अपनी जवानी देश के नाम कर गए , आप जानो तो सही वो क्या महान काम कर गए

0

न्यूज़ जंगल नेटवर्क, कानपुर : आज शहीद दिवस है। आज ही के दिन भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाया गया था। इनके घर वाले आज भी इनके किस्सों को बताते नही थकते हैं। आज तीसरी और चौथी पीढ़ी पिछली पीढ़ियों की बताई बातें संजोए बैठी है। ऐसा लगता है मानो ये सब बातें अभी कुछ दिन पहले ही बीती हो। शहीद दिवस पर मीडिया टीम ने जब भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के घर वालों से बात की तो कई नई बातें निकल कर सामने आईं। पढ़े ये रिपोर्ट:-

जब बेटी बने शहीदे आजम

सुखदेव के पौत्र अनुज थापर बताते हैं कि सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह एक दिन के लिए उन्हीं (सुखदेव) के घर रुके थे। इसी बीच ब्रिटिश पुलिस ने जब छापा मारा, तो सुखदेव की मां लली देवी ने बड़ी ही सूझबूझ से काम लिया। उन्होंने भगत सिंह के बाल खुलवा दिए थे। पठानी सूट में भगतसिंह को अपने साथ लिटाकर पुलिस को बताया कि मेरी बेटी लेटी है। इस तरह से भगत सिंह वहां से बच कर निकल पाए थे। बाद में भेष बदलकर भगत सिंह ने दाढ़ी और बाल कटवाए थे।

छोटे भाई के पास होने पर जब भगत सिंह ने मंगाए रसगुल्ले

भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह बताते हैं कि उनके पिता गुरदार सिंह भगत सिंह से 11 साल छोटे थे। जब वह 12 साल के थे, तब भगत सिंह सांडर्स की हत्या के बाद लाहौर जेल में बंद थे। अपने माता-पिता के साथ वह भी भगत सिंह से मिलने जाते थे। इसी बीच जब वह आठवीं की कक्षा में पास हुए, तो उन्होंने भगत सिंह को बताया कि वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुए हैं। इस पर उन्होंने तुरंत ही अपने मनपसंद रसगुल्ले मांगे।

यह भी पढ़ें ; होली के जश्न में डूबी नजर आईं दिशा परमार, राहुल वैद्य ने भी कुछ यूं मचाया धमाल.

भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह बताते हैं कि उनके पिता गुरदार सिंह भगत सिंह से 11 साल छोटे थे। जब वह 12 साल के थे, तब भगत सिंह सांडर्स की हत्या के बाद लाहौर जेल में बंद थे। अपने माता-पिता के साथ वह भी भगत सिंह से मिलने जाते थे। इसी बीच जब वह आठवीं की कक्षा में पास हुए, तो उन्होंने भगत सिंह को बताया कि वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुए हैं। इस पर उन्होंने तुरंत ही अपने मनपसंद रसगुल्ले मांगे।

सुखदेव के भतीजे अनुज थापर ने बताया कि सुखदेव चाचा को शिक्षा से बहुत लगाव था। वह छुआछूत के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने हरिजनों की पढ़ाई के लिए अभियान शुरू किया था। स्कूल में कई बार शिक्षकों द्वारा छुआछूत किए जाने पर उन्होंने खुलकर विरोध भी किया था। अनुज ने बताया कि उनकी दादी लली देवी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से बहुत प्रभावित थीं।

इसीलिए उन्होंने सबसे बड़े बेटे का नाम मनु रखा था। सुखदेव दिवाली की पूजा में देवी लक्ष्मी की जगह रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति ले आते थे। वह खुद भी रानी लक्ष्मीबाई से बहुत प्रभावित थे और लोगों को उनसे प्रेरणा लेने की सलाह देते थे कि कैसे महिला होते हुए बच्चे को पीठ में बांधकर उन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

सोने का मौका कभी नही छोड़ते थे राजगुरु

शहीद राजगुरु के पौत्र सत्यशील राजगुरु बताते हैं कि बाबा को नींद बहुत प्रिय थी। जब भी मौका लगता था, सो लेते थे। इसी तरह जागने में भी उनको महारत हासिल थी। जरूरत पड़ने पर सबसे ज्यादा जागने में भी वह सबसे आगे थे। पूरी टीम जब सोती, तो राजगुरु जागकर पहरेदारी करते। सांडर्स को पहली गोली राजगुरु ने ही मारी थी।

किसी भी सूरत में सांडर्स बचने न पाए इसलिए दूसरी गोली भगतसिंह ने मारी थी। सभी साथियों के पकड़े जाने के बाद भी पुलिस राजगुरु को नहीं पकड़ पाई थी। फिर भी, साथियों के साथ फांसी चढ़ने के लिए खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था।

भगत सिंह-राजगुरु का कानपुर से रहा है गहरा नाता

शहीद रामनारायण आजाद के पौत्र बॉबी दुबे बताते हैं कि भगत सिंह और राजगुरु का कानपुर से गहरा नाता रहा है। आजादी की लड़ाई में इन दोनों ही शहीदों ने लंबा समय कानपुर में भेष बदलकर बिताया है। भगत सिंह कानपुर में बलवंत सिंह बन कर प्रताप प्रेस में बतौर पत्रकार काम करते रहे। इस दौरान भी वह क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। गणेश शंकर विद्यार्थी का अखबार प्रताप फीलखाने से निकलता था। इसमें कई लेख बलवंत सिंह के नाम से छपे थे। इसी तरह राजगुरु भी क्रांतिकारी शिव वर्मा के साथ लंबे समय तक कानपुर में रहे।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *