बिहार: अब शराब की बोतलें भरेंगी महिलाओ की जिंदगी में रंग, जानिए कैसा

शराबबंदी होने के बाद भी शराब हर मुंह में चर्चा के रूप में है। हर दिन शराब पकड़ी जा रही है। नालों की सफाई में उदरस्थ मदिरा के बाद उपेक्षित खाली बोतलें भारी मात्रा में मिल रही हैं।

 न्यूज जंगल डेस्क:— अर्थशास्त्र का क, ख, ग सीखना हो तो बिहार से सीखिए?यहां शराबबंदी से भी रुपया कमाने की योजना है। पकड़ी गई शराब की बोतलों का सदुपयोग रंग-बिरंगी कांच की चूड़ियों को बनाने में किया जाएगा,जीविका दीदियां इसे बनाएंगी, इसके लिए बाकायदा उन्हें प्रशिक्षित किया गया है, महीने भर में उत्पादन शुरू होने की संभावना है, लेकिन आशंका इस बात की है, कि हर उद्योग बढ़ोतरी की तरफ देखता है, यहां इस उद्योग का विकास शराब (sharaab) की बोतलों की उपलब्धता पर निर्भरता है, यह लगातार मिलती रहें और उसमें बढ़ोतरी होती रहे तो उद्योग फलेगा-फूलेगा, अन्यथा बंटाधार?

आपको बता दें कि बहरहाल, शराबबंदी (sharaababandee) होने के बाद भी शराब (sharaab) हर मुंह में चर्चा के रूप में है, हर दिन शराब पकड़ी जा रही है, नालों की सफाई में उदरस्थ मदिरा के बाद उपेक्षित खाली बोतलें भारी मात्रा में मिल रही हैं, पहले बोतलों को नष्ट कर दिया जाता था, लेकिन अब सरकार ने इससे लाभ लेने का प्रयास शुरू किया है, उनसे कांच की चूड़ियां बनाई जाएंगी? इसके लिए मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग ने जीविका को जिम्मेदारी दी है, जीविका, महिलाओं के दस लाख स्वयं सहायता समूहों का राज्य स्तरीय सरकारी (official) संगठन है, इससे एक 1.27 करोड़ परिवार जुड़े हैं, सरकार के अधिकांश कार्य यही स्वयं सहायता समूह करते हैं। पी जाने वाली शराब के आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन हर माह औसतन तीन से साढ़े तीन लाख बोतलें पकड़ी जाती हैं। सरकार इन्हीं बोतलों से चूड़ियां बनावाएगी, जीविका दीदी (जीविका से जुड़े महिला संगठनों की सदस्य) (Member of women’s organizations associated with livelihood) को इसके लिए उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद और सहारनपुर के संबंधित कारीगरों से बाकायदा प्रशिक्षण दिलवाया गया है। इस तरह इन बोतलों का लाभ लिया जाएगा। जो पहले चूर-चूर करके नष्ट की जाती थीं।

उल्लेखनीय है कि बिहार में पिछले लगभग साढ़े छह वर्षों से शराबबंदी है। इसकी सफलता-असफलता को लेकर तरह-तरह की भावनाएं हैं? सफलता का दावा सरकार की तरफ से होता है, दरअसल बता दें कि विपक्ष इसे विफल बताता है, विपक्ष के तौर पर जो पहले राजद कहता था, वही अब भारतीय जनता पार्टी गा रही है, सरकार के पक्ष वाले राजनीतिक (political) दल भी इस पर कुछ बोलने से कतराते हैं, लेकिन ढकी-छुपी जुबान से असफल ही बताते हैं, इधर सत्तारूढ़ जदयू के संसदीय दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Chairman Upendra Kushwaha) ने भी इसकी सफलता जनता के सहयोग पर निर्भर बता, पल्ला झाड़ा था।

फिलहाल प्रतीकात्मक रूप से चूड़ी निर्माण की एक इकाई लगाई जाएगी। बाद में स्थिति के अनुसार निर्माण इकाई बढ़ाने पर विचार किया जाएगा? इसके लिए जीविका की ओर से पूरी तैयारी की गई है,दरअसल बता दें कि चूड़ी उत्पादन इकाई की स्थापना के लिए मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग ने जीविका के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी को (99.99) लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया है,जीविका दीदी के सहयोग के लिए उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)के शहरों से मजदूर भी मंगाए जाएंगे। विभाग के अनुसार, अगले एक से डेढ़ माह में चूड़ी निर्माण कार्य शुरू होने की उम्मीद है,बाद में स्थिति के अनुसार निर्माण इकाई बढ़ाने की योजना ने सवाल खड़े कर दिए हैं, सवाल यह कि उत्पादन बढ़ाने के लिए कच्चे माल की उपलब्धता का बढ़ना आवश्यक है, इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि शराब (sharaab) की बोतलों की संख्या बढ़ती जाएं?

आपको बता दें कि यह तभी संभव है जब शराब (sharaab) अधिक पकड़ी जाए। अधिक पकड़ा जाना तभी संभव है, जब शराब पकड़ने में ईमानदारी बरती जाए। नालों में मिलने वाली बोतलों की संख्या पता नहीं है, लेकिन यह सही है कि फिलहाल 10 प्रतिशत ही शराब पकड़ी जा रही है,इसमें सीमा पर कम, राज्य के भीतर पकड़े जाने का अनुपात ज्यादा है,एक बात और, इस उद्योग से यह स्पष्ट हो रहा है दरअसल बता दें कि सरकार मानती है कि राज्य में शराब बंद नहीं है, धड़ल्ले से आ रही है और उपयोग हो रही है, अब इस उद्योग की सफलता प्रदेश में शराब (sharaab) की ज्यादा से ज्यादा उपलब्धता पर निर्भर है जिसमें पकड़ने का अनुपात दसवां ही रहे, क्योंकि यदि सभी पकड़ी जाएंगी तो आनी ही बंद हो जाएगी, जो इस उद्योग के लिए झटका होगा। अब देखना है कि चूड़ियों का उत्पादन कितना होता है और फिर अगले साल का लक्ष्य क्या निर्धारित होता है।

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