दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण रोकने के लिए लागू होगी CAQM की यह नीति

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न्यूज जंगल डेस्क कानपुर : सितम्बर-अक्टूबर से दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण परेशान करने लगता है. दिसम्बर-जनवरी में तो यह सीवियर कंडीशन में पहुंच जाता है. अपना ही शहर गैस चैम्बर लगने लगता है. इसी के चलते केन्द्र सरकार की ओर से गठित कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ने एक नीति लागू की है. नीति दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण कम और खत्म करने से संबंधित है. बनाई गई नीतियों में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), एनसीआर के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB), केन्द्र सरकार, एनसीआर राज्य सरकारों और एजेंसियों, विभागों के लिए भी सिफारिशें शामिल हैं. वहीं वायु प्रदूषण (Air Pollution) से संबंधित हर तरह की जानकारी देने के लिए दिल्ली सरकार ने एक बेवसाइट भी बनाई है.

CAQM की यह नीतियां लागू होंगी दिल्ली-एनसीआर में

दिल्ली-एनसीआर के सभी शहरों में वायु प्रदूषण कम करने और खत्म करने के लिए सीएक्यूएम ने कुछ नीतियां तैयार की है. इन नीतियों को समान रूप से पूरे दिल्ली-एनसीआर में लागू किया गया है. वायु प्रदूषण के खिलाफ बनाई गई नीतियों में ताप बिजली संयंत्रों (टीपीपी), स्वच्छ ईंधनों और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, सार्वजनिक परिवहन, सड़क यातायात प्रबंधन, डीजल जनरेटरों (डीजी), पटाखे फोड़ने से निपटना तथा हरियाली और वृक्षारोपण के माध्यम से वायु प्रदूषण को कम करना शामिल हैं. इतना ही नीतियों के तहत उद्योगों, वाहनों, परिवहन, निर्माण और विध्वंस (सी एंड डी), सड़कों और खुले क्षेत्रों से धूल, नगरपालिका के ठोस कचरे को जलाने और फसलों की पराली जलाना भी शामिल है.

जानकारों की मानें तो वायु प्रदूषण और उसके कारणों के खिलाफ सीएक्यूएम की नीतियां पूरे दिल्ली क्षेत्र में लागू होंगी. इसके अलावा दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) यानि दिल्ली के पास एनसीआर वाले जिले जैसे गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत, झज्जर, रोहतक, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और बागपत में भी लागू होंगी. इसके अलावा अन्य एनसीआर जिले यानि पूरे पंजाब राज्य और हरियाणा के गैर-एनसीआर जिलों में खासतौर से पराली जलाने की घटनाओं का समाधान करने के लिए नीतियों को लागू किया गया है.

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका से संबंधित अपने आदेश में आदित्य दुबे (नाबालिग) बनाम एएनआर/यूओआई 16 दिसम्बर 2021 के अपने आदेश में सीएक्यूएम को निर्देश दिया था कि “दिल्ली और एनसीआर में हर साल होने वाले वायु प्रदूषण के खतरे का स्थायी समाधान खोजने के लिए, आम जनता के साथ-साथ क्षेत्र के विशेषज्ञों से भी सुझाव आमंत्रित किए जा सकते हैं.

बायो डि-कंपोजर के घोल पर इसलिए जोर दे रही दिल्ली सरकार

दिल्ली क्षेत्र में पराली को गलाने के लिए दिल्ली सरकार ने साल 2021 में 24 सितंबर से ही बायो डि-कंपोजर का घोल बनाना शुरू कर दिया था. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के सहयोग से खरखरी नाहर में यह घोल तैयार किया जा रहा था. दिल्ली सरकार का दावा है कि इस घोल की थर्ड पार्टी ऑडिट रिपोर्ट से किसान काफी उत्साहित हैं. किसान बासमती धान वाले खेतों में भी छिड़काव की मांग कर रहे हैं. इसलिए इस बार चार हजार एकड़ खेत के लिए घोल तैयार किया जा रहा है, जबकि पिछले साल दो हजार एकड़ खेत में छिड़काव किया गया था.

1- 90 फीसद किसानों ने कहा है कि बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद 15 से 20 दिनों में पराली गल जाती है, जबकि पहले पराली को गलाने में 40-45 दिन लगते थे.

2- पहले किसानों को गेहूं की बुवाई से पहले 06-07 बार खेत की जुताई करनी पड़ती थी, जबकि बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद केवल 1 से 2 बार ही खेत की जुताई करनी पड़ी.

3- मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 05 फीसद से बढ़कर 42 फीसद हो गई है.

4- मिट्टी में नाइट्रोजन मात्रा 24 फीसद तक बढ़ गई है.

5- मिट्टी में वैक्टीरिया की संख्या और फंगल (कवकों) की संख्या में क्रमशः 7 गुना और 3 गुना की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

6- मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के कारण गेहूं के बीजों का अंकुरण 17 फीसद से बढ़कर 20 फीसद हो गया.

7- 45 फीसद किसानों ने यह स्वीकार किया है कि बायो डि-कंपोजर के इस्तेमाल के बाद डीएपी खाद की मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में 46 किलोग्राम प्रति एकड़ से घटाकर 36-40 किलोग्राम प्रति एकड़ हो गई है.

8- बायो डि-कंपोजर के छिड़काव के बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ गई, जिसके चलते गेहूं की उपज 05 फीसद बढ़कर 08 फीसद हो गई.

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