अमेरिका में गुदा कैंसर के मरीजों को छह महीने तक एक दवा दी गई और उनमें कैंसर गायब हो गया. चेचक, पोलियो, यलो फीवर, रेबीज जैसी कई ऐसी बीमारियां हैं,
न्यूज जंगल कानपुर डेस्क :- कैंसर का इलाज खोज रहे वैज्ञानिकों को एक चमत्कारी कामयाबी मिली है. अमेरिका में गुदा के कैंसर के 18 मरीजों को ट्रायल के तौर पर एक दवा दी गई, जिसके करीब छह महीने इस्तेमाल के बाद उनमें कैंसर पूरी तरह गायब हो गया. कैंसर को दवाओं के जरिए पूरी तरह खत्म करने का ये पहला मामला है. इससे कैंसर के इलाज की उम्मीद जगी है. हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब एक जमाने में लाइलाज और जानलेवा मानी जाने वाली बीमारियों को दवाओं और वैक्सीन के जरिए खत्म किया गया है. आइए बताते हैं, ऐसी ही कुछ बीमारियों और उनके इलाज के बारे में-
कैंसर का इलाज खोज रहे वैज्ञानिकों को एक चमत्कारी कामयाबी मिली है. अमेरिका में गुदा के कैंसर के 18 मरीजों को ट्रायल के तौर पर एक दवा दी गई, जिसके करीब छह महीने इस्तेमाल के बाद उनमें कैंसर पूरी तरह गायब हो गया. कैंसर को दवाओं के जरिए पूरी तरह खत्म करने का ये पहला मामला है. इससे कैंसर के इलाज की उम्मीद जगी है. हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब एक जमाने में लाइलाज और जानलेवा मानी जाने वाली बीमारियों को दवाओं और वैक्सीन के जरिए खत्म किया गया है. आइए बताते हैं, ऐसी ही कुछ बीमारियों और उनके इलाज के बारे में-
चेचक
चेचक मानवता के लिए ज्ञात सबसे विनाशकारी बीमारियों में से एक थी. डब्ल्यूएचओ का मानना है कि ये बीमारी कम से कम 3,000 वर्षों से अस्तित्व में थी. खत्म होने से पहले ये लाखों लोगों की जिंदगियां लील चुकी थी. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, चेचक एक बेहद संक्रामक रोग है, जो वेरियोला वायरस के कारण होता है. ये वायरस ऑर्थोपॉक्स वायरस परिवार से है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1967 में चेचक को मिटाने के लिए योजना शुरू की. 1980 में चेचक पहली संक्रामक बीमारी थी जिसे आधिकारिक तौर पर “खत्म” घोषित किया गया था. चेचक का टीका एडवर्ड जेनर ने 1796 में बनाया था, जो विकसित होने वाला पहला सफल टीका था. चेचक का आखिरी ज्ञात प्राकृतिक मामला 1977 में सोमालिया में मिला था.
कोविड-19
पहली बात तो ये कि Covid-19 वायरस नहीं है बल्कि SARS-CoV-2 वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारी है. कोरोना वायरस का पहला मामला 2019 में चीन के वुहान में सामने आया था. उसके बाद इसने दुनिया भर में कोहराम मचा दिया. लाखों लोगों की जान चली गई. परिवार बर्बाद हो गए. लॉकडाउन की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुंच गई. गनीमत ये है कि अब इसे रोकने के लिए कई वैक्सीन बाजार में आ चुकी हैं. एस्ट्राजेनेका, फाइजर, मॉडर्ना, भारत बायोटेक जैसी कुछ ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने कोरोना के टीके बनाए हैं. इनकी वजह से इस वायरस की तीव्रता को काबू करने में मदद मिली है. हालांकि नए वेरिएंट की वजह से इसके फिर से जानलेवा होने का खतरा बना हुआ है.
मंकीपॉक्स
दो साल तक कोविड महामारी की दहशत के बाद अब मंकीपॉक्स बीमारी फैलने का खतरा पैदा हो गया है. ये बीमारी जंगली जानवरों से फैलती है और आमतौर पर अफ्रीका में देखी जाती रही है. लेकिन इस बार इसके मरीज यूरोप समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में मिल रहे हैं. चौंकाने वाली ये भी है कि इनमें ऐसे कई मरीज हैं, जो कभी अफ्रीका नहीं गए या वहां के किसी बाशिंदे के संपर्क में नहीं आए. मंकीपॉक्स वायरस चेचक फैमिली का सदस्य है, लेकिन उसके मुकाबले कही कम जानलेवा है. इसके मरीज आमतौर पर 5 दिन से 3 हफ्ते के बीच अपने आप ठीक हो जाते हैं. हालांकि 10 में से एक शख्स के लिए ये घातक हो सकता है. इसके मरीजों को चेचक के कई टीकों में से एक दिया जाता है, जिसके अच्छे नतीजे दिखे हैं. कई एंटी-वायरल दवाएं भी विकसित की जा रही हैं. इसके महामारी का रूप लेने की आशंका कम ही है.
पोलियो
पोलियो या पोलियोमाइलाइटिस बीमारी पोलियो वायरस के कारण होती है. इसके मरीजों में अपंगता और जान का जोखिम होता है. एक बार ये बीमारी हो जाए तो इसका कोई इलाज नहीं है. लेकिन ऐसे टीके विकसित हो चुके हैं, जिससे इसका खतरा 99 प्रतिशत तक खत्म हो गया है. पोलियो वायरस एक से दूसरे व्यक्ति में फैलता है और रीढ़ की हड्डी को संक्रमित करता है, जिससे लकवा मार जाता है. हल्के संक्रमण के मरीज ठीक हो जाते हैं, लेकिन लगभग 1% मामलों में पोलियो अपने मरीजों को स्थायी रूप से अपंग कर देता है. भारत समेत ज्यादातर देशों में सस्ते और प्रभावी टीकों की वजह से पोलियो खत्म हो चुका है. केवल नाइजीरिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अभी भी पोलियो के नियमित मामले सामने आते रहते हैं. उपलब्ध जानकारी के अनुसार, पोलियो की पहली प्रभावी वैक्सीन 1952 में अमेरिकी वैज्ञानिक जोनास साल्क ने विकसित की थी. 1957 में इंसानों पर इसे आजमाया गया था.
यलो फीवर
यलो फीवर एक ऐसी बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है. लेकिन इसके प्रभावी टीके मौजूद हैं जो एक सप्ताह के अंदर ही लोगों को 95 प्रतिशत तक प्रतिरक्षा प्रदान कर सकते हैं. डब्लूएचओ के मुताबिक, इसकी वैक्सीन की एक खुराक जिंदगी भर इस बीमारी से बचाव कर सकती है. यलो फीवर में स्किन पीली पड़ जाती है. ये लिवर और गुर्दे को प्रभावित करता है, जिससे बुखार, पीलिया, भूख न लगना, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द जैसे लक्षण होते हैं. एक बार इंसान को ये बीमारी हो जाए तो उसका ठीक होना लगभग नामुमकिन होता है. एक अनुमान के मुताबिक इसके शिकार 100 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 2021 में अफ्रीका के 9 देशों में इसके मरीज मिले थे.
रेबीज
रेबीज एक ऐसा संक्रमण है जिसे वैक्सीन के जरिए रोका जा सकता है, लेकिन अगर एक बार इन्फेक्शन फैल जाए तो इलाज असर नहीं करता. ज्यादातर मरीजों की मौत हो जाती है. रेबीज जानवरों खासकर आवारा कुत्तों के काटने या उनकी लार के संपर्क में आने से फैलने वाली बीमारी है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 150 से अधिक देशों में ये बीमारी पाई जाती है. इसके लक्षणों में उत्तेजना, बिना वजह डर, चिंता, भ्रम शामिल है. पानी से भी डर लगने लगता है. मुंह से झाग या लार ज्यादा आने लगती है. इसकी वैक्सीन उपलब्ध है. सलाह दी जाती है कि कुत्ते के काटने या नाखून आदि से खुरचने के बाद वैक्सीन जरूर लगवा लेनी चाहिए. इसकी कई वैक्सीन लगवानी होती हैं.
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