न्यूज़ जंगल नेटवर्क, कानपुर : पेस्टिसाइड्स का किसानों द्वारा उगाई गई फसलों के साथ मिट्टी और पानी में भी दिखने लगा है। पेस्टिसाइड्स का असर मनुष्य के शरीर के लिए कितना घातक हो सकता है, इसकी जांच शुरू हो चुकी है। कृषि वैज्ञानिकों ने हरियाणा के 11 जिलों में मिट्टी और पानी की टेस्टिंग शुरू। वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट जारी की है उसके हिसाब से वो घातक तो नहीं लेकिन चौंकाने वाली है। इस टेस्टिंग में अगर सब कुछ ठीक रहा तो राज्य भी इस मॉडल को अपने राज्य में टेस्टिंग शुरू कर सकेंगे। यह जानकारी हरियाणा के उद्यान महानिदेशक डॉ अर्जुन सिंह सैनी ने दी। वो सोमवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में चल रही उद्यानिकी फसलों एवं जलवायु परिवर्तन पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल थे। उन्होंने बताया कि किसानों के खेतों से मिट्टी और सिंचाई के पानी (नलकूप, तालाब, नहर आदि) के नमूने लिए जा रहे है। किसानों के सहयोग से सर्विलांस टीम बनाई गई है। मिट्टी के नमूनों में कीटनाशकों के स्तर को देखा जा रहा है। इसे मैक्सिमम रेसिड्यू लिमिट (एमआरएल) कहा जाता है। प्रारंभिक जांच में 11 से 17 फीसद स्तर मिला है। यह खतरनाक नहीं है, लेकिन इसका शरीर पर पड़ने वाले स्तर की जांच कराई जा रही है। किसानों को बागवानी फसलों के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। मिट्टी और पानी की रिपोर्ट आईसीएआर को दी जाएगी।
स्वदेशी उपकरणों को बढ़ावा देना आवश्यक
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अवनी कुमार ने बताया कि संरक्षित खेती किसानों के लिए लाभदायक है। इससे न सिर्फ फसल सुरक्षित रहती है, बल्कि उत्पादन भी बढ़ जाता है। इसको बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक करना जरूरी है। कृषि विज्ञान केंद्रों और अन्य संस्थाओं में वैज्ञानिक पूरी तरह से जानकार नहीं हैं। कई बड़ी मशीनें और स्वदेशी उपकरण विदेश से मंगवाने पड़ते हैं। यह किसानों की पहुंच से दूर रहते हैं। पॉलीहाउस आदि के लिए सामग्री जल्दी नहीं मिल पाती है। इसका निर्माण कुछ कंपनियां कर रही हैं।
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मिट्टी खराब फिर भी हो सकेगी खेती
डॉ अवनी कुमार के मुताबिक अब शहरों में लोग बागवानी करने का रुचि दिखा रहे हैं, लेकिन जगह न होने से केवल गमले तक ही सिमट कर रह गए हैं। यह समस्या दीमक, निमिटोड वाली मिट्टी में भी आती है। इसके लिए एयर फोनिक्स खेती का तरीका काफी बेहतर है। इसमें पौधों की जड़ों में पानी का छिड़काव किया जाता है। पौधे किसी टैंक के ऊपर लगाए जाते हैं, जबकि पानी में घुलने वाली खाद डाली जाती है। इसी पानी के साथ दूसरा टैंक जोड़कर मछलियां पाली जा सकती हैं।