जब धरती पुत्र मुलायम सिंह ने की थी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की पुष्टि!

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वर्ष 1939 में पराधीन भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा जिले के सैफई गांव में जन्में मुलायम सिंह यादव के तेवर बचपन से ही बगावती प्रवृत्ति के थे। उन दिनों देश और उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी गरीबी-मुफिलिसी झेल रही थी। इसी बीच इटावा के सैफई में जन्में समाजवाद के प्रखर पुरोधा मुलायम सिंह यादव हमेशा से ही समाज में व्याप्त छुआछूत, भेद-भाव के प्रखर विरोधी रहे है।

मुलायम के पिता जी सुघर सिंह यादव एक साधारण किसान थे। मुलायम सिंह यादव को मिलाकर वो कुल पांच भाई थे। गांव के अन्य लोगों की तरह ही सुघर सिंह की भी इच्छा भी अपने बेटों के लिए बहुत बड़े बड़े सपने संजोने की नहीं थी। उनकी इच्छा यही थी कि उनके पांचों बेटे खेती-बाड़ी पर ध्यान दें और पशुओं की सेवा करे। उनकी कोई राजनैतिक समझ या महत्वाकांक्षा कभी नहीं रही।

लेकिन उनके दूसरे नंबर के पुत्र मुलायम सिंह यादव की बचपन से ही राजनीति गतिविधियों में बड़ी रूचि थी। मुलायम सिंह यादव तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे छुआ-छूत ,बाल-विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज समय-समय पर उठाते रहते थे। मुलायम सिंह का ये अंदाज उनके कुछ विरोधी लोगों को रास नहीं आता था तो ,वो अक्सर उनके पिता सुघर सिंह से अपने बेटे को समझाने की हिदायत देते रहते थे लेकिन मुलायम यहाँ कहां रुकने वाले थे.

आजादी के पहले से मुलायम के गांव में अक्सर शाम के समय चौपाल का आयोजन होता था। जिसमें गांव-गरीब के किसान और आम लोग जुटा करते थे। चौपाल में ये लोग आस-पास के इलाकों में चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलनों के विषय पर चर्चा करते थे। इस बीच आजादी के कुछ समय बाद जब महात्मा गांधी की मृत्यु साल 1948 में हुई तो उस दौरान गांव में यह बात तेजी से फैली की एक ‘बड़े नेता’ का निधन हुआ है।

हालांकि लोगों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि वास्तव में किस नेता का निधन हुआ है तो ऐसे में जिम्मेदारी नन्हें मुलायम के कंधों पर सौंपी गई। सुनीता एरोन अखिलेश की जीवनी पर आधारित अपनी एक किताब ‘विंड्स ऑफ़ चेंजेस’ में लिखती है कि जनवरी 1948 में कड़कड़ाती सर्दी में मुलायम सिंह यादव को सैफई से 12 किमी दूर इटावा सिर्फ उस घटना के बारे में पता लगाने के लिए भेजा गया कि था की आखिर वो कौन सा नेता है जिसके निधन की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है.

उन टूटी सड़कों पर कड़कड़ाती सर्दी में नंगे पांव चलते हुए, जानकारी लेकर मुलायम सिंह यादव अपने गांव पहुंचे और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की खबर से लोगों को अवगत कराया। संघर्षों की आंधियां झेलते हुए बाद में यही 11 वर्षीय लड़का सुबाष चंद्र बोस के बाद ‘नेता जी’ के नाम से जाना गया और भारतीय राजनीति में नई इबारत लिखी।

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