ने जिसे पानी पी-पीकर पलायन करने वाले नेता कोसते हैं, जबकि देश को तीन प्रधानमंत्री दिए जिनमें दो आतंकवादियों  के हाथों असमय मार दिए गए। प. जवाहरलाल नेहरू ने आजादी की लड़ाई के दौरान अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष जेल में बिताए, यातनाएं सहीं( फिर महात्मा गांधी की अगुवाई में देश की आजादी में भाग लिया)

(इसके बाद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी देश के लिए आतंकवादियों के हाथों मारे गए? इसलिए सारी सत्ता और जनता में इस परिवार की छवि ऐसी है)

(पचास वर्षों तक तथाकथित अपमान क्यों झेले आजाद)

दरअसल बता दें कि अभी हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस में सुधार की बात को नेतृत्व को चुनौती के रूप में लेता है। तो क्या पचास वर्षों  तक गुलाम नबी आजाद इस तथाकथित अपमान को झेलते रहे! अब राहुल गांधी या सोनिया गांधी इतने बुरे हो गए?

कांग्रेस छोड़ने के बाद नेताओं ने अपनी पार्टी बनाई, वर्ष 1969 में तो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने इंदिरा गांधी को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था! दरअसल तब इंदिरा ने भी अलग कांग्रेस बना ली थी।आजाद आज चापलूसी की बात कर रहे हैं, संजय गांधी के दिनों में वह खुद उन्हीं में से एक थे’ जानें 5 बार राज्यसभा सांसद रहे गुलाम नबी आजाद के पॉलिटिकल करियर की इनसाइड स्टोरी

बता दें कि हर बार वह गिरकर संभल जाती है और देशसेवा में नए आयाम स्थापित करती है। इस बार भी कुछ अच्छा ही होगा, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। अब देखना यह है कि पार्टी छोड़ देने के बाद गुलाम नबी आजाद क्या करिश्मा दिखाते हैं जिससे उनका मान-सम्मान बढ़ जाएगा!

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