रोजाना 30 से अधिक प्रसव होते ,इसके बावजूद रेडियोलाजिस्ट की तैनाती नहीं

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News Jungal Desk Kanpur : सूबे के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भले ही शहर शहर घूम घूम कर अपने नंबर बढ़ा रहे है लेकिन जब कानपुर का नंबर आता है तो शायद उनकी गाडी का ड्राइवर लखनऊ कानपुर हाई वे से कहीं दूसरे शहर गाड़ी मोड़ लेता है। शायद यही वजह है कि शहर का मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर इतने बुरे हाल में है। शहर के दो सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों हैलट और उर्सला में पिछले कई दिनों से कहीं रेडियोलाजिस्ट नहीं तो तो कहीं पिछले एक साल से एक्सरे, एमआरआई मशीन और अल्ट्रासाउंड खराब है। शहर का हर सरकारी अस्पताल जुगाड़ से चल रहा है। हालात यह है कि एक अस्पताल में हुई जांच के लिए मरीज को दूसरे अस्पताल की जांच रिपोर्ट दी जा रही है क्योंकि रिपोर्ट बनाने वाले स्थायी रेडियोलॉजिस्ट ही इन दोनों अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है। मरीजों को जांच रिपोर्ट के लिए कई दिनों तक इन्तज़ार करना पड़ता है। ताजा हाल यह है कि उर्सला में इससे पहले तक मरीज हैलट पर निर्भर रहते थे लेकिन पिछले हफ्ते हुए तबादलों के बाद अब हैलट में भी कोई रेडियोलाजिस्ट नहीं है।

रोजाना 30 से अधिक प्रसव होते हैं,बावजूद इसके रेडियोलाजिस्ट की तैनाती नहीं
उर्सला और डफरिन अस्पताल में रोजाना 30 से अधिक प्रसव होते हैं, इसके बावजूद यहां रेडियोलाजिस्ट की तैनाती नहीं है। गर्भवती के शिशु की स्थिति जानने के लिए अल्ट्रासाउंड जांच जरूरी है। रेडियोलाजिस्ट की देखरेख में यह जांच होती है। ऐसे में यहां रेडियोलाजिस्ट की तैनाती नहीं होने से दूसरे अस्पतालों से हफ्ते में तीन दिन के लिए विशेषज्ञ को बुलाया जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए अस्पताल प्रशासन कई बार लिखा-पढ़ी कर चुका है, लेकिन शासन स्तर से तैनाती नहीं हो रही है। वहीं यहां पर कार्य अधिक होने की वजह से भी कई रेडियोलाजिस्ट यहां पर अपनी तैनाती से बचते है। यहां आने वाली महिलाएं और मरीज प्राइवेट अल्ट्रासाउंड और एक्स रे सेंटर पर निर्भर रहने को मजबूर है।

पिछले हफ्ते हैलट के रेडियोलाजिस्ट का हुआ था तबादला…
हैलट अस्पताल के में पिछले करीब डेढ़ से दो महीनों से एक्सरे मशीन खराब चल रही थी वहीं अल्ट्रासाउंड के लिए भी मरीजों को इंतजार करना पड़ता था क्योकि यहां की मशीन अक्सर खराब रहती है, यह तो कभी अधिक काम होने के चलते रेडियोलाजिस्ट उपलब्ध नहीं होता। मरीजों को कई कई दिनों की वेटिंग की पर्ची थमा दी जाती थी। एक रेडियोलॉजी के डॉ अशोक वर्मा यहां का पूरा विभाग संभाल रहे थे वो भी बिना टेक्नीशियन के जैसे एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई तक, लेकिन उनका भी तबादला दो हफ्ते पहले बांदा मेडिकल कॉलेज कर दिया गया। सूत्रों की माने तो हैलट में पिछले कई दिनों से मरीजों का एक्सरे और रेडियोलोजी की जांचे प्राइवेट पैथोलॉजी पर ही निर्भर है।

एक साल से खराब है सीटी स्कैन मशीन
सीटी स्कैन मशीन खराब होने की बात जब हमने उर्सला के सीएमएस डॉ अनिल निगम से पूछी तो उन्होंने बताया कि, इस अस्पताल में पिछले एक साल से सीटी स्कैन मशीन खराब चल रही है। इस सुविधा का लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है। अस्पताल में एमआरआई मशीन तो है तकनीशियन भी है लेकिन रेडियोलाजिस्ट नहीं जिसके चलते एमआरआई कराने आने वाले मरीजों को उनकी रिपोर्ट नहीं मिल पाती। रोजाना 10 से 12 मरीजों को यहां से लौटाया जाता है। इससे पहले एमआरआई की रिपोर्ट के लिए हैलट अस्पताल के एकमात्र रेडियोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ पर निर्भर रहना पड़ता था लेकिन अब उनका भी तबादला हो गया है।

उर्सला और डफरिन से रेडियोलाजिस्ट अल्ट्रासाउंड जांच करने आते
उर्सला और डफरिन की गर्भवती महिलाएं अल्ट्रासाउंड जांच के लिए कांशीराम अस्पताल की दया पर निर्भर है। यहां से रेडियोलाजिस्ट मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार को अल्ट्रासाउंड जांच करने आते है। या फिर यहां के डॉक्टर कांशीराम अस्पताल रेफर कर देते है जोकि इस अस्पताल से करीब 14 किमी है।

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प्राचार्य डॉ संजय काला से ली गयी जानकारी
जब मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ संजय काला से रेडियोलोजी डिपार्टमेंट के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने कहा, डॉ अशोक का ट्रांसफर हुआ है और यहां कई महीनों से टेक्नीशियन भी नहीं है लेकिन डॉ अशोक ने सब कुछ संभल रखा था। उनको अभी हम लोगों ने रिलीव नहीं किया है। जब तक हमको इस विभाग के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं मिल जाता तब तक हम इनको नहीं रिलीव करेंगे। वहीं उर्सला क सीएमएस ने कहा, शासन को कई बार यहाँ पर रेडियोलाजिस्ट की नियुक्ति और सीटी स्कैन मशीन के बारे में जानकारी दी गई, पत्र लिखे गए लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला। हम लोग तो बस उम्मीद ही कर सकते है।

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