हमारे खून में दौड़ रहा है माइक्रोप्लास्टिक, पहली बार हुई आधिकारिक पुष्टि।
प्लास्टिक प्रदूषण का मानवों पर कितना प्रभाव हो रहा है , यहां तक कि हममें से बहुत से लोगों नसों तक में प्लास्टिक की धूल खून के साथ दौड़ रही है.
कानपुर न्यूज जंगल डेस्क : प्लास्टिक का प्रदूषण (Plastic Pollution) दुनिया के कोने कोने में पहुंच रहा है. महासागरों की गहराइयों तक में प्लास्टिक के कण पहुंचने लगे हैं. यहां तक कि हममें से बहुत से लोगों नसों तक में प्लास्टिक की धूल खून के साथ दौड़ रही है. हाल में हुए एक अध्ययन में जब यह जानने का प्रयास किया गया कि मानव ऊतकों (Human Tissues) में सूक्ष्म प्लास्टिक प्रदूषक (Micro Plastic Pollutants) कितने हैं तो जो नतीजे मिले तो वैज्ञानिकों हैरानी नहीं हुई. इस अध्ययन का एक बड़ा नतीजा यह भी था कि पृथ्वी में ऐसी कोई जगह नहीं है जो पॉलिमर कोहरे से मुक्त हो. इसमें ऊंचे पर्वतों से लेकर हमें सबसे आंतरिक अंग भी शामिल हैं.
क्या किया गया अध्ययन में
हमारे खून में कितना सूक्ष्म प्लास्टिक है, यह जानकारी इस बारे में नई जागरूकता पैदा करती है कि प्लास्टिक का कचरा कितना बड़ा पारिस्थितिकी मुद्दा बनता जा रहा है. एम्स्टर्डम की व्र्ज यूनिवर्सिटी और द एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ने शोधकर्ताओं ने अज्ञात 22 स्वस्थ्य खून दानकर्ताओं ने खून के नमूनों का अध्ययन किया जिससे वे उनमें 700 नैनोमीटर से बड़े आम सिंथेटिक पॉलिमर्स के संकेतों की तलाश कर रहे थे.
कितने नमूनों में मिले प्लास्टिक कण
शोधकर्ताओं ने अपने जांच उपकरणों के संक्रमण रहित रखने की लंबी प्रक्रियाओं के बाद नमूनों में प्लास्टिक के कणों के रासायनिक विन्यास और भार की पहचान के लिए दो अलग अलग पद्धतियों का उपयोग कर 17 नमूनों में प्लास्टिक के बहुत से नमूनों के प्रमाण उजागर किए. नमूनों में सटीक संयोजन की विभिन्नता थी.विज्ञापन
PET भी शामिल था उनमें
इन नमूनों में जो माइक्रोप्लास्टिक पाए गए उनमें पॉलीईथायलीन टैरेफ्थालेट (PET) भी शामिल था जो आमतौर पर कपड़ों से लेकर पीने की बोतलों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा उनमें स्टायरीन के पॉलिमर भी पाए गए जो गाड़ियों के हिस्सों, कार्पेट, खाने के कंटेनर आदि में होते हैं. औसतन हर मिलीलीटर के खून में 1.6 माइक्रोग्राम का प्लास्टिक पदार्थ पाया गया जिसमें सबसे ज्यादा मात्रा 7 माइक्रोग्राम की थे.
महीन कणों का शरीर में घुसना आसान
शोधकर्ता जांच पद्धति की सीमाओं के कारण कणों के आकार का सटीक विवरण नहीं दे सके. लेकिन यह आसानी से माना जा सकता है कि 100 माइक्रोमीटर से बड़े कणों की तुलना में विश्लेषण के 700 नौनोमीटर की सीमा के पास के छोटे कणों के लिए शरीर में प्रवेश पाना आसान था. इसके बावजूद भी अभी यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया जा सका कि इसका हमारी सेहत के लिए क्या दूरगामी मतलब हो सकते हैं.
बढ़ती रहेगी मात्रा
एक तरफ हम यह नहीं जानते कि इन महीन प्लास्टिक कणों का हमारी कोशिकाओं पर क्या रासायनिक और भौतिक असर होता है, जानवरों पर हुए अध्ययन बताते हैं कि इसके गंभीर प्रभाव होता है लेकिन इससे सीधे तौर पर इंसानों की सेहत के लिए नतीजे नहीं निकाले जा सकते हैं. लेकिन समस्या बढ़ रही है यह साफ है. साल 2040 हमारे महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा दो गुनी हो जाएगी. खारिज किए जूते स्टियरिंग व्हील, चॉकलेट रैपर, पैकेट आदि सभी धीरे धीरे हमारे खून में आने का रास्ता खोज लेंगे.
एक सीमा के बाद परेशानी तय
अगर यह ऐसी खुराक है जो जहर बनाती है तो संभव है कि हमें किसी बिंदु पर सीमा पार कर जाएं जहां तुलनात्मक रूप से स्टायरीन और पेट के संकेत हम पर कुछ चेताने वाले असर दिखाना शुरू कर दें. ऐसा कोशिकाओं के विकास में हो सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है की हम जानते हैं कि शिशु और तरुण बच्चे रासायनिक और कणों का समाना करने के लिहाज से कितने कमजोर हैं. जो कि चिंता की बात है.
एन्वायर्नमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित इस अध्ययन से एक निष्कर्ष यह भी निकाला जा सकता है कि सिंथेटिक की दुनिया में बनने वाली धूल को हमारे फेफड़े, अंतड़ियां आदि पूरी तरह से नहीं छान पाते हैं. एक सवाल यह भी है कि क्या प्लास्टिक प्लाज्मा में खुले तौर रहे हैं या फिर उन्हें सफेद रक्त कोशिकाएं निगल जाती हैं. फिर भी इस मामले में और ज्यादा लेकिन व्यापक शोध की बहुत जरूरत है जिससे यह पता चल सके कि हमारे शरीर सूक्ष्म प्लास्टिक प्रदूषकों से कैसे निपटता है.
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