यूपीसीए में आरोपों की फाइलों में धूल की परत होती जा रही मोटी

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News Jungal Desk Kanpur : यूपीसीए में क्रिकेट के अलावा और भी बहुत से खेल खेले जा रहे हैं। ऐसा ही आर्थिक अपराध से जुड़ा एक खेल सामने आया है। इसमें संघ के जुड़े जिम्मेदारों पर यूपी की आर्थिक अपराध शाखा ने राजस्व चोरी के अपराध तय कर दिए हैं। शिकायत के आठ साल बाद जेके कॉटन ग्रुप के साथ मिलकर लाखों के आर्थिक अपराध का गुनाह तब सामने आया है, जब प्रधानमंत्री को शिकायत के एक साल बाद रिमाइंडर किया गया।

इसके बाद शिकायतकर्ता को जानकारी दी गई। कई सालों बाद भी इस अपराध के दोषी जांच की आड़ में खुद को बचाए हुए हैं। आरोप साबित करने वाली रिपोर्ट की फाइलों में धूल की परत मोटी होती जा रही है। आइए आपको सिलसिले वार तरीके से समझाते हैं, आखिर क्या है पूरा मामला…

किराए के ग्राउंड से शुरू हुआ खेल

एक फरवरी, 2007 को जेके कॉटन और यूपीसीए के बीच में 100 रुपए के स्टाम्प पर 11-11 महीने के लिए एक साथ तीन सालों के लिए समझौता किया गया। इसके तहत कमला क्लब स्टेडियम का दो लाख 42 हजार प्रति माह किराया तय हुआ, जो सालभर में कुल 29 लाख 4 हजार हुआ। साथ में यह भी तय हुआ कि 22 लाख रुपए यूपीसीए जेके कॉटन को बतौर जमानत राशि भुगतान करेगा। उसके बाद हर महीने का किराया देता रहेगा।

यह जमा राशि समझौता खत्म होने की दशा में बिना ब्याज के वापस की जाएगी। हर साल किराए की राशि में 10 फीसदी की बढ़ोतरी की भी की जाएगी। जैसे 2007 में जो किराया 29 लाख 4 हजार था। वह 2008 में 2 लाख 66 हजार 200 के हिसाब से बढ़कर 31 लाख 94 हजार 840 हुआ। इसी तरह से वर्ष 2009 में प्रति महीने का किराया 2,92,820 रुपये प्रति महीने और साल का 35,13,840 रुपये तय हुआ। इस हिसाब से तीन वर्षों में कुल किराया एक करोड़ 18 लाख 12 हजार 240 रुपए हुआ।

अब समझे राजस्व के नुकसान को

आगरा के शिकायतकर्ता अधिवक्ता योगेश कुमार कुलश्रेष्ठ के मुताबिक, पहले तीन सालों में किराए की कुल रकम पर चार फीसदी के हिसाब से स्टाम्प ड्यूटी 4,72,490 रुपए होती है, जो जमा नहीं की गई। इससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ। शिकायत करने वाले अधिवक्ता का आरोप है कि 2007 से लेकर 2018 तक कुल लगभग 62,43,855 रुपए की राजस्व की क्षति हुई है।

इसमें दो पर्सेंट प्रतिमाह के हिसाब से पेनाल्टी लगाने को भी नियमानुसार जोड़ा जाए, तो यह साल का 24 परसेंट होता है। इतना ही नहीं जेके कॉटन द्वारा ली गई जमानत राशि पर भी राजस्व बनाता है। अधिवक्ता योगेश की दलील है कि रजिस्ट्रेशन अधिनियम कि धारा 17 के अंतर्गत तीन वर्षों के लिए किराएदारी अनुबंध में पंजीकरण अनिवार्य है। इससे साफ होता है कि यूपीसीए और जेके कॉटन ने मिलकर राजस्व चोरी की नियत से तीन साल का एग्रीमेंट 11-11 महीने के लिए किया, जो पूरी तरह से अवैध है।

प्रधानमंत्री से शिकायत के बाद सामने आई राजस्व चोरी की रिपोर्ट

साल 2014 में आगरा के वकील द्वारा की गई शिकायत पर जब किसी भी तरह से कोई कार्यवाही नहीं हुई, तो उनके द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को वर्ष 2019 में शिकायती पत्र प्रमाण सहित भेजा गया। दोबारा 2020 में रिमाइंडर करने के बाद कानपुर के उप-निबंधक सदन चतुर्थ कानपुर के आलोक शुक्ला द्वारा दी गई रिपोर्ट में सिर्फ तीन वर्षों के राजस्व की क्षति का मामला सामने आया।

रिपोर्ट में साल 2007 से 2009 तक कुल राजस्व के नुकसान को तीन लाख 64 हजार 520 रुपए दर्शाया गया है। उसमें माना गया है कि बिना किसी रजिस्ट्रेशन के अनुबंध किया गया है, जिससे राजस्व नुकसान हुआ है। यह अनुबंध पूरी तरह से नियम विरुद्ध है। इसमें पेनाल्टी सहित राजस्व वसूलने के साथ सजा का भी प्रावधान है।

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किरायेदारीनामा में कई नियमों को दरकिनार करने के बिंदु सामने आए

यूपीसीए और जेके कॉटन के बीच हुए किरायेदारीनामा में कई नियमों को दरकिनार करने के बिंदु सामने आए हैं। अधिवक्ता कुलश्रेष्ठ के मुताबिक, दोनों पार्टियों के बीच किसी भी तरह का विवाद होने पर एक पक्षी व्यक्ति को विवाद सुलझाने के लिए रखा गया है। मगर, यूपीसीए और जेके कॉटन के हुए समझौते में जेके ग्रुप के तत्कालीन डायरेक्टर यदुपति सिंघानिया को मध्यस्थ बनाया गया है, जो कि नियम विरुद्ध है। उन्होंने बताया 2007 से लेकर 2009 तक के किरायेदारी एग्रीमेंट के पेज नंबर सात के सातवें बिंदु में इसका लिखित प्रमाण भी है।

यूपीसीए को नही है कोई जानकारी

इस मसले पर जब यूपीसीए के सचिव प्रदीप गुप्ता का कहना है कि उनको इस संदर्भ में किसी तरह की कोई जानकारी नही है। जब संघ के कानूनी सलाहकार अधिवक्ता अनिल कामथांन से जानकारी ली गई, तो उन्होने बताया कि वर्ष 2015 मई से रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट किया गया है। इसके लिए जरूरी कानूनी अनिवार्यताएं पूरी की जा रही हैं। पूर्व में हुए रेंट एग्रीमेंट के बारे में उन्होंने कुछ भी बोलने से साफ किनारा कर लिया। इससे साफ है कि 2015 से पहले रेंट अग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं किया गया। वहीं शिकायतकर्ता ने प्रधानमंत्री से शिकायत करते हुए आरोप लगाया कि साल 2018 तक बिना रजिस्ट्रेशन के किरायानामा किया गया था।

ईओडब्ल्यू ने मानी राजस्व चोरी

आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के जांच प्रभारी सुखदेव सिंह ने बताया कि यूपीसीए ने वर्ष 2007 से लेकर 2009 तक एग्रीमेंट 100 रुपए के स्टाम्प में किया। यह पूरी तरह से रेंटल एग्रीमेंट अधिनियम का उल्लंघन था। इस संदर्भ में ईओडब्ल्यू द्वारा अपनी जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। अब आगे की कार्यवाही शासन द्वारा की जानी है। उन्होंने बताया कि शासन स्तर से चोरी किए गए राजस्व पर चक्रवृद्धि ब्याज सहित वसूली की जाएगी। इसका निर्धारण राजस्व विभाग द्वारा ही किया जाता है।

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