महज बंगला बचाने को ‘गुलामी’ की ओर ‘आज़ाद’

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महेश शर्मा
हत कबीर सुनो भई साधो बात खून मैं खरी, जो दुनिया एक नम्बरी, तो मैं दस नम्बरी…बड़ा सटीक गाना है, सब जगह फिट। कांग्रेस में 42 साल तक मलाई काटते रहे गुलाम नबी आजाद की फितरत ही मलाई काटने की रही है। उन्हें विचारधारा से क्या लेनादेना। निहायत ही बोर वक्त, तर्कहीन बतियाने वाले नेता गुलामनबी आजाद में ऐसा कोई कंटेंट नहीं है कि उस पर पत्रकार कलम कुल्हाड़े चलाएं। पर भैया सोशल मीडिया का ज़माना है। जैसे गुलाम कांग्रेस में आज़ाद रहे वैसे मीडिया आज़ाद है। पर लुटियंस में बंगला बचाने में आज़ाद फिर गुलाम हो गए, किसके? सब जानते हैं। लेकिन पत्रकार तो आज़ाद ही रहेगा। उसे क्या बचाना है भला। वह तो घर के धान भी पयार में मिला देता है। बीवी की डांट सुनता है। सो लिखा तो जाएगा। चाहे नेता गुलाम हों या आज़ाद। राज्यसभा से इनकी विदाई पर भावुक होने का नाटक। भाजपा भी इस कारुणिक एपिसोड में सुर में सुर मिला रही थी। भनक तो तभी लग गयी थी और अगले एपिसोड की पटकथा लिखना शुरू हो चुका था। गुलामनबी आज़ाद किसी पद या पार्टी में नहीं हैं मोदी सरकार द्वारा आवंटित हाहाहूती बंगले में बिराजमान हैं। वहीं पर गोल्फ खेल रहे हैं।
मलाई काटू नेता जब लगा कि कांग्रेस में पड़ की गुंजाइश नहीं रह गयी तो जम्मू और कश्मीर का कार्ड खेलकर भाजपा में का रास्ता बनाने लग गए। हो सकता है वहां भाजपा का चेहरा बन जाएं।
कहां जा रहा है कि बंगला खाली करना था, शायद अब कुछ खिचड़ी पक जाए तो बंगला बच जाएगा। जिनका लक्ष्य इतना छुद्र हो, वे लोग कांग्रेस का किसी भी दल के किस काम आएंगे? गुलाम नबी का जी-23 भी कांग्रेस के अंदर भाजपा का खड़ा किया हुआ किला लगता है जो ऐन मौके पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए सक्रिय हो जाता है, इसका लिंक 2024 के चुनाव से लगता है। कांग्रेस को भाजपा ने उतना नुकसान नहीं पहुंचाया है जितना कांग्रेस के कथित दिग्गजों और राहुल के करीबियों ने पहुंचाया है। कांग्रेस को सबसे पहले अपने धोखेबाज नेताओं से निपटना होगा, वरना यह मुसीबत बढ़ती जाएगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, बिहार के राजनीतिक घटना क्रम में विपक्षी दलों की एकता को प्रभावित करने का यह भाजपा का गुलामी दांव कहा जा रहा है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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