कानपुर हिंसा : डी-टू गैंग ने चंद्रेश्वर हाता खाली कराने का जिम्मा लिया था

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न्यूज़ जंगल डेस्क : कानपुर कानपुर हिंसा के पीछे डी-2 गैंग का भी हाथ सामने आया है। यह वही इंटरस्टेट गिरोह है, जो कभी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का करीबी हुआ करता था। डी-टू गैंग ने चंद्रेश्वर हाता खाली कराने का जिम्मा लिया था। इसके चलते वह हिंसा में शामिल हुआ और हाते के सामने ताबड़तोड़ बमबाजी-पथराव को अंजाम दिया। इलाके के अन्य हिंदू हातों को खाली कराने में भी गैंग की अहम भूमिका रही है। पुलिस की जांच में यह जानकारी सामने आई है।

डी- 2 गैंग दाऊद के लिए मुंबई से लेकर कई राज्यों में कॉन्ट्रेक्ट किलिंग करता था। अब इस गैंग का नाम आईएस-273 है।

चंद्रेश्वर हाता खाली कराने के लिए किया टारगेट
गैंग का सरगना अफजाल 20 मई को जेल से छूटा था। इलाके में उसका मूवमेंट भी हुआ था, लेकिन हिंसा के बाद से वह लापता है। अफजाल ने हिंसा के मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी को फंडिंग करने वाले बिल्डरों से ही चंद्रेश्वर हाता खाली कराने का ठेका लिया था। हाते के सामने खून-खराबे की जिम्मेदारी गैंग ने ली थी। इस गैंग ने इससे पहले कन्हैया बाबू का हाता, मुरारी लाल का हाता, कल्लूमल स्ट्रीट, विसू बाबू का हाता समेत इलाके के एक दर्जन हातों को खाली कराया था।

अब इन हातों में मल्टी स्टोरी बिल्डिंग खड़ी कर दी गई हैं। हिंदू बाहुल्य इलाके में अब पूरी तरह से मुस्लिम आबादी बस चुकी है। मुन्ना लाल स्ट्रीट को कादरी हाउस के नाम से जाना जाता है। अब यहां हिंदुओं का एक इकलौता चंद्रेश्वर हाता ही बचा हुआ है। नई सड़क की इस कीमती जमीन पर अब बिल्डर नजर गड़ाए हुए हैं। कानपुर हिंसा के दौरान इस हाते को भी खाली कराने के लिए टारगेट किया गया था। अफजाल की तलाश में पुलिस की कई टीमों को लगाया गया है।

डी-2 गैंग को एक नजर में जानें
कानपुर में गैंग को रजिस्टर्ड करने का सिलसिला शुरू हुआ तो डी-2 रजिस्टर्ड होने वाला दूसरा गिरोह बना। 1997 में गिरोह को पुलिस ने रजिस्टर्ड किया था। इसका सरगना अनवरगंज के कुली बाजार का रहने वाला अतीक अहमद है, जो इस समय आगरा जेल में बंद है। अतीक ने अपने पांच भाइयों शफीक, अफजाल उर्फ राजू, इकबाल उर्फ बाले, तौफीक और रफीक के साथ मिलकर गैंग को खड़ा किया।

गैंग के इन सभी एक-एक सदस्यों पर 45 से 50 मुकदमें दर्ज हैं। गैंग भाड़े पर हत्याएं करता था। धीरे-धीरे सदस्य बढ़े, तो गिरोह का दबदबा भी बढ़ता गया। कानपुर से लेकर मुंबई तक इस गैंग की धाक थी। हालांकि, शफीक की मुंबई जेल में मौत हो गई। अतीक आगरा जेल में बंद है। तौफीक का 2004 में बर्रा में पुलिस ने एनकाउंट में मार गिराया था। इसके बाद रफीक का भी एनकाउंटर हो गया था।

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छोटा शकील के जरिये दाऊद का करीबी बना था गैंग
कानपुर के डी-2 गैंग ने 1972 से कानपुर में अपराध की शुरुआत की थी। ताबड़तोड़ हत्याएं करके कानपुर से लेकर यूपी और मुंबई तक चर्चा में आ गया था। गैंग के सदस्य तौफीक और रफीक छोटा शकील के जरिए दाऊद के संपर्क में आए थे। इसके बाद दाऊद के लिए कॉन्ट्रेक्ट किलिंग करने लगे। तब यह गैंग इंटर स्टेट गैंग के रूप में रजिस्टर्ड किया गया था। गैंग में 19 मेंबर पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हैं। असल में मौजूदा समय में 50 से ज्यादा युवा इस गैंग में सक्रिय होकर काम कर रहे हैं।

गैंग ने बदल लिया काम करने का तरीका
पुलिस जांच रिपोर्ट के मुताबिक गैंग ने कई साल पहले अपना काम करने का तरीका बदल लिया है। गैंग अब भाड़े पर हत्याएं या फिर रंगदारी नहीं मांगता है। यह शहर के कई बिल्डरों से जुड़ गया है। विवादित जमीनों को खाली कराना, जमीनों पर कब्जा करने समेत अन्य काम करने लगा है। गैंग का कनेक्शन कई नेताओं से भी निकला है।

CAA विरोधी हिंसा में शामिल था डी-2 गैंग
कानपुर के डी-2 गैंग का अफजाल सीएए हिंसा में भी शामिल हुआ था। पुलिस ने उसे जयपुर से गिरफ्तार करके जेल भेजा था। जांच में सामने आया था कि अफजाल नाम बदलकर जावेद के नाम से रह रहा था। मुरलीपुरा पश्चिम जयपुर में अपने घर से ही होजरी का काम शुरू कर लिया था। वह व्यापारी बनकर छिपकर रहता था और यूपी समेत कई राज्यों में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देता था। सीएए हिंसा से पहले कानपुर आया और साजिश रचने के बाद यहां भाग निकला था। जांच के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके जेल भेजा था।

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