अग्निपथ पर विवाद के बीच बोले PM नरेंद्र मोदी, कुछ सुधार शुरुआत में खराब लगते हैं, पर होता है फायदा

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देश में सेना में भर्ती को आई अग्निपथ स्कीम को लेकर छिड़े विवाद के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ फैसले और सुधार भले ही शुरुआत में खराब लगते हैं, लेकिन लंबे वक्त में उनसे देश को फायदा होता है।

न्यूज़ जंगल डेस्क कानपुर : देश में अग्निपथ स्कीम को लेकर छिड़े विवाद के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ फैसले और सुधार भले ही शुरुआत में खराब लगते हैं, लेकिन लंबे वक्त में उनसे देश को फायदा होता है। माना जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी की यह टिप्पणी अग्निपथ स्कीम को लेकर है। बता दें कि इस स्कीम पर विवाद छिड़ा हुआ है। बिहार, यूपी, हरियाणा, राजस्था और एमपी समेत देश के कई राज्यों में युवा इसका विरोध कर रहे हैं। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में कई विकास योजनाओं की लॉन्चिंग के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने यह टिप्पणी की। 

वैसे, यह पहली बार नहीं है जब मोदी सरकार को 8 साल के भीतर अपने फैसले पर भारी विरोध का सामना करना पड़ा। अबतक के दो बड़े फैसले उसे वापस भी लेने पड़े हैं।

मोदी सरकार की गलती नंबर -1
सरकार बने ज्यादा वक्त नहीं हुआ था, मोदी सरकार एक अध्यादेश ले आई। उसने कहा कि इसका मकसद भूमि अधिग्रहण में सही से मुआवजा दिया जाना और पारदर्शिता जैसी बातें हैं। कानून कांग्रेस की पिछली सरकार के समय 2013 में ही बन गया था। लेकिन मोदी सरकार ने कुछ बदलाव किए। RFCTLARR Act (Amendment) Ordinance, 2014 में कहा गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे से संबंधित संरचना, औद्योगिक कॉरिडोर और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे से संबंधित परियोजनाओं के लिए बिना सहमति जमीन अधिग्रहित की जा सकती है। इन पांच क्षेत्रों को सोशल इम्पैक्ट सर्वे से भी अलग रखा जाएगा। ऐसे कई पॉइंट्स थे जिस पर लोग नाराज हो गए। सबसे ज्यादा विरोध उस प्रावधान पर हुआ जिसमें सहमति की बात थी। इससे पहले तक सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी होती थी, सरकारी योजना में सहमति 70 प्रतिशत थी लेकिन नए कानून में ये बाध्यता ही खत्म कर दी गई। इसका मतलब साफ था कि सरकार के लिए जमीन अधिग्रहण काफी आसान कर दिया गया था। विरोध बढ़ता गया। विपक्ष अध्यादेश के खिलाफ खड़ा हो गया। सत्ता पक्ष की ओर से कहा गया कि भ्रम पैदा किया जा रहा है। आखिरकार पीएम मोदी ने खुद ‘मन की बात’ कार्यक्रम में ऐलान किया कि भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लिया जा रहा है। भावुक स्पीच के साथ ही पीएम ने 2015 में इस ऐक्ट को वापस ले लिया। यह मोदी सरकार की पहली बड़ी गलती मानी गई।

मिस्टेक नंबर 2
दिल्ली बॉर्डर पर तंबुओं के गांव बस गए। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन एक साल तक चलता रहा लेकिन सरकार और भाजपा के नेता कानून का बखान करते रहे। विपक्ष किसानों के साथ दिखा। सत्तापक्ष ने फिर कहा कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है। खालिस्तानी ऐंगल, देश विरोधी जैसी कई तरह की बातें कही और कहवाई गईं। कई दौर की बातचीत हुई लेकिन आम सहमति नहीं बन पाई। मोदी सरकार कृषि कानूनों में संशोधन करने के लिए तैयार थी लेकिन किसान पूरी तरह से कानून को ही रद्द कराने के पक्ष में थे। ट्रैक्टर रैली निकली और लाल किले पर भारी बवाल हुआ। किसान नेताओं को ‘विलेन’ की तरह देखा जाने लगा। दिल्ली की सीमा का आंदोलन यूपी से बंगाल तक पहुंच गया। भाजपा नेताओं को काले झंडे दिखाए जाने लगे। बीजेपी के भीतर भी एक वर्ग ऐसा था, जो किसानों के सपोर्ट में था। गवर्नर सत्यपाल मलिक तो खुलेआम भाजपा पर सवाल खड़े करते दिखे। विधानसभा चुनाव नजदीक थे। यूपी और पंजाब में किसानों को नाराज कर चुनाव नहीं जीते जा सकते थे, ऐसे में पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर ही दिया।

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