क्या है राजद्रोह कानून ,यह कब बना
राजद्रोह कानून में सरकार के खिलाफ गतिविधि को इस कानून के तहत राजद्रोह माना जाता है। यह देश के खिलाफ अपराध नहीं है। भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 124 ए के तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कोई लेख लिखता है,
न्यूज जंगल कानपुर डेस्क : राजद्रोह कानून में सरकार के खिलाफ गतिविधि को इस कानून के तहत राजद्रोह माना जाता है। यह देश के खिलाफ अपराध नहीं है। भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 124 ए के तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कोई लेख लिखता है, या ऐसे किसी लेख का समर्थन करता है तो वह राजद्रोह है। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करता है या संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो वह राजद्रोह है। ऐसा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज हो सकता है। देश विरोधी संगठन से किसी भी तरह का संबंध रखने या उसका सहयोग करने वाले के खिलाफ भी राजद्रोह का केस दर्ज हो सकता है। इस कानून के तहत दोषी को तीन साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों लगाया जा सकता है।
कब आया यह कानून और क्यों है विवादों में
21 वीं सदी में 152 साल पुराने कानून के आधार पर फैसला किया जाय, यह सुनने में अजीब लगता है । लेकिन भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून के आधार पर ही अभी तक राजद्रोह के केस दर्ज होते आए हैं। अहम बात यह है कि इस कानून के दायरे मे बाल गंगाधर तिलक से लेकर महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर भी आ चुके हैं। और उन पर भी राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने 1870 में बने राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी है।
देश में बढ़ती वहाबी गतिविधियों के खिलाफ ब्रिटिश सरकार इस कानून को लेकर आई थी। उन दिनों ये लोग ब्रिटिश सरकार को चुनौती देते थे, इसी वजह से इस कानून को लाया गया था। यहां यह समझने वाली बात है कि यह कानून स्थायी नहीं है। 1950 के संविधान में इस कानून को जगह नहीं दी गई थी। 1951 के पहले संशोधन में इस कानून को शामिल किया गया था। एक सवाल यह भी उठता है कि आलोचना कब राजद्रोह बन जाती है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जबतक कि हिंसा ना हो इस कानून का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। लेकिन कहते हैं ना कि शब्द भी हिंसक हो सकते हैं, जब सरकारों को लगता है कि किसी बयान से हिंसा हो सकती है तो वह इस कानून का इस्तेमाल करती हैं। यही वजह है कि अक्सर इस कानून का गलत इस्तेमाल होता है और इसकी वजह से चर्चा में रहता है।
अपराध साबित होने की दर बेहद कम
असल में राजद्रोह कानून पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि पिछले 7 साल के आंकड़े देखे जाए तो राजद्रोह के केस तो बढ़े हैं। लेकिन अपराध साबित होने की दर लगातार घट गई है। 2014 से 2021 के बीच देश में कुल 399 राजद्रोह के केस दर्ज किए गए हैं। लेकिन अपराध साबित होने की दर जो 2016 में 33.3 फीसदी थी , वह गिरकर 2019 में 3.3 फीसदी हो गई। इसी वजह से इस कानून के दुरूपयोग का आरोप विपक्ष लगाता रहता है।
क्यों सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के आधार पर लागू होता है। इस कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है। तो उसके खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधि में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज होता है। इसी तरह राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करने पर भी राजद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है।
इस कानून का लंबे वक्त से देश में विरोध किया जा रहा है। विरोधियों का तर्क हैं कि ये कानून अंग्रेजों के जमाने में बना है, तब इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेज अपने खिलाफ बगावत करने और विरोध करने वाले लोगों पर करते थे। आजाद भारत में ऐसे कानून की जरूरत नहीं है। देश में पहली बार साल 1891 में बंगाल के एक पत्रकार जोगेंद्र चंद्र बोस पर राजद्रोह लगाया गया था। यही नहीं बाल गंगाधर तिलक से लेकर महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, विनायक दामोदर सावरकर तक पर राजद्रोह का केस दर्ज हो चुका है। शुरू में कानून का समर्थन कर रही केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो इस कानून की समीक्षा करने को तैयार है, लिहाजा इसकी वैधता पर कोर्ट विचार न करे। अब देखना है कि केंद्र सरकार अपनी समीक्षा में इस कानून को लेकर क्या नया खाका पेश करती है।
पहले भी कोर्ट में पहुंचा है मामला बता दें कि राजद्रोह के कानून को पहली बार चुनौती नहीं दी गई है। पिछली सरकारों में भी इस कानून को चुनौती दी गई है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि आखिर हम क्यों नहीं इस अंग्रेजों के समय के कानून को खत्म नहीं करते हैं, जिसका इस्तेमाल अंग्रेज महात्मा गांधी के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए करते थे। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस पूरे कानून की समीक्षा की बात कही है।
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