विधानसभा चुनावों को देखते हुए पूर्व कट्टर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और वाम दल होंगे एकजुट
वामपंथियों और कांग्रेस के बीच पहले दौर की बातचीत में ज्यादातर संयुक्त मोर्चा बनाने के साथ-साथ सीट बंटवारे पर जोर दिया गया. सूत्रों ने कहा कि अलग-अलग सीटों पर पार्टियों की मजबूती बंटवारे का फैसला करने का मानदंड होना चाहिए. हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा कि वामपंथी और कांग्रेस के लिए एकजुट होकर लड़ना आसान नहीं होगा क्योंकि वे 25 साल से कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं ।,
Political Desk : त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनावों (Tripura Assembly Elections) को देखते हुए पूर्व कट्टर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और वाम दलों (Congress-left Alliance) ने गुरुवार को एकजुट होकर लड़ाई के लिए अपनी पहली बैठक करी है । और बैठक में दोनों दलों ने राज्य में अगले महीने होने वाले चुनाव से पहले 21 जनवरी को एक संयुक्त रैली की घोषणा करी है । सचिव जितेंद्र चौधरी ने बोला कि बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद से मतदान की अनुमति नहीं दि.या है । और वह सभी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों से फासीवादी सरकार के खिलाफ एकजुट होने की अपील कर रहे हैं ।
इस दौरान चौधरी ने आह्वान किया कि भाजपा से नाखुश चल रहे सभी लोग रैली में हिस्सा लें और चौधरी ने जोर देकर बोला कि रैली में किसी भी पार्टी का झंडा नहीं होगा । और उन्होंने स्पष्ट किया कि वे 16 फरवरी को होने जा रहे चुनावों के लिए किसी भी गठबंधन के लिए तृणमूल कांग्रेस (TMC) के पास नहीं जाएंगे. सूत्रों ने बताया कि राज्य के जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) की सीटों पर काबिज पार्टी टिपरा मोथा के पास वामपंथी और कांग्रेस बातचीत के लिए पहुंचे थे लेकिन अभी तक वार्ता से कुछ भी ठोस नहीं निकला है ।
आपको बता दें कि वामपंथियों और कांग्रेस के बीच पहले दौर की बातचीत में ज्यादातर संयुक्त मोर्चा बनाने के साथ-साथ सीट बंटवारे पर जोर दिया गया गया है । सूत्रों ने बोला कि अलग-अलग सीटों पर पार्टियों की मजबूती बंटवारे का फैसला करने का मानदंड होना चाहिए. और , विशेषज्ञों ने बोला कि वामपंथी और कांग्रेस के लिए एकजुट होकर लड़ना आसान नहीं होगा क्योंकि वे 25 साल से कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं. 2016 में, उन्होंने बंगाल में इसी तरह के मॉडल की कोशिश की लेकिन असफल रहे थे । वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर उन्हें टिपरा मोथा का समर्थन मिलता है, जो कि तिप्रालैंड की मांग कर रहे हैं और त्रिपुरा की 60 में से 20 सीटों पर प्रभाव रखते हैं, तो सहयोगियों के लिए स्थिति बदल सकती है ।
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