1 लाख रूपये को छूने वाला एकमात्र शेयर, निवेशकों को कर रहा है मालामाल

MRF Story : एमआरएफ के फाउंडर के. एम मैमन मापिल्लई ( K.M. Mammen Mappillai) कभी सड़क पर गुब्‍बारे बेचा करते थे. 1946 में उन्‍होंने गुब्‍बारे बनाने शुरू किए. गुब्‍बारों से शुरू हुआ यह सफर अब टायर, खिलौने और रबड़ के बहुत-से अन्‍य उत्‍पाद बनाने तक पहुंच चुका है.

News Jungal Desk: एफआरएफ (MRF) कंपनी कल से ही चर्चा में आ चुकी् है. हो भी क्‍यों न, इसका शेयर भारत का पहला ऐसा स्‍टॉक (MRF Share) बन चुका है, जिसकी कीमत कल एक लाख रुपये से ऊपर चली गई है. भारत की नंबर वन टायर कंपनी को बहुत-से लोग बचपन में बैट बनाने वाली कंपनी समझते रहे थे. इसका कारण था सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा और स्‍टीव वॉ जैसे नामी क्रिकेटरों के एफआरएफ का लोगो (Logo) लगे हुए बैट से खेलना. विराट कोहली, शिखर धवन, एबी डी विलियर्स और संजू सैमसन के हाथ में भी एमआरएफ के लोगो लगा बैट नजर आता है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि एफआरएफ की नींव रखने वाले के. एम मैमन मापिल्लई ( K.M. Mammen Mappillai) पहले गुब्बारा बेचते थे.

मापिल्‍लई ने एफआरएफ को शुरू ही गुब्‍बारे बनाने के लिए किया था., इसके बाद उन्‍होंने रबड़ प्‍लाई बनानी शुरू की और इसके बाद टायर बनाना शुरू कर दिया. के. एम मैमन मापिल्लई (K.M. Mammen Mappillai) पहले गुब्बारा बेचा करते थे. वो भी किसी दुकान में नहीं, बल्कि सड़क पर खड़े होकर. गुब्‍बारे बेचते-बेचते ही उन्‍हें रबड़ के कारोबार में सुनहरा भविष्‍य दिख गया और 1946 में उन्‍होंने गुब्‍बारे बनाने शुरू कर दिए. बच्‍चों के गुब्‍बारे बनाने से शुरू हुआ एफआरएफ का सफर अब टायर, धागे, ट्यूब, कन्वेयर बेल्ट, पेंट और खिलौने सहित रबड़ के कई अन्‍य उत्पादों के निर्माण तक जा पहुंचा है.

यह भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी है. वहीं, विश्‍व में टायर बनाने वाली बड़ी कंपनियों की लिस्‍ट में यह 14वे नंबर पर है. कंपनी की वैल्‍यूएशन 23,000 करोड़ रुपये आंकी गई है. एमआरएफ को बुलंदियों पर पहुंचाने में इसके संस्‍थापक मापिल्लई की मेहनत और दूरदर्शिता का बड़ा हाथ है. साथ ही क्रिकेट के बैट ने भी एमआरएफ की स्‍ट्रॉन्‍ग ब्रांड इमेज बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 1992 में मापिल्‍लई को उद्योग जगत में उनके योगदान के लिए पदमश्री सम्‍मान से नवाजा गया है. साल 2003 में उनका देहांत हो गया है.

केरल में एक ईसाई परिवार में 1922 में जन्मे मापिल्लई 8 भाई-बहन थे. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. आजादी की लड़ाई के दौरान ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी सारी संपत्ति जब्‍त कर ली गई थी. इससे मापिल्लई के परिवार के सामने खाने के लाले पड़ गए. परिवार का पेट भरने के लिए उन्‍होंने सड़क पर गुब्‍बारे बेचने शुरू कर दिए. 6 साल तक गुब्‍बारे बेचने पर उन्‍हें पता चल गया कि गुब्‍बारे बनाने में अच्‍छा पैसा है. साल 1946 में उन्‍होंने मद्रास के तिरुवोट्टियूर में एक टीन शैड में गुब्‍बारे बनाने शुरू कर दिए. गुब्‍बारे बनाने के इस काम से ही मद्रास रबड़ फैक्‍टरी की नींव पड़ी थी.

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