याद किए गए लाला लाजपत राय, जुटे गणमान्य नगारिक

जब लालाजी अंग्रेजी अर्थव्यवस्था के समानांतर बैंक स्थापित किया
अमेरिका प्रवास के दौरान इंडियन होमरूल लीग की स्थापना की
यंग इंडिया मैगजीन निकाली और इंडियन इनफार्मेशन ब्यूरो खोला
साइमन कमीशन का विरोध किया तो हुकूमत ने लाठियों से हत्या की

कानपुर। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी लाला लाजपत राय की शहादत को याद करके लोक सेवक मंडल के बैनर तले हुई श्रृद्धांजलि सभा में लालाजी को भावभीनी श्रृद्धांजलि दी गयी। उनके संस्मरण को याद किया गया।
स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय (28 जनवरी 1865 – 17 नवम्बर 1928) के शहीद दिवस पर सभा का आयोजन खलासी लाइन स्थित शास्त्री भवन में आयोजित किया गया था। गणमान्य नागरिक उपस्थिति में लालाजी के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया। वक्ताओं के विचार व्यक्त करने से पहले लोक सेवक मंडल हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल शशि कौशिक द्वारा प्रशिक्षित किए गए बच्चों ने लाला लाजपत राय के व्यक्तित्व और आजादी की लड़ाई में उनके योगदान पर व्याख्यान देते हुए श्रृद्धांजलि दी।
लालाजी देश के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था के समानांतर लालाजी ने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना की थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं में लाल-बाल-पाल में से एक लाला लाजपत राय थे। सन 1928 में साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, इस दौरान हुए लाठी चार्ज में बुरी तरह से घायल हो गये और 17 नवम्बर सन 1928 को इनकी महान आत्मा ने पार्थिव देह त्याग दी।
लाला लाजपत राय को बचपन से ही लिखने और भाषण देने का शौक था। जब स्कूल में थे, तभी इनकी मुलाकात आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती से हुई। उन दिनों देश में ब्रिटिश राज का आतंक हर ओर फैला हुआ था। यह देखकर लाला लाजपत राय ने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना सर्वस्व समर्पित करने का फैसला लिया। उनका मानना था कि जब तक देश का एक-एक युवक आगे आकर पहल नहीं करेगा, तब तक अंग्रेजों के अत्याचार ऐसे ही बढ़ते रहेंगे।
वह समझ गए थे कि अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए अपनी लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाना है। उन्होंने विदेशों में जाकर भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेक कार्य किए। जब वह भारत लौटे तो असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए। उन्होंने पंजाब में इस आंदोलन की बागडोर संभाली। सन 1928 में इंग्लैंड के जाने-माने वकील सर जॉन साइमन की अगुवाई में सात सदस्यीय एक कमिशन भारत आया। कमिशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कमिशन में किसी भारतीय प्रतिनिधि के न होने के कारण हर ओर इसका विरोध हो रहा था। 28 अक्टूबर 1928 को लाहौर में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की अगुआई लाला लाजपत राय कर रहे थे।
श्र्द्धांजलि सभा में वक्ताओं ने देश की आज़ादी में उनके योगदान को याद किया। सभा की अध्यक्षता लोक सेवक मंडल के उपाध्यक्ष रामकिशोर वाजपेयी तथा संचालन वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने किया। इस अवसर पर रामकिशोर वाजपेयी, प्रो शिवकुमार दीक्षित, जगदम्बा भाई, छोटा भाई नरोन्हा, जगदम्बा भाई, श्याम जी भाई आदि ने लाला लाजपत राय से जुड़े संस्मरण बताते हुए श्र्द्धांजलि दी। अंत में लोकसेवक मंडल हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल शशि कौशिक ने धन्यवाद ज्ञापित किया और स्कूल में आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी दी। कार्यक्रम की विशेषता यह रही के बच्चों प्राची, निहारिका, फ़ाज़िल, प्रशांत ने भी लाला लाजपत राय पर व्यख्यान दिया। विद्यालय प्रिंसिपल शशि कौशिक ने धन्यवाद दिया।
लाला जी के बोल-
-अतीत को देखते रहना व्यर्थ है, जब तक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिए कार्य न किया जाए।
-सार्वजनिक जीवन में अनुशासन को बनाए रखना और उसका पालन करना बहुत आवश्यक है, अन्यथा प्रगति के मार्ग में बाधा खड़ी हो जाएगी।
-दूसरों पर विश्वास न रखकर स्वयं पर विश्वास करो। आप अपने ही प्रयत्नों से सफल हो सकते हैं, क्योंकि राष्ट्र का निर्माण अपने ही बलबूते पर होता है।
-असफलता और पराजय कभी- कभी विजय की ओर आवश्यक कदम होते हैं।
-व्यक्ति को सोचने का पूरा अधिकार है, पर उस सोच को भाषा या कार्यरूप में व्यक्त करते समय वह अधिकार, शर्तों और सीमाओं में बंध जाता है।
• नैतिक पहलू से अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर जोर देना उत्तम है। जो कर्तव्यों से अधिक अधिकारों पर जोर देते हैं, वे स्वार्थी, दम्भी और आत्मकेन्द्रित हो जाता है।

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