मंदिर के प्रतिदिन के रीति-रिवाजों को अदालतें नहीं झेल सकती
न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर मंदिर के दिन-प्रतिदिन के रीति-रिवाज कुछ ऐसी चीज नहीं हैं, जिसमें संवैधानिक अदालतें शामिल हो। सुप्रीम कोर्ट ने आज तिरुपति के पास भगवान वेंकटेश्वर के प्रसिद्ध पहाड़ी मंदिर में पूजा अनुष्ठानों में अनियमितता का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा, “नारियल को कैसे तोड़ा जाए, इस बारे में अदालतें कैसे हस्तक्षेप कर सकती हैं? आरती कैसे करें? मंदिर के रीति-रिवाज स्थापित प्रथाएं हैं। ऐसे मुद्दों को अदालतें नहीं झेल सकती हैं।”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “अगर प्रशासन में भेदभाव या दर्शन की अनुमति नहीं देने जैसे मुद्दे हैं, तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं।” मुख्य न्यायाधीश ने मंदिर प्रशासन को निर्देश दिया कि अगर ऐसे कोई मुद्दे हैं तो याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह के भीतर जवाब दें।
तिरुपति थिरुमाला देवस्थानम (टीटीडी), जो मंदिर के प्रशासन को देखता है, ने पहले शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि परम पावन रामानुजाचार्य द्वारा सही जांच और संतुलन की शुरुआत की गई है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वैखानस आगम सेवा/उत्सव सख्ती से आयोजित किए जाते हैं।
इसने आगे कहा कि धार्मिक कर्मचारियों और मंदिर के अन्य पुजारियों द्वारा अनुष्ठान अत्यंत ईमानदारी, विश्वास और भक्ति के साथ किया जाता है।आपको बता दें कि याचिकाकर्ता श्रीवारी दादा ने तर्क दिया था कि यह मुद्दा मौलिक अधिकारों से संबंधित है।
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सितंबर में पिछली सुनवाई में, मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि भगवान बालाजी के भक्त के रूप में उन्हें और अधिक धैर्य दिखाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश रमण ने कहा था, “आप भगवान बालाजी के भक्त हैं। बालाजी के भक्तों में धैर्य है। आपके पास धैर्य नहीं है।”
शीर्ष न्यायाधीश ने यह भी बताया था कि उनका परिवार भी बालाजी भक्त था। मुख्य न्यायाधीश रमना ने तब कहा था, “मैं, मेरे भाई, मेरी बहन, हम सभी बालाजी भक्त हैं।”