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स्थापना दिवस पर विशेष-जानें ‘प्रताप’ के संघर्ष की कहानी

अनूप शुक्ला की रिपोर्ट साप्ताहिक प्रताप का शुभारम्भ 9 नवम्बर 1913( कर्तिक शुक्ल 11 देवोत्थानी एकादशी संवत 1970) को फीलखाना कानपुर की पीलीकोठी के 4 रुपये महीने के किराये के एक भाग से हुआ/ पत्र संस्थापक थे चार मित्र बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा , प. शिवनारायण मिश्र , यशोदानन्दन शुक्ल व गणेशशंकर विद्यार्थी | प्रताप का नामकरण नारायणप्रसाद अरोड़ा ने ब्राह्मण के संपादक प. प्रतापनारायण मिश्र की स्मृति को लेकर किया वही विद्यार्थी जी ने प्रताप को महाराणा प्रताप से जोड़ा , दोनो महापुरुषो पर दोनो ने प्रवेशांक मे लिखा था |

बाबू नारायणप्रसाद अरोडा मैनेजर , प. शिवनारायण मिश्र प्रताप प्रेस की अन्य व्यवस्था और कारोनेशन प्रेस के स्वामी यशोदानन्दन शुक्ल जी प्रकाशन का काम | अरोड़ा जी ने प्रताप के लिए १२७ रुपये का टाइप मंगाया | प्रताप के संस्थापक पारिश्रमिक नही लेते थे , सिर्फ विद्यार्थी जी संपादन कार्य का ३० रुपया मासिक लेते थे | प्रताप को निकले करीब चार माह हुए थे कि विद्यार्थी जी व कारोनेशन प्रेस के स्वामी यशोदानन्दन शुक्ल से कहासुनी हो गई और शुक्ल जी ने प्रताप का छापना बंद कर दिया |

प्रताप को उभारने के लिए बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा ने 750 रुपये व प. शिवनारायण मिश्र ने 500 रुपये दिए और साप्ताहिक प्रताप का नया प्रिंटिंग प्रेस पीली कोठी मे स्थापित हुआ | प्रताप मे पाचवें महीने मे विद्यार्थी जी व अरोड़ा जी मे मतभेद हो गया/ और इसका कारण बना एक विग्यापन | मनमुटाव के कारण एक साथ काम करना कठिन होने लगा तब महाशय काशीनाथ , वेंकटेशनारायण तिवारी ,प. ब्रह्मानंद बीच मे पड़े | महाशय काशीनाथ ने अरोड़ा जी से कहा कि आप काम मे लगे हो (उस समय नारायणप्रसाद अरोड़ा मारवाड़ी विद्यालय के हेड मास्टर थे ) विद्यार्थी जी का एकमात्र सहारा प्रताप है अत: प्रताप इन्हे दे दे | अरोड़ा जी मान तो गये पर अपना पैसा वापस माँगा |

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विद्यार्थी जी के पास उस समय पैसा न था | अत: महाशय काशीनाथ जी ने अपने पास से अरोड़ा जी का पैसा अदा किया | और प्रताप गणेशशंकर विद्यार्थी जी को मिला | नौ महीने मे प्रताप से दो संस्थापक प. यशोदानन्दन शुक्ल व बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा अलग हो गये | विद्यार्थी जी व्यवहारकुशल व स्वस्थ ह्रदय के व्यक्ति थे उन्होंने अरोड़ा जी को पत्र लिखकर और घर जाकर मना लिया और अरोडा जी दृवित हो गये और तन मन धन से प्रताप का सहयोग करने का वायदा किया | बाद मे प्रताप को ठीक से संचालित करने के लिए एक 5 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन 15 मार्च 1919 को किया गया | ट्रस्ट मे मैथलीशरण गुप्त, डा. जवाहरलाल रोहतगी, लाला फूलचन्द जैन, शिवनारायण मिश्र , गणेशशंकर विद्यार्थी थे | इस प्रकार प्रतापी ” प्रताप ” के सम्पूर्ण कर्ताधर्ता बने विद्यार्थी जी |(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासकार हैं)

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