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‘जय भीम’ देती है संवेदना शून्य दिमाग में लाल मिर्च डाल कर जिंदा होने का सबूत

न्यूज़ जंगल डेस्क, कानपुर : पुलिस लॉकअप में अपराधियों के साथ मार पीट आम बात है. कुंठित पुलिसवाले जब किसी अपराधी को थर्ड डिग्री टॉर्चर करते हैं और यंत्रणा सहन न कर पाने की वजह से वो बेहोश हो जाता है तो पुलिस वाले उनकी आंख या नाक में लाल मिर्च का पाउडर डाल कर ये सुनिश्चित करते हैं कि वो अभी तक ज़िंदा है या नहीं. अपने आस पास होते अन्याय को देख कर अनदेखा करने वालों के लिए ‘जय भीम’ भी ऐसा ही करती है, सिर्फ ये पाउडर उनके दिमाग को झकझोर कर रख देता है.

आदिवासियों पर होने वाले अन्याय का लेखा जोखा सदियों पुराना है. आदि काल से अपनी पहचान, अपने सम्मान, और अपनी हस्ती को साबित करने के लिए देश के असली निवासी, ऊंची जाति के ठेकेदारों के सामने सदैव गिड़गिड़ाते नजर आते हैं. बिना पूछे, बिना जांच के पुलिस की मदद से उन्हें अनंत काल के लिए जेल भेज दिया जाता है जहां उन्हें शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है. अक्सर ये लोग जेल में मर जाते हैं, तो इन्हें लावारिस लाश बता कर सड़कों पर फेंक दिया जाता है और पुलिस पूरे प्रकरण से अपने हाथ धो लेती है.

जय भीम एक ऐसे वकील की कहानी है जो पुलिस के आतंक और पुलिस के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ मोर्चा लड़ता रहता है. अपनी बुद्धि से वो एक ऐसे ही आदिवासी युवक की गर्भवती पत्नी को इन्साफ दिलाने के लिए अपने आप को झोंक देता है जिसका पति कई दिनों से चोरी के झूठे इलज़ाम में लॉकअप में बंद दिखाया जाता है. जय भीम समाज के चेहरे पर एक लाल मिर्च तमाचा है.

एयर कंडिशन्ड कमरों में बीयर पीते हुए और चिकन कहते हुए पांच सितारा समाजवाद के रक्षक लोगों के हलक में हाथ डालने की हिमाकत है. शायद इसको देखने के बाद सच का सबसे नंगा स्वरुप हम महसूस कर सकें. या शायद, हमारे साथ तो ऐसा हो नहीं सकता या सबसे अच्छा – ये तो फिल्म है. ऐसा होता थोड़ी है.

राजनीति का एक स्वरुप यह भी है. वादे होते हैं गरीबी हटाने के, गरीबों के उत्थान के. अमीरी- गरीबी के बीच का फासला पाटने के. जैसे ही वादा पूरे करने का समय आता है, अमीरों के भले के कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. जंगल काटने के, फैक्ट्री या उद्योग डालने के बहाने आदिवासियों को विस्थापित करने के. सबसे दुखद बात, इन आदिवासियों को नागरिक भी नहीं माना जाता क्योंकि इनके पास न राशन कार्ड, न आधार कार्ड न वोटर कार्ड…और बैंक की पासबुक तक नहीं होती.

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शहर में कोई अपराध होता है, शहर के पास रह रहे आदिवासियों को पुलिस उठा कर ले जाती है, झूठा मुकदमा दायर करती है और अनिश्चित काल के लिए जेल में डाल देती है. यहाँ दुखों का अंत नहीं होता, शराब और ताक़त के नशे में धुत्त पुलिस, अपना सारा गुस्सा और पुरुषत्व इन गरीब और निरीह आदिवासियों पर निकालती है. कइयों की हवालात में मौत हो जति है, महिलाओं के साथ बलात्कार होता है और इतनी यंत्रणा मिलती है कि वो आदिवासी मर जाना बेहतर समझते हैं. जय भीम इस कड़वी सच्चाई का भयावह स्वरुप सामने लाती है.

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