जानें यूक्रेन से लौटीं कानपुर की दो बेटियों की आपबीती
न्यूज़ जंगल नेटवर्क, कानपुर : कानपुर के आवास विकास कल्याणपुर की रहने वाली दिव्यांशी सचान और गुजैनी की सताक्षी सचान शुक्रवार रात को यूक्रेन से घर लौटीं हैं। दोनों दोस्त हैं और एमबीबीएस फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही हैं। यूक्रेन में आठ दिन युद्ध के बीच किस तरह उन्होंने अपनी जान बचाई और कैसे बॉर्डर तक पहुंची, यह बताते हुए दोनों आज भी सिहर उठती हैं।
अपनी कहानी बताते-बताते वे फफक पड़ीं और बोलीं कि एक पल तो उम्मीद ही टूट गई थी कि अब जिंदा वतन वापसी हो पाएगी। दोनों बेटियों का कहना है कि जिंदा लौटी हैं तो अपनी दम पर। सरकार से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है। बॉर्डर पार करने के बाद उन्हें एयरलिफ्ट किया गया। कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर दोनों बेटियों ने खास बातचीत में अपना दर्द साझा किया
खुद बस बुक की, भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं
उर्सला अस्पताल के चीफ फार्मासिस्ट सीबी सचान की बेटी दिव्यांशी ने बताया, ‘हम लोग काफी परेशान थे, हम लोगों ने खुद का बस किया, पैसे दिए और अपने खर्च पर बॉर्डर पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद हमको पता चला कि 12 से 15 किमी. और पैदल चलना है। सारा खाना, पानी और बिछावन भी का खुद ले गए थे’।
उन्होंने कहा- ‘सरकार की तरफ से हमें कुछ भी नहीं दिया गया। सरकार ने तो लास्ट टाइम यहां तक कह दिया था कि बाहर निकलते हैं तो अपनी जिम्मेदारी पर। अगर कुछ भी होता है तो उसके जिम्मेदार आप हैं। सरकार इसका जिम्मा नहीं लेती है।
पर्सनल पॉकेट से करीब तीन हजार रुपए दिए और करीब 50 किमी. तक पैदल चलना पड़ा। जब मैंने बॉर्डर पर तीन दिन और तीन रातें माइनस 10 से 20 डिग्री टेंपरेचर के बीच खुले आसमान के नीचे गुजारी तब लगा था कि अब कोई होप नहीं है। अब लौट जाते हैं, जिंदा वापसी तो किसी कीमत पर नहीं होगी’।
मुझे कुचलते हुए निकल गई पूरी भीड़
दिव्यांशी कहती हैं कि वहां जितने भी बच्चे फंसे हैं, वो भी इसी हड़बड़ी है कि किसी तरह बॉर्डर क्रॉस कर ले, क्यों कि कोई भी ऐसे हालात में नहीं रुकना चाहता था। वहां हर कोई अपनी जिंदगी अपने हाथ में लेकर घूम रहा है। उन लोगों ने जैसे-तैसे बॉर्डर क्रॉस किया। उसी दौरान उनके साथ हादसा हो गया। आपाधापी में बहुत सारे बच्चे धक्का-मुक्की करने लगे और इसी बीच वह जमीन पर गिर पड़ी। इसके बाद भीड़ उनको रौंदते हुए निकल गई। एंबेसी की तरफ से वहां पर कोई नहीं था। वह साफ-साफ शब्दों में कहना चाहेंगीं कि सरकार की तरफ से उस बॉर्डर पर कोई नहीं था।
जो बच्चे वहां फंसे हैं, उन्हें बचा ले सरकार
दिव्यांशी कहती हैं, ‘मैं सरकार से बस इतना ही निवेदन करूंगी कि जो बच्चे अभी भी यूक्रेन और रोमेनिन बॉर्डर में फंस हैं, प्लीज उन्हें जल्द से जल्द इवेक्युएट कराएं। अब उनमें बिलकुल भी क्षमता नहीं बची है कि अब वह चलकर वापस जाएं। अब उनके अंदर बिलकुल उम्मीद नहीं है, अब वह होपलेश हो चुके हैं। उन बच्चों को वहीं से राहत दी जाए और वहीं से एयरलिफ्ट किया जाए’।
सरकार के लोग बस यहां बैठे-बैठे हवा में ऑर्डर दे रहे
यहां की जो सरकार है, कहते हैं कि डेमेक्रेटिक कंट्री है। हम लोग सरकार को चुनते हैं, लेकिन उसने हम लोगों के लिए कुछ नहीं किया। जितने भी बच्चे अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं खार्किव और कीव में प्लीज जितना जल्द हो स,के रेस्क्यू करके उन्हें अपने देश वापस लाना चाहिए। सरकार को ग्राउंड पर जाकर लोगों की परेशानी समझनी चाहिए। मैंने इन आठ दिनों में बहुत सी मुसीबतें सही हैं। आप यहां बैठे-बैठे सिर्फ ऑर्डर न दें।
सरकार केवल झूठा प्रचार-प्रसार कर रही
छात्रा ने कहा कि सरकार कुछ नहीं करा रही है। हमने अपने दम पर 50 किमी. पैदल चलकर बॉर्डर पार किया है। अगर कुछ हो जाता तो वहां पर देखने सुनने वाला भी कोई नहीं था। सिर्फ सरकार अपनी वाह-वाही लूटने के लिए झूठा प्रचार-प्रसार करने में लगी हुई है।
अलार्म बजता था तो हम बंकर में छिप जाते थे
गुजैनी निवासी शताक्षी सचान ने बताया कि हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं को तो वहां के गार्ड सायरन बजने पर अलर्ट करते थे, लेकिन हम लोग किराए के फ्लैट पर रहते थे। तो हमें अपनी सुरक्षा खुद करनी होती थी। जब अलार्म बजता था तो हम भागकर बंकर में छिप जाते थे। वहां हम लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा था।
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वहां पर हर देश का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग थे, लेकिन भारतीय छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं था। इस वजह से हमें निकलने नहीं दिया जा रहा था। वह हमसे यही पूछ रहे थे कि आपका रिप्रजेंटिव कहां है? तो इसका हमारे पास कोई जवाब नहीं था।
दिल्ली में चार दिनों तक बच्चों का इंतजार करती रहीं मां
सताक्षी और दिव्यांगी के माता-पिता ने बताया कि उन्हें बच्चों की इतनी चिंता थी कि वह दिल्ली पहुंच गए। लगातार एंबेसी से संपर्क करते रहे और अपने बच्चों का दर्द साझा करते रहें। चार दिन इंतजार करने के बाद उनके बच्चे यूक्रेन से दिल्ली पहुंच सके। इसके बाद बेटियों को एयरपोर्ट से लेकर स्टेशन आए और वहां से ट्रेन से कानपुर पहुंचे।