साल में सिर्फ एक दिन खुलता है दक्षिणमुख काले हनुमानजी का मंदिर, दर्शन से दूर होते हैं असाध्‍य रोग

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वाराणसी स्थित राजा के किले में बने दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर का पट आज खोला गया. इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली. श्रद्धालुओं को दक्षिणमुखी हनुमानजी का दर्शन साल में सिर्फ एक बार होता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि दुर्ग में काले हनुमानजी का दर्शन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है

News jungal desk :– धर्मनगरी वाराणसी के रामनगर में स्थित काशी के राजदरबार में विराजमान दक्षिणमुखी काले हनुमानजी का आज एक दिन के लिए द्वार खोला गया है । और इस दौरान दर्शन के लिए बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं ने अपनी हाजिरी लगाई. वाराणसी में इन्हें काले हनुमानजी के नाम से जाना जाता है. श्रद्धालुओं को इनका दर्शन साल में सिर्फ एक बार मिलता है. कहा जाता है कि हनुमानजी की यह प्रतिमा सैकड़ों वर्ष पूर्व पाताल लोक में पाई गई थी. प्रतिमा मिलने के बाद से राजदरबार परिवार इनकी पूजन करती रही. साल में दशहरा के बाद एक दिन के लिए शरद पूर्णिमा के पूर्व मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है ।

शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में पूजा के बाद इनका पट खुला तो श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है । दो किलोमीटर तक श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लग गयी. श्रद्धालुओं का मानना है कि दुर्ग में काले हनुमान जी का दर्शन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है । भोर की आरती होने के बाद वर्ष में मात्र एक दिन खुलने वाले दुर्ग में दक्षिण छोर पर स्थित दक्षिणमुखी श्यामवर्ण हनुमान के दर्शन के लिए शुक्रवार सुबह से ही लीला प्रेमियों सहित श्रद्धालुओं की लाइन लग गई है ।

श्रीराम-रावण युद्धकाल से संबंध
मान्यता है कि दक्षिणमुखी काले हनुमान जी का संबंध त्रेतायुग में श्रीराम-रावण युद्धकाल से है । रामेश्वर में समुद्र से रास्ता मांगने पर जब क्रोधित होकर बाण चलाने जा रहे थे उस समय समुद्र ने श्रीराम से माफी मांगी और अनुनय-विनय किया है । इसके बाद श्रीराम ने प्रत्यंचा पर चढ़ चुके उस बाण को पश्चिम दिशा की ओर छोड़ दिया. इसी समय बाण के तेज से धरती वासियों पर कोई आफत ना आए इसके लिये हनुमानजी घुटने के बल बैठ गये, जिससे धरती को डोलने से रोका जा सके है ।

बाण के तेज से झुलसा शरीर
वहीं श्रीराम के बाण के तेज के कारण हनुमानजी का पूरा देह झुलस गया, जिसके कारण उनका रंग काला पड़ गया. ये मूर्ति रामनगर किले में जमीन के अंदर कैसे आयी ये किसी को नहीं पता है । बाद में जब रामनगर की रामलीला शुरू हुई तो भोर की आरती के दिन मंदिर को आम जनमानस के लिए खोला जाने लगा. ये परंपरा सैकड़ों साल बाद आज भी जारी है ।

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