संविधान दिवस पर विशेष : भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के कनपुरिया नवरत्न…

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ग्रेट व्रिटेन की नई गठित सरकार ने भारत की स्वतंत्रता व भारत संबन्धी नीति निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा था | तत्क्रम मे ही भारत मे संविधान सभा का गठन हुआ | ६ दिसम्बर १९४६ को गठित संविधान सभा ने ९ दिसम्बर से कार्य करना शुरू कर दिया जो संविधान निर्माण के साथ ही २४ जनवरी १९५० को भंग कर दी गयी थी | ३८९ सदस्यीय सभा के अस्थायी अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा और अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद जी थे , निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डा. भीमराव रामजी अम्वेडकर थे | संविधान निर्मात्री सभा मे कानपुर के नवरत्न ( नौ सदस्य) भी शामिल थे |

१ – मौलाना हसरत मोहानी (१८७५ – १९५१)
सर्वप्रथम पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव कांग्रेस मे लाने वाले मौलाना हसरत मोहानी साहब का जन्म उन्नाव जिले के मोहान मे १ जनवरी १८७५ को सय्यद अजहर हुसैन के घर पर हुआ था | उनका पूरा नाम सय्यद फजल उल हसन तख्खलुस हसरत था | आपकी प्रारंभिक शिक्षा मोहान मे हुई बाद मे हसवा फतेहपुर से इन्ट्रेन्स अव्वल दर्जे मे सन् १८९९ मे पास कर अलीगढ़ आ गये और अलीगढ़ से १९०३ मे बी. ए. पास किया और इसी साल उर्दू जुबान मे एक पत्रिका उर्दू ए मुअल्ला निकाला | सन् १९०४ मे बम्बई कांग्रेस मे शामिल हो कर राष्ट्रीय आन्दोलन मे सक्रिय हो गये | सन् १९०८ मे एक ब्रिटिश विरोधी लेख छापने पर जेल गये | खिलाफत आन्दोलन मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और १९२१ मे आपका दिया हुआ ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ नारा बहुत मशहूर हुआ | बाद मे कम्युनिष्ट पार्टी मे शामिल हो गये | कानपुर को केन्द्र बना कर आप आजादी की लड़ाई मे अहम काम किया | आपके जीवन मे तीन एम महत्वपूर्ण थे , मास्को, मक्का, मथुरा | आप श्रीकृष्ण भक्त थे | लोकमान्य तिलक के अनुयायी और डा. अम्वेडकर के करीबी दोस्त भी थे | हसरत मोहानी साहब जब संविधान सभा व मेम्बर पार्लियामेन्ट रहे लेकिन वह कभी भी कोई एलाउन्स नही लिया, न गाड़ी, न बंगला, न टेलीफोन | पार्लियामेन्ट के पास बनी हुई एक मस्जिद के छोटे से कमरे मे रुकते थे | खाने के समय पास के किसी होटल मे खाना खा लेते थे | आसपास कागज फैलाकर देखते रहते थे और वक्त होते ही अपने जूट के थैले मे सारे कागज डालकर पार्लियामेन्ट पहुँच जाते थे | आप दिल्ली की सड़को पर पैदल चलते एक दिन एक कार पास आकर रुकी और उसमे बैठे शख्स ने बड़ी इज्जत से कहा कि मै भी पार्लियामेन्ट जा रहा हूँ आप कार मे बैठ जाए लेकिन हसरत साहब ने इनकार कर दिया वो एक केन्द्रीय मंत्री थे | जब आप पाकिस्तान गये तो भी सरकारी मेहमान होते हुए भी कोई सुविधा नही ली थी | १३ मई १९५१ को लखनऊ मे हसरत साहब का इन्तकाल हुआ लखनऊ मे ही उनकी कब्र निर्मित है |

२ – प. वेंकटेशनारायण तिवारी ( १८९० – १९६५ )
पंडित वेंकटेशनारायण तिवारी जी का जन्म कानपुर शहर के पटकापुर मोहल्ले मे वैष्णव परिवार मे हुआ था | तिवारी जी की शिक्षा क्राइस्टचर्च कालेज मे हुई बाद मे प्रयाग विश्वविद्यालय से एम. ए. इतिहास सन् १९१० मे किया था | गोपिलकृष्ण गोखले की भारत सेवक समिति मे शामिल हुए बाद मे सविनय अवग्या आन्दोलन मे हिस्सा लिया | सन् १९२१-२२ मे श्री निवास शास्त्री के प्रस्ताव पर गांधी जी द्वारा भारतीयो की दशा का अध्ययन करने के लिए लन्दन भेजे गये थे | सन् १९३७ मे प्रदेश की विधान सभा सदस्य निर्वाचित होकर मुख्य संसदीय सचिव के रुप मे मंत्रिमंडल मे शामिल हुए |उस मंत्रिमंडल मे शिक्षा मंत्री डा. सम्पूर्णानंद ने उर्दू को प्रदेश की द्वितीय भाषा को मानने से इन्कार करने पर मुस्लिम लीग ने तूफान मचाया तब तिवारी जी ने अखबारो की छपाई के आंकड़े , परीक्षा मे हिन्दी लेकर बैठने वाले छात्रो की संख्या और इसी प्कार के अनेक अकाट्य प्रमाण देकर उनकी बात का प्रतिवाद करके यह सिद्ध किया कि प्रान्त की बहुसंख्यक जनता की भाषा हिन्दी है न कि उर्दू | तिवारी जी के इस प्रतिवाद से उस समय बड़ी हलचल रही | तिवारी जी का पत्रकारिता जीवन अभ्युदय से शुरु किया और भारत मे आपकी प्रखरता देखने को मिली जब उन्होने प. रामनरेश त्रिपाठी के ग्राम गीतो, अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध के प्रियप्रवास और रसकलश और मैथिलीशरण गुप्त द्वारा प्रारम्भ किये गये ” राधा स्वकीया या परकीया ” आन्दोलन चला | १९५५ मे दिल्ली से दैनिक पत्र जनसत्ता का संपादन संभाला | आपकी प्रकाशित पुस्तको मे चारु चरितावली और हिन्दी बनाम उर्दू उल्लेखनीय है | १९३९ मे अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के २८वे काशी के सम्मेलन मे तिवारी जी ने महात्मा गांधी के हिन्दुस्तानी आन्दोलन के विरुद्ध तीखा भाषण दिया था | १९३९ मे आपके गांधी जी हिन्दुस्तानी आन्दोलन के विरुद्ध हिन्दी का प्रबल व अकाट्य तर्क व पक्ष रखने की प्रशंसा सरस्वती पत्रिका के अग्रलेख तक मे की गई |
शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को हिन्दुस्तानी कोष बनाने के लिए पं. सुन्दरलाल जी को मोटी रकम दी थी | आप संसदीय मामलो के निष्णात पंडित थे बड़े से बड़े जटिल मामले सुलझाने मे दक्ष थे आप को इसी कारण संविधान सभा का सदस्य बनाया गया था | हिन्दी चिन्तक प. वेंकटेशनारायण तिवारी का निधन २० जून १९६५ को हुआ |

३- पं. बालकृष्ण शर्मा ‘ नवीन ‘ ( १८९७ – १९६० )
पंडित बालकृष्ण शर्मा ‘ नवीन ‘ का जन्म ८ दिसम्बर १८९७ मे मध्यप्रदेश के शुजालपुर तहसील के ग्राम भयाना मे जमनादास जी के सुपुत्र के रुप मे हुआ था | शाजापुर से मिडिल कर उज्जैन से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की | उज्जैन प्रवास मे ही नवीन जी लखनऊ कांग्रेस मे प. माखनलाल चतुर्वेदी के साथ शामिल हुए | यही पर आपकी मुलाकात गणेशशंकर विद्यार्थी से हुई और विद्यार्थी जी से हुई इस भेट से नवीन जी को नई दिशा मिली | नवीन जी कानपुर मे विद्यार्थी जी के पास आ गये और यही पर क्राइस्टचर्च कालेज से बी. ए किया | पढ़ाई के दौरान ही असहयोग आन्दोलन मे कूद गये और राष्ट्रीय आन्दोलनो मे हिस्सा लेने लगे व अनेको बार जेल गये | जेल मे आपके भाषण व कविताये होती थी | श्रेष्ठ कवि नवीन जी की कृति उर्मिला व प्रणार्पण चर्चित रही | विद्यार्थी जी ने उन्हे प्रताप का सहकारी संपादक बनाया आप प्रताप प्रेस मे ही काम करते , रहते व वही खाते थे | विद्यार्थी जी के बलिदान के बाद आप ही विद्यार्थी परिवार व प्रताप प्रेस के मुखिया बने | १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भूमिगत रहे | कानपुर के श्रमिको के हितो के लिए भी नवीन जी संघर्षरत रहे | नवीन जी संविधान सभा के साथ ही लोकसभा व राज्यसभा सदस्य भी रहे थे | आप तेज तर्रार सांसद थे कई बार नेहरू जी से आपकी मुठभेड़ हो जाती थी | उनके जीवन मे बालिका वधू की मात्र स्मृति रह गयी थी १९४९ मे सिंधी महिला से दूसरा विवाह किया था | अप्रैल १९५९ मे पक्षाघात हो गया और २९ अप्रैल १९६० को निधन | ३० अप्रैल १९६० को जब नवीन जी का शव स्टेशन आया तो सारा शहर उमड़ पड़ा था | नवीन जी की के शब्दो मे …
हम संक्रान्ति काल के प्राणी, बदा नही सुख भोग |
घर उजाड़ कर ,जेल बसाने का है हमको रोग |

४ – हरिहरनाथ शास्त्री ( १९०४ – १९५३ )
हरिहरनाथ शास्त्री जी का जन्म बलिया जिले के वजीरपुरवा ग्राम मे २६ अक्टूबर १९०४ को हुआ था | आपके पिता रामअवतार लाल पुलिस विभाग मे थे | हाईस्कूल छपरा से करके उच्च शिक्षा के लिए बनारस आ गये और काशी विद्यापीठ से शास्त्री हो गये | बनारस मे ही असहयोग आन्दोलन मे हिस्सा लेने पर गिरफ्तार हो गये थे | सन् १९२७ मे लाला लाजपतराय जी के लोक सेवक मंडल के सदस्य होकर काम करने लगे | मजदूर आन्दोलन का प्रशिक्षण लेने को बम्बई गये और वापस आने पर कानपुर के मजदूरो के मध्य काम करने को आ गये | शास्त्री जी मजदूरो की बस्ती ग्वालटोली मे रहने लगे |आप आचार्य नरेन्द्र देव समाजवादी विचारो से बहुत प्रभावित थे |१९२९ मे मजदूर सभा के महामंत्री बने, उसी दौरान ब्रिटेन से आये रायल कमीशन का अंले झंडे दिखाकर विरोध किया था | १९२८ मे एल्गिन व कानपुर टेक्सटाइल मिल की हड़ताल मे समझौता कराने व १९३१ मे जे. के. ग्रुप की मिलो मे बड़े पैमाने पर जबरन मजदूरो को रिटायर करने पर हुई हड़ताल मे शास्त्री जी ने पंडित नेहरू के कहने पर द्विपक्षीय समझौता कराया और १९३७ मे उत्तर भारत मिल मालिक संघ के विरुद्ध मजदूर हो जाने पर आपकी मध्यक्षता मे समझौता हुआ था | संविधान सभा मे भी आप मजदूरो के प्रतिनिधि रहे और १९५२ मे कानपुर सीट से लोकसभा मे निर्वाचित हुए | आपकी धर्मपत्नी शकुन्तला श्रीवास्तव सुप्रसिद्ध कवयत्री व समाजसेवी थी | १२ दिसम्बर १९५३ को नागपुर मे हुई हवाई दुर्घटना मे शास्त्री जी का निधन हो गया था |

५ – सर जे. पी. श्रीवास्तव (१८८८ – १९५४ )
ज्वालाप्रसाद श्रीवास्तव ( सर जे पी श्रीवास्तव) का जन्म १६ अगस्त १८८८ ई० मे हुआ था आपके पिता जानकीप्रसाद जी तहसीलदार थे | सर जे पी श्रीवास्तव की शिक्षा क्राइस्टचर्च स्कूल व म्योर सेन्ट्रल कालेज प्रयाग तथा डी एस सी आगरा विश्वविद्यालय व डी लिट लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई | आपकी अंतिम शिक्षा मेनचेस्टर कालेज आफ टेक्नोलाजी से हुई और आप मेन्चेस्टर कालेज व इन्स्टीटयूट आफ केमिस्ट्री लन्दन के सदस्य रहे | आप सन् १९१२ मे यू. पी. सरकार के प्रथम औद्योगिक केमिस्ट तथा टेक्नालाजिकल इन्स्टीटयूट कानपुर के प्रथम सदस्य थे | सन् १९१९ मे नौकरी छोड़कर व्यापार मे लग गये और कुशाग्र बुद्धि व सूझ बूझ से ख्याति व धन दोनो प्राप्त किया | १९२५ से १९३७ तक यू पी कौंसिल व असेम्बली के मेम्बर रहे १९३१ मे शिक्षा मंत्री व बाद मे कृषि, आबकारी व अर्थ विभाग को भी संभाला | १९२८ मे साइमन कमीशन को कानपुर मे ठहराया व घर पर दावत दी थी | १९३४ मे सर की उपाधि और १९४२ से ४६ तक वायसराय की कार्यकारिणी सदस्य रह कर नागरिक सुरक्षा , खाद्य और युद्धोत्तर पुनर्निमाण विभाग मे कार्य करते रहे |१९४६ मे कोपेनहेगेन मे होने वाली एफ.ओ.ए. कान्फ्रेन्स मे भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व व उसमे उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए | संयुक्त राष्ट्र संघटन न्युयार्क के आमंत्रण पर गये | न्यु विक्टोरिया मिल के सर्वेसर्वा होने के साथ कई कारखानो मे भागीदार थे | ६६ वर्ष की आयु मे दिसम्बर १९५४ मे ह्रदयाघात के कारण लखनऊ के अस्पताल मे निधन हुआ | आपकी पत्नी लेडी कैलाश श्रीवास्तव सामाजिक कार्यो मे हिस्सा लेती थी |

६ – सर पदमपत सिंहानिया (१९०५ – १९७९)
कानपुर मे जे. के. समूह के संस्थापक लाला कमलापत सिंहानिया के ज्येष्ठ पुत्र सर पदमपत सिंहानिया का जन्म ३ फरवरी १९०५ को कानपुर मे हुआ था | पद्मपत जी बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे उन्होने सत्रह वर्ष की आयु मे ही जे के समूह का कार्यभार संभाला |सन् १९३२ मे मर्चेन्ट चेम्बर आफ यू पी की स्थापना की और आप फेडेरेशन आफ इण्डियन चेम्बर आफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज के ससंथापको मे से एक व १९४१ से १९४३ तक चेयरमैन भी रहे थे | आपने जे के काटन, जे के जूट, जे के स्टील के साथ ही नई इकाईयो जैसे जे के रेयान व रेमण्ड वूलेन मिल बम्बई से औद्योगिक जाल फैलाया | हिन्दुस्तान कामर्शियल बैक की स्थापना के साथ शहर की शान राधाकृष्ण ( जे के ) मंदिर भी आपकी ही देन है | शहर मे जे के ग्रुप ने जे के इन्स्टीटयूट आफ कैन्सर एण्ड रेडियोलाजी, लक्ष्मीपत सिंहानिया ह्रदयरोग संस्थान, कैलाशपत सिंहानिया इन्स्टीटयूट आफ मेडिसिन और कमलापत मेमोरियल हास्पिटल (के पी एम) इसके अलावा अनेकानेक प्राथमिक स्कूलो की इमारते बनवाई | ग्रीनपार्क स्टेडियम विकसित कराया था | सर पदमपत का निधन १८ नवम्बर १९७९ को पचहत्तर वर्ष की आयु मे हुआ था | आपकी स्मृति मे डाकटिकट जारी है और शहर मे स्कूल संचालित है |

७ – दयाल दास भगत
दयालदास भगत कानपुर शहर मे कुलीबाजार मे रहते थे आपके पिता का नाम गोकुलप्रसाद धुसिया था | दलित चिन्तक स्वामी अछूतानंद जी आपके कुलीबाजार निवास पर कुछ दिनो तक रहे | आप उत्साही कार्यकर्ता थे और १९२१ मे राजनीति मे प्रवेश किया और सन् १९३७ मे उत्तर प्रदेश असेम्बली के लिए चुने गये | सन् १९४० – ४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन मे भाग लिया और १ वर्ष की कड़ी कैद की सजा पायी | सन् १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध होने के कारण १ वर्ष के लिए नजरबंद किये गये थे | सन् १९५२ मे फिर उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य १३७ घाटमपुर-भोगनीपुर (पूर्व) (आरक्षित ) से चुने गये | संविधान सभा के सदस्य और बाद मे लोकसभा के भी सदस्य निर्वाचित हुए |

८ – शिब्बनलाल सक्सेना ( १९०६ – १९८४ )
शिब्बनलाल सक्सेना का जन्म १३ जुलाई १९०६ को आगरा मे हुआ था | सात साल की उम्र मे माँ के निधन हो जाने पर कानपुर मे छोटे भाई होरीलाल व बहन प्रियंवदा को अपने साथ मामा दामोदरलाल सक्सेना के घर आ गये | कानपुर मे गवर्नमेन्ट स्कूल , क्राइस्टचर्च स्कूल व डी. ए. वी. कालेज मे पढे आप पढ़ाई मे हमेशा अव्वल आते थे | मामा ने उच्च शिक्षा के लिए प्रयाग भेजा जहाँ १९२७ मे बी ए और १९२९ मे एम ए गणित किया दोनो मे स्वर्ण पदक मिला था | सन् १९३० मे गोरखपुर मे गणित के प्रोफेसर बने, १९३१ मे आगरा विश्वविद्यालय से एम ए दर्शनशास्त्र किया | कानपुर मे आप गणेशशंकर विद्यार्थी से बहुत प्रभावित थे | विद्यार्थी जी के नेतृत्व मे १९१९ मे जलियावाला हत्याकाण्ड के विरोध मे १३ वर्षीय शिब्बनलाल ने हिस्सा लिया और तीन बेत की सजा प्राप्त की थी | यही से आजादी पर सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा मिली | १९३७ मे पूर्वी उत्तर प्रदेश को कर्मभूमि बनाया और किसान आन्दोलनो की अगुवाई की | आपको पूर्वी उत्तर प्रदेश का लेनिन कहा गया | जीवन भर अविवाहित रहने वाले सक्सेना जी १७ बार गिरफ्तार हुए और १३ वर्ष जेल मे व्यतीत किए थे | संविधान सभा के साथ ही महराजगंज से पहले सांसद बने | सन् १९४० मे गणेशशंकर विद्यार्थी स्मारक इण्टर कालेज खोला बाद मे जवाहरलाल नेहरू व लालबहादुर शास्त्री के नाम पर डिग्री कालेज खोले सिसवा मे पिता व मामा के नाम पर छोटेलाल- दामोदरप्रसाद स्मारक डिग्री कलेज खोला जिसमे बाद मे आपका नाम भी जुड़ गया |

९ – प. विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी ( १८९९ – १९५९ )
पंडित विश्वम्भरदयालु त्रिपाठी का जन्म ५ अक्टूबर १८९९ को बाँगरमऊ के पंडित गयाप्रसाद त्रिपाठी के घर पर हुआ था | छात्र जीवन से स्वतंत्रता संघर्ष को उन्मुख हुए | १९२० मे पढ़ाई छोड़कर रसद बेगार आन्दोलन चलाया | लखनऊ विश्वविद्यालय १९२६ मे एम ए हिस्ट्री व एल एल बी की परीक्षा एक साथ पास की थी | सविनय अवग्या आन्दोलन से कांग्रेस मे सक्रिय हुए नमक सत्याग्रह मे छः महीने को जेल गये फिर तो जेल जाने का सिलसिला कायम रहा | १९३७ मे सफीपुर क्षेत्र एम एल ए बने और विपक्षी तालुकेदार को हराया | १९३८ मे जमीदारी प्रथा के विरोध मे उन्नाव के एक लाख से अधिक किसानो के साथ विधान सभा के सामने प्रदर्शन किया , जिसकी आवाज इग्लैण्ड की संसद तक गूँजी | १९३८ मे त्रिपाठी जी ने माकूर मे प्रान्तीय युवक सम्मेलन कराया जिसमे नेता जी सुभाषचन्द्र बोस भी शामिल हुए थे | त्रिपाठी जी फारवर्ड ब्लाक के संस्थापक मंत्री और सुभाष चन्द्र बोस संस्थापक अध्यक्ष थे |त्रिपाठी जी उन्नाव की तरह कानपुर केन्द्र से भी स्वतंत्रता आन्दोलन मे सक्रिय रहे और फूलबाग मे कई सभाये की | संविधान सभा के सदस्य होने के साथ ही १९५२ व १९५७ की लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए | १८ नवम्बर १८५९ मे त्रिपाठी जी का निधन हो गया और १९९९ मे आपकी स्मृति मे डाकटिकट भी जारी हुआ है |

अनूप शुक्ल , महासचिव, कानपुर इतिहास समिति व
सचिव, पर्यटनोदय विकास संस्थान, कानपुर

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