करौली हिंसा के बाद खुलकर सामने आई राजस्थान बीजेपी की लड़ाई,

न्यूज जंगल नेटवर्क, कानपुर :-राजस्थान बीजेपी में फिलहाल कुछ भी सही नहीं चल रहा है. यहां पार्टी के नेता अपनी ढपली अपना राग की तर्ज़ पर अपनी-अपनी नेतागिरी चमकाने में लगे हैं और इसके चलते अब पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को दखल देना पड़ा है. अब राजस्थान बीजेपी के नेताओं को एक साथ चलने और मिलकर रहने का पाठ पढ़ाने के लिए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार 19 अप्रैल को राजस्थान बीजेपी के तमाम नेताओं को दिल्ली तलब किया है.

खुलकर सामने आई पार्टी की लड़ाई
वैसे तो राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बीच मनमुटाव लंबे अर्से से जारी है, लेकिन हाल में करौली में हुए साम्प्रदायिक तनाव के बाद बीजेपी नेताओं की आपसी लड़ाई खुलकर सामने आ गई और इसी का नतीजा है कि अब पार्टी आलाकमान को दखल देना पड़ा है. वैसे इस पूरे विवाद की असली जड़ 8 मार्च को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की तरफ़ से केशोंरायपाटन में किया गया शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है. देव दर्शन के बहाने वसुंधरा राजे ने प्रदेश के हाड़ोती में अपने जन्मदिन के मौक़े पर अपनी ताक़त का प्रदर्शन किया था. लेकिन प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया और वसुंधरा विरोधी अन्य गुट के नेताओं को वसुंधरा का ये शक्ति प्रदर्शन बिल्कुल रास नहीं आया था. 

इसके बाद करौली के दंगाग्रस्त इलाक़ों में वसुंधरा राजे के दौरे ने बीजेपी नेताओं की आपसी लड़ाई में आग में घी जैसा काम किया. दरअसल प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने करौली के मामले को लेकर एक कमेटी का गठन कर दिया था. ये कमेटी करौली का दौरा करके अपनी रिपोर्ट प्रदेश अध्यक्ष पूनिया को देती उसके पहले ही वसुंधरा राजे अपने कुछ ख़ास लोगों के साथ करौली का दौरा कर आईं और प्रदेश बीजेपी नेता ठगे से रह गए.

करौली में प्रदर्शन हुआ फ्लॉप
यहां तक भी ठीक था लेकिन जब प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने करौली में न्याय यात्रा निकालने की घोषणा कर दी तो लगा कि बीजेपी के तमाम नेता इसके साथ जुटेंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. पूनिया ने उस न्याय यात्रा के लिए बीजेपी के युवा मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या को जयपुर बुलाया. सही वक्त पर पूनिया और तेजस्वी सूर्या करौली रवाना भी हुए लेकिन जब उनकी यात्रा करौली के बॉर्डर पर पहुंची तो उसके साथ थे मुट्ठी भर कार्यकर्ता. बड़े नेताओं के नाम पर सिर्फ़ करौली सांसद मनोज राजोरिया पूनिया और तेजस्वी सूर्या के साथ दिखे. घंटे भर की नारेबाज़ी के बाद पूनिया की न्याय यात्रा की हवा निकल गई और बीजेपी के हिस्से आयी किरकिरी. पुलिस के ज़बरदस्त इंतज़ाम के आगे पूनिया और तेजस्वी सूर्या की दाल गली नहीं और जैसे तैसे इन नेताओं ने अपनी गिरफ़्तारी देकर फेल हुई न्याय यात्रा से अपनी इज्जत बचाई. बस इसी मुद्दे को लेकर राजस्थान बीजेपी के तमाम नेता आलाकमान के रडार पर आ गए.

सीएम पद को लेकर कई दावेदार
करौली में बीजेपी नेताओं की गुटबाजी के चलते पार्टी की हुई फजीहत को आलाकमान ने गंभीरता से लेते हुए अब सभी प्रदेश नेताओं को दिल्ली बुलाया है और संकेत साफ़ है कि अगर साथ नहीं चल सके तो आलाकमान अपना काम करेगा. पार्टी आलाकमान को राजस्थान की ख़ासी चिंता है, क्योंकि अब अगर देश के किसी बड़े राज्य में कांग्रेसी सरकार बची है तो वो राजस्थान ही है. इसलिए बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान में दिसंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पूरी नज़र गढ़ाए हुए बैठा है. लेकिन मुश्किल ये है कि अपनी-अपनी ढपली बजा रहे हर नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनना है. यहां जब वसुंधरा शक्ति प्रदर्शन करती है तो नारा सुनाई देता है – केसरिया में हरा हरा, राजस्थान में वसुंधरा…जब सतीश पूनिया अपने समर्थकों के साथ चलते हैं तो उनके समर्थक नारा लगाते हैं – देखो देखो कौन आया-शेर आया शेर आया, सतीश पूनिया कमल निशान, मांग रहा है राजस्थान…

वैसे बात सिर्फ नारों की होती तो भी समझा जा सकता था. नारों की गूंज दिल्ली दरबार तक सुनाई दे ही रही है, लेकिन एक दिक्कत ये भी है कि राजस्थान में सीएम की कुर्सी पर बैठने की इच्छा रखने वाले नेताओं की लिस्ट काफी लंबी है. इसमें सबसे ऊपर नाम पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया का है और सांसद राज्य वर्धन, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के अलावा लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को भी इस रेस में बताया जा रहा है. लेकिन अब इतना तो साफ है कि राजस्थान में अगला विधान सभा चुनाव सिर्फ और सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में लड़ा जाएगा. इस बात के संकेत खुद पार्टी के राष्ट्रीय नेता दे चुके हैं. 

नए अध्यक्ष को लेकर भी सवाल
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि वसुंधरा बनाम गुलाब चंद कटारिया, वसुंधरा बनाम गजेंद्र सिंह शेखावत, वसुंधरा बनाम सतीश पूनिया जैसी खाई को कैसे पाटा जाए. इतना ही नहीं पार्टी के केंद्रीय नेताओं के लिए एक बड़ी दिक्कत ये भी है कि राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पार्टी के संगठन महामंत्री चंद्र शेखर के बीच लम्बे समय से जारी विवाद पर कैसे काबू पाया जाए. सतीश पूनिया का कार्यकाल इस साल दिसंबर में पूरा हो रहा है और तब चुनाव सिर्फ 11 महीने दूर रह जाएंगे ऐसे में पूनिया को अन्य गुटों की इच्छा के खिलाफ आगे भी जिम्मेदारी देना किसी चुनौती से कम नहीं होगा और अगर नया अध्यक्ष बनाया गया तो चुनाव से पहले सबको साथ लेकर चलना नए अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगी. अब दिल्ली में इन्हीं तमाम मुश्किलों पर मंथन चल रहा है.

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