अपने प्रचार से बहुत दूर रहती थीं
मिरांडा हाउस में हिंदी पढ़ाती थीं
राजेन्द्र यादव से किया था विवाह
‘आपका बंटी’ समेत कई कालजयी रचनाएं उनके नाम
महेश शर्मा
साहित्य डेस्क। ‘आपका बंटी’ जैसी रचनाओं के लिए मशहूर हिंदी की मशहूर लेखिका और कथाकार मन्नू भंडारी का निधन हो गया है। वह साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी थीं। 90 वर्ष की मन्नू अपने लेखन में पुरुषवादी समाज पर चोट करती थीं। उनकी कई प्रसिद्ध रचनाएं हैं। इनमें से कुछ पर फिल्म भी बनी थी। मुझे याद है कि प्रख्यात साहित्यकार प्राचार्या (डॉ सुमनराजे अब दिवंगत) ने ए एन डी कॉलेज में आयोजित कथा गोष्ठी में साहित्यकारों को आमंत्रित किया था जिसमे शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ और मन्नू भंडारी के पति राजेन्द्र यादव भी आये थे। मंच से ‘सुमन’ जी ने जब मन्नू भण्डारी को श्रेष्ठ लेखिका घोषित करते हुए राजेन्द्र यादव की चुटकी ली, तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। मन्नूजी जी की साहित्यिक श्रेष्ठता को देशभर के साहित्यकार प्रमाणित कर रहे थे। राजेन्द्र यादव के सिवा सभी ताली बजा रहे थे।



मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुआ था। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाती थीं।
वह हिंदी की आधुनिक कहानीकार और उपन्यासकार हैं। मन्नू भंडारी को श्रेष्ठ लेखिका होने का गौरव हासिल है। मन्नू भंडारी ने कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में कलम चलाई है। राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है। विवाह टूटने की त्रासदी में घुट रहे एक बच्चे को केंद्रीय विषय बनाकर लिखे गए उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ को हिंदी के सफलतम उपन्यासों की कतार में रखा जाता है। आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ था। इनकी ‘यही सच है’ कृति पर आधारित ‘रजनीगंधा फ़िल्म’ ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी।



मन्नू भंडारी एक भारतीय लेखक है जो विशेषतः 1950 से 1960 के बीच अपने अपने कार्यो के लिए जानी जाती थी। सबसे ज्यादा वह अपने दो उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध थी। पहला आपका बंटी और दूसरा महाभोज। नयी कहानी अभियान और हिंदी साहित्यिक अभियान के समय में लेखक निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीषम साहनी, कमलेश्वर इत्यादि ने उन्हें अभियान की सबसे प्रसिद्ध लेखिका बताया था।
1950 में भारत को आज़ादी मिले कुछ ही साल हुए थे, और उस समय भारत सामाजिक बदलाव जैसी समस्याओ से जूझ रहा था। इसीलिए इसी समय लोग नयी कहानी अभियान के चलते अपनी-अपनी राय देने लगे थे, जिनमे भंडारी भी शामिल थी। उनके लेख हमेशा लैंगिक असमानता और वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता पर आधारित होते थे।






मन्नू भंडारी के निधन पर गुलजार हुसैन की कविता
जिनके उपन्यासों को पढ़ते हुए बड़ी हुई एक पीढ़ी ने जाना
कि क्या फर्क होता है एक स्त्री के युंही जीने और आत्मसम्मान के साथ जीने में
जिनकी कलम से निकली कहानियों में ठहरा स्त्री का दुख, आत्मग्लानि, पीड़ा और तिरस्कार
झकझोरता रहा हर मन को बारंबार
और बनाता रहा धरातल पर ठोस किरदार
जो बोल सके सर उठाकर लगातार
हां, मन्नू जी सौंप गईं इस समाज को ‘आपका बंटी’
जिसकी मासूम आंखों से देखते हुए सभी आंकते रहे हर माता-पिता के बीच उपजे तनाव को
और महसूस करते रहे बचपन पर घिर आए दुख को सचेत रहने के लिए
ताकि बचा रहे बचपन
बचा रहे मां का स्नेह और पिता का प्यार


