हाईकोर्ट कोर्ट ने कहा बच्चों की खुशी के लिए मतभेदों को दूर करें माता-पिता

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हाईकोर्ट ने कहा पिता अपने बच्चे का नैसर्गिक संरक्षक होता है. पति-पत्नी में परस्पर हत्या की कोशिश जैसे गंभीर आरोप-प्रत्यारोप को लेकर पिता के चंगुल से छुड़ाने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करना उचित नहीं है. कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और आदेश दिया कि याची अपने पिता के साथ रहेगा ।

न्यूज जंगल डेस्क कानपुर : पति-पत्नी के बीच मनमुटाव और मतभेदों के चलते अदालत की दहलीज पर पहुंचे मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणी दिया है । हाईकोर्ट ने इटावा के दंपति के बीच रिश्तों में कड़वाहट के मामले की सुनवाई करते हुए बच्चे की इच्छा को देखते हुए कहा है कि माता-पिता अपने बच्चों की खुशी और शांति के लिए आपसी मतभेदों को दूर कर ले ।

कोर्ट ने कहा है कि पिता अपने बच्चे का नैसर्गिक संरक्षक होता है. पति-पत्नी में परस्पर हत्या की कोशिश जैसे गंभीर आरोप-प्रत्यारोप को लेकर पिता के चंगुल से छुड़ाने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करना सही नहीं है । कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और आदेश दिया कि याची पर अपने पिता के साथ रहेगा । मां और पिता हर रविवार एक दूसरे के घर जाकर बच्चों से मुलाकात कर सकते हैं और इस दौरान विवाद नहीं करेंगे और कोई अवरोध उत्पन्न नहीं करेगा । इसके साथ ही एफआईआर के विवेचना अधिकारी को निर्देश दिया गया है । कि वे दोनों की काउंसलिंग व मिडिएशन कराएं जिससे कि उनके बीच के मतभेद दूर हो जाए ।

कोर्ट ने कहा परिवार में संबंध बिगड़ने का बच्चों पर बुरा असर पड़ता है .और इसलिए मतभेद दूर करें. यह आदेश जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने 7 वर्षीय ग्रंथ वर्मा की तरफ से मां आशी वर्मा द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया गया है । मामले में याची की मां आशी वर्मा ने आरोप लगाया कि उसके पति गौरव वर्मा ने उसके 7 वर्षीय बच्चे को बंदी बना रखा है. उनका पति वर्षों से उत्पीड़न करता रहा है और पुलिस के साथ बच्चे को लेने गई तो दुर्व्यवहार किया. लिहाजा, उसे उसका बच्चा वापस दिलाया जाए. कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि बच्चा अपने पिता के साथ खुश है और वह वहीं रहकर पढ़ाई करना चाहता है. उसे अपने पिता से कोई शिकायत नहीं है. ऐसे में याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता है .

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