संगरूर में अकाली दल से आगे रही BJP, सिख बाहुल सीट में भी मजबूत हुई पार्टी

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कांग्रेस उम्मीदवार दलवीर गोल्डी 79,668 मतों के साथ तीसरे और भाजपा के केवल ढिल्लों 66,298 मतों के साथ चौथे नंबर पर रहे। वहीं, शिअद को 44,428 मतों से ही संतोष करना पड़ा है।

News Jungal Media Pvt .Ltd : संगरूर संसदीय उपचुनाव में शिअद (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान की महत्वपूर्ण जीत न केवल तीन महीने से अधिक पुरानी सीएम भगवंत मान के नेतृत्व वाली AAP सरकार के लिए, बल्कि कांग्रेस और सुखबीर बादल के नेतृत्व वाली शिरोमणि अकाली दल जैसी पारंपरिक पार्टियों के लिए भी एक झटका है। 

दरअसल, कांग्रेस उम्मीदवार दलवीर गोल्डी 79,668 मतों के साथ तीसरे और भाजपा के केवल ढिल्लों 66,298 मतों के साथ चौथे नंबर पर रहे। वहीं, शिअद को 44,428 मतों से ही संतोष करना पड़ा है।

यह स्पष्ट रूप से इस बात का संकेत देता है कि पारंपरिक दलों के खिलाफ मतदाताओं का गुस्सा जारी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उपचुनाव के परिणाम को पारंपरिक अकाली राजनीति के पुनरुत्थान के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें सुखबीर बादल के नेतृत्व वाला अकाली दल शामिल नहीं है।

पीपीसीसी प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने कहा कि पार्टी विनम्रतापूर्वक लोगों के फैसले का सम्मान करती है। उन्होंने इस चुनावी नतीजों को आप के अयोग्य शासन के साथ लोगों की नाराजगी को बताया। आपको बता दें कि आप की हार से कई कांग्रेसी खुश हैं। उन्हें लगता है कि यह पार्टी को 2024 में आम चुनावों से पहले आप पर सुर्खियों के साथ खुद को पुनर्जीवित करने में सक्षम बनाएगा।

संगरूर उपचुनाव परिणामों पर टिप्पणी करते हुए सीएलपी नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा, “यह पंजाब की ओर से अरविंद केजरीवाल और राघव चड्ढा के लिए एक संदेश है कि वे पंजाब को रिमोट कंट्रोल करने की अपनी राजनीति को रोकें। संगरूर उपचुनाव में विधानसभा चुनाव के महज 3 महीने के अंदर आप सरकार की चुनावी हार उनके कुशासन और खोखले वादों का सबूत है। भगवंत मान और पंजाब आप को उनके संगरूर से जोरदार झटका इस बात की याद दिलाता है कि जनसंपर्क कभी भी सुशासन का विकल्प नहीं हो सकता। संगरूर संसदीय सीट मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और शिक्षा मंत्री का गृह क्षेत्र है।”

आपको बता दें कि संगरूर में सिखों की आबादी 63 फीसदी के करीब है, जबकि हिंदू 23 फीसदी हैं। भाजपा ने एक तरफ सिखों के बीच पहचान रखने वाले केवल सिंह ढिल्लों को मैदान में उतारा था तो अकाली दल के वोट उससे ही टूटकर बनी अकाली दल अमृतसर के खाते में चले गए। माना जा रहा है कि भाजपा का हिंदू वोट अटूट रहा और कुछ सिखों के मत भी मिले हैं, जिसके चलते वह अकाली दल के मुकाबले आगे रही है। आमतौर पर भाजपा अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, मोहाली जैसे शहरों में ही मजबूत रही है, लेकिन संगरूर में अकाली से आगे निकलकर उसने पूर्व सहयोगी दल को अपनी अहमियत का अहसास जरूर करा दिया है।

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