उद्धव ठाकरे ने पार्टी के बागी विधायकों की तुलना सड़े हुए पत्तों से की, ऐसा क्या हुआ

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मुख्यमंत्री पद से पिछले महीने इस्तीफा देने के बाद शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के साथ पहले साक्षात्कार में उद्धव ने कहा कि पार्टी के कुछ नेताओं पर अत्यधिक भरोसा करना उनकी गलती थी

 न्यूज जंगल डेस्क कानपुर:—–शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को पार्टी के बागी नेताओं की तुलना पेड़ के ‘सड़े हुए पत्तों’ से की. उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद पता चल जाएगा कि लोग किसका समर्थन करते हैं. मुख्यमंत्री पद से पिछले महीने इस्तीफा देने के बाद शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के साथ पहले साक्षात्कार में उद्धव ने कहा कि पार्टी के कुछ नेताओं पर अत्यधिक भरोसा करना उनकी गलती थी. बता दें कि महाराष्ट्र में उद्धव के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार एकनाथ शिंदे और 39 अन्य विधायकों के शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह करने के कारण गिर गई थी. बता दें कि शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस एमवीए के घटक दल हैं. शिंदे ने बाद में राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने.

उद्धवजी, बाहर इतना तूफान मचा है फिर भी आप इतने ‘रिलैक्स’ दिख रहे हैं? क्या रहस्य है?(मुस्कुराकर) यह रहस्य ज्यादा पेचीदा नहीं है. आप भी जानते हैं, मेरी मां और शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे से मिला यह रसायन है. मां कहें तो शांत, सौम्यता, संयम और सहजता है.बता दें कि बालासाहेब कहें तो वर्णन करने की आवश्यकता ही नहीं है. बालासाहेब क्या थे, यह महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरा देश जानता है. थोड़ा-बहुत वह रसायन आया है मुझमें.

हम साल भर बाद विस्तार से बात कर रहे हैं… सही?
आपको बता दें कि मुझे याद है पिछले वर्ष जब आपने मेरा साक्षात्कार लिया था तब कोरोना का कहर जारी था. उस कोरोना में जो कुछ किया जाना संभव था, वह राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर और अभिमान के साथ कहूंगा कि राज्य के कुटुंब प्रमुख होने के नाते मैंने किया. उस समय लॉकडाउन था… मंदिर बंद थे… त्योहारों पर भी पाबंदी थी. लेकिन इस वर्ष पहली बार हमने पंढरपुर की वारी में कोई भी दिक्कत नहीं आने दी और हर्षोल्लास के साथ उसे संपन्न कराया. बता दें कि यानी फिर से एक बार उत्सव-त्योहारों की शुरुआत हो गई है. अब दहीहांडी आएगी, गणपति आएंगे, नवरात्रि आएगी, दिवाली आएगी, फिर एक बार हमारे जीवन में उत्सव, उत्साह और आनंद की शुरुआत हो गई है. बीच के दिनों में जैसे किसी ने एक ‘पॉज’ बटन ही दबा दिया था. आप सभी के सहयोग से हम कोरोना से और उसके संकट से बाहर निकल आए हैं. मुझे आनंद है.

हां निश्चित ही, परंतु आप पर राजनैतिक संकट गहराता दिख रहा है… तूफान है?
आपने साक्षात्कार की शुरुआत में कहा कि एक तूफान आने का आभास हो रहा है. आप ध्यान दीजिए, तूफान कहें तो सूखी पत्तियां-करकट उड़ते ही हैं. वही सूखे पत्ते-करकट इस वक्त उड़ रहे हैं. यह सूखे पत्ते-करकट एक बार जमीन पर आ जाएं तो असली दृश्य लोगों के सामने निश्चित ही आ जाएगा.

लेकिन आप एकदम शांत दिख रहे हैं?
मैं शांत वैसे? तो सच कहूं तो मुझे चिंता मेरी नहीं है,बता दें कि शिवसेना की तो बिल्कुल नहीं है. हां, थोड़ी-बहुत चिंता है, तो निश्चित तौर पर महाराष्ट्र के लोगों की, हिंदुओं और हिंदुत्व की है. इसका कारण, हिंदू द्वेषी और मराठी द्वेषी ये हमारे घर में ही हैं. मराठी लोगों की एकजुटता टूटे, हिंदुओं में फूट पड़े और मराठी माणुस, हिंदुओं को एकजुट करने के लिए जो मेहनत माननीय शिवसेना प्रमुख ने जीवन भर की उसे हमारे ही कुछ निकम्मों के हाथों तुड़वाने और फुड़वाने का प्रयास किया जा रहा है, इसकी मुझे चिंता है. इसलिए मैंने जो कहा कि इस समय जो सूखी पत्तियां-करकट उड़ रहे हैं… उसे उड़ने दो. यहां से पत्ते-करकट वहां जा रहे हैं. जो पत्ते झड़ने जरूरी थे, वे उड़ रहे हैं.

मतलब नए अंकुर फूटेंगे?
मैंने अतीत में अपने मनोगत में कहा था कि… जिस वक्त मैं ‘वर्षा’ में रह रहा था, उस वक्त का अनुभव लिखा था. इस घर के परिसर में दो वृक्ष हैं.बता दें कि एक है गुलमोहर का और दूसरा है बादाम का. दोनों वृक्षों को मैं साधारणत पिछले एक-दो वर्षों से देख रहा हूं. जिसे हम पतझड़ कहते हैं… पत्तों का गिरना… उसमें पत्ते पूरी तरह से गिर जाते हैं. केवल टहनियां रह जाती हैं. हमें लगता है, अरे इस वृक्ष को क्या हो गया? पर दो-तीन दिन में ही नए अंकुर फूटने लगते हैं, अंकुर फूटते हुए मैंने देखा है, आठ से दस दिनों में वो बादाम का वृक्ष फिर से हरा-भरा हो गया. गुलमोहर भी हरा-भरा हो गया. इसीलिए ये जो सड़े हुए पत्ते होते हैं वे झड़ने ही चाहिए. जो पत्ते झड़ रहे हैं, वे सड़े हुए हैं. उन्हें झड़ जाने दो!

मतलब अब सड़े हुए पत्ते झड़कर गिर रहे हैं?
हां, सड़े हुए पत्ते झड़ रहे हैं. जिन्हें वृक्ष से सब कुछ मिला, सभी रस मिले इसीलिए वे तरोताजा थे. वे पत्ते वृक्ष से सारा कुछ लेने के बाद भी झड़कर गिर रहे हैं और यह देखिए वृक्ष वैसे उजड़ा-निर्जीव हो गया है ये दिखाने का वे प्रयत्न कर रहे हैं. परंतु अगले ही दिन माली आता है और पतझड़ से गिरे पत्तों को टोकरी में भरकर ले जाता है.

झड़े हुए, सड़े हुए पत्ते कचरे की टोकरी में डालने की प्रक्रिया अब शुरू है?
निश्चित ही यह शुरू हो चुकी है. अब नए अंकुर फूटने लगे हैं. बता दें कि शिवसेना का किशोरों और युवाओं के साथ नाता, शिवसेना के जन्म से ही है. अलबत्ता, अभी भी बड़ी संख्या में वरिष्ठ शिवसैनिक आकर मिल रहे हैं. जिन्होंने बालासाहेब के साथ काम किया है, जिन्हें हम पहली पीढ़ी का कहेंगे. जिन्होंने शिवसेना का संघर्ष देखा है. खुद संघर्ष किया है. उन्हें शिवसेना का मतलब क्या है, यह ठीक से पता है. उन्हें शिवसेना से कुछ हासिल करने की अपेक्षा नहीं थी और आज भी नहीं है. परंतु वे आकर आशीर्वाद दे रहे हैं. यही आशीर्वाद शिवसेना को बल देगा.

आपने मालबार हिल स्थित मुख्यमंत्री के सरकारी निवास यानी ‘वर्षा’ का जिक्र किया. मैंने पहले ही कहा था कि आप बहुत रिलैक्स लग रहे हैं. परंतु मुझे ऐसा लग रहा है कि मालबार हिल से दोबारा मातोश्री आने के बाद आप ज्यादा रिलैक्स हो गए हैं?
क्यों नहीं, मातोश्री मेरा घर है. यहीं ज्यादा रिलैक्स महसूस होता है! मैं आपको अपने कुछ अनुभव सहज ही बताता हूं. जब मेरा ऑपरेशन हुआ… सच कहें तो दो बार ऑपरेशन हुए. वो अनुभव मेरा अलग है. बेहद अजीब अनुभवों से गुजरा हूं मैं. उस वक्त जब अनेस्थेसिया से मुझे जगाया गया…

मुख्यमंत्री रहते हुए… ?
हां! जब ऑपरेशन हुआ तब मैं मुख्यमंत्री था न. ऑपरेशन थियेटर से बाहर आने के बाद अनेस्थेसिया से उबरने के बाद मुझे डॉक्टरों ने पूछा कि सर कहां जाएंगे? ‘मातोश्री’ या ‘वर्षा’? मैंने तुरंत कहा- मातोश्री! तब मैने डॉक्टरों से कहा कि डॉक्टर, जब आपने मुझे अनेस्थेसिया दिया था, यदि उस अचेतावस्था में भी आपने मुझसे पूछा होता तो मैंने ‘मातोश्री’ यही जवाब दिया होता.

यह कहा जाए कि आपकी ‘मातोश्री’ पर आने की इच्छा नियति ने ही पूरी कर दी?
मूलत: मेरी ‘वर्षा’ पर जाने की इच्छा थी क्या? इसका उत्तर सभी को पता है. बता दें कि इसका अर्थ मुख्यमंत्री पद चला गया इसलिए बुरा कह रहा हूं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. वह एक वैभव है. मुख्यमंत्री पद का और ‘वर्षा’ का मैं बिल्कुल भी अनादर नहीं करूंगा. वह एक अलग ही वैभवशाली वास्तु है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद, यह एक वैभवशाली पद है. जिम्मेदारी का पद है. उसका पूरा सम्मान करते हुए कहता हूं, मैंने कभी भी व्यक्तिगत सपने नहीं देखे. उस वक्त जो घटा, वह आज के लोगों को, जिन्हें हम विश्वासघाती कहेंगे, उन्हें वह सब पता है कि कैसे पीठ पर वार किया गया और किन परिस्थितियों में हमें महाविकास अघाड़ी को जन्म देना पड़ा.

आपके अस्पताल में रहने के दौरान, ऑपरेशन के बाद की अस्वस्थता के वक्त आपकी सरकार को गिराने का प्रयास चल रहा था?
उस मुद्दे पर बोलूं क्या? बहुत पीड़ादायी है वो सब.

ऐसा आपने कहीं पहले भी कहा है?
मुझे कहीं भी उस अनुभव की सहानुभूति नहीं चाहिए. इसलिए सच कहूं तो मैं इस विषय पर बात करने से बचता हूं, पर वो अनुभव बेहद बुरा था. गर्दन का ऑपरेशन क्या होता है ये किसी भी डॉक्टर से पूछो. उसमें कितने जोखिम होते हैं, उनकी मुझे जानकारी थी. परंतु वह ऑपरेशन करना जरूरी था.बता दें कि मेरा पहला ऑपरेशन हुआ. उस पहले ऑपरेशन से मैं ठीक होकर बाहर निकला. जिसके पांच-सात दिनों बाद डॉक्टर ने मुझसे कहा, “उद्धव जी, कल आपको सीढ़ियां चढ़नी हैं. इसलिए मैं उस मानसिक तैयारी में था कि कल मुझे सीढ़ियां चढ़नी हैं. एक-एक कदम आगे बढ़ाने हैं…सुबह उठने के बाद, थोड़ा सुस्ताने के दौरान ही गर्दन में एक ‘व्रैम्प’ आ गया और मेरी गर्दन के नीचे की तमाम हलचल ही बंद हो गई. बता दें कि सांस लेते वक्त मैंने देखा कि मेरा पेट भी नहीं हिल रहा था. मैं पूरी तरह से निस्तेज हो गया था. एक ‘ब्लड क्लॉट’ आ गया था. सौभाग्य से डॉक्टर इत्यादि सब वहीं थे. जिसे ‘गोल्डन आवर’ कहते हैं, उस ‘गोल्डन आवर’ में ऑपरेशन हुआ, इसलिए मैं आज यहां आपके सामने बैठा हूं.”

“उस समय मेरे हाथ-पैर भी नहीं हिल रहे थे, उंगलियां भी नहीं हिल रही थीं. सबसे बड़ा टेंशन था कि कोई चींटी काटे, मच्छर काटे तो खुजाएं वैसे… यह भी एक अलग और अजीब समस्या थी. उस समय मेरे कानों तक खबर पहुंच रही थी कि मैं जल्द ठीक हो जाऊं, इसके लिए कुछ लोग अभिषेक कर रहे हैं तो कुछ लोग मैं इसी तरह रहूं, इस चाह में भगवान को हर तरह से मना रहे थे. भगवान को मनाने वाले वे लोग आज पार्टी डुबोने निकले हैं. उस वक्त यह अफवाह फैलाई जा रही थी कि ये अब खड़े ही नहीं हो सकेंगे. अब हमारा क्या होगा? …बता दें कि तुम्हारा क्या होगा? यह चिंता उन्हें थी. जिस समय अपनी पार्टी को संवारने की जरूरत थी. मैं पक्षप्रमुख, कुटुंब प्रमुख हूं, परंतु ऑपरेशन के बाद मैं हिल नहीं पा रहा था, उस दौरान उनकी हरकतें जोर-शोर से चल रही थीं. यह पीड़ादायी सत्य आजीवन मेरे साथ रहेगा. जब मैंने आपको पार्टी संभालने की जिम्मेदारी दी थी, नंबर दो का पद दिया था. पार्टी संभालने के लिए पूरा विश्वास किया था, उस विश्वास का तुमने घात किया. मेरे अस्पताल में रहने के दौरान मेरी हलचल बंद थी. तब तुम्हारे हाल-चाल जोर में थे और वे भी पार्टी के विरोध में.”

शिवसेना में विश्वासघात की यह राजनीति बार-बार क्यों होती है?
इसका कारण यही है कि हम इस पार्टी को ‘प्रोफेशनली’ नहीं चलाते, ऐसा मैं कहूंगा. आप भी शिवसैनिक हैं. बीते कई वर्षों से शिवसेना को देख रहे हैं. हम पार्टी को एक परिवार की तरह देखते आए हैं. बालासाहेब ने हमें यही सिखाया है. मां ने भी यही सिखाया है कि अपना कहने के बाद अपना ही. कदाचित राजनीति में यह अपराध अथवा गलती होगी, यह हमसे बार-बार होती है. वह मतलब, किसी पर विश्वास किया तो हम उस पर अंधविश्वास करते हैं. पूरी जिम्मेदारी के साथ उसे ताकत देनी हो… शक्ति देनी हो… बता दें कि हम वो करते हैं, परंतु अभी हमने जिन लोगों पर विश्वास किया, उन्हीं लोगों ने विश्वासघात किया. वे ही अभी ये कहकर अफवाह उड़ा रहे हैं कि हमने हिंदुत्व छोड़ दिया है, शोर मचा रहे हैं. उनसे मुझे यही सवाल पूछना है कि वर्ष 2014 में भाजपा ने जब युति तोड़ी थी, तब हमने क्या छोड़ा था?… कुछ भी नहीं छोड़ा था. आज भी हमने हिंदुत्व नहीं छोड़ा है. आपको बीच का एक कालखंड याद होगा, जब शिवसेना विपक्ष में बैठी थी, उस समय कई लोगों को लगा था कि शिवसेना अब खत्म हो जाएगी. लेकिन शिवसेना उस समय अकेले लड़ी और 63 विधायक चुनकर आए. उस दौर में विपक्षी दल की जिम्मेदारी हम पर आई थी, तब मैंने पद किसे दिया था? भाजपा ने आज जो किया है, वही मुझसे हुई चर्चा के आधार पर उसी समय किया होता तो सब कुछ सम्मानजनक हो गया होता. देशभर में पर्यटन करने की जरूरत नहीं पड़ी होती… और ऐसा मैंने सुना है, ऐसा मैंने पढ़ा है, मेरे पास पक्की जानकारी नहीं है, पर हजारों करो़ड़ रुपये इस पर खर्च किए गए. हवाई जहाजों का खर्च, होटल का खर्च व कुछ और अतिरिक्त खर्च…

अतिरिक्त खर्च… मतलब खोखेवाला?
हो सकता है… उस खोखे के अंदर क्या छिपा है, ये तो वे ही जाने. देने और लेनेवाले को पता चला होगा, लेकिन ये मुफ्त में हो गया होता न… और सम्मान के साथ भी हुआ होता. यही तो मैं कह रहा था.

फिर क्यों किया?
क्योंकि उन्हें शिवसेना को खत्म करना है. जो शिवसेना के साथ तय हुआ था, ढाई-ढाई वर्ष का मुख्यमंत्री पद… वही तो आपने अब किया है और यह यदि उस समय किया होता तो कम-से-कम पांच वर्षों में भारतीय जनता पार्टी को एक बार तो ढाई वर्षों का मुख्यमंत्री पद मिला होता… यह जो कुछ अभी स्वांग रच रहे हैं, ढोंग कर रहे हैं कि हमने शिवसेना को मुख्यमंत्री पद दिया, वो करना नहीं पड़ता और अब वे कह रहे हैं कि ‘हमारी’ शिवसेना यह शिवसेना नहीं है… यह सब तोड़-फोड़ करने के बाद भी उन्हें समाधान नहीं हो रहा क्योंकि उन्हें शिवसेना को खत्म करना है.

शिवसेना को खत्म करना है, ऐसा आपको क्यों लग रहा है… अब तक बीते 56 वर्षों में शिवसेना को खत्म करने के प्रयास अनेकों ने किए?
अनेक…अनेक… और हर बार शिवसेना अधिक ताकत के साथ और तेजी से उभरी है. अब भी उन्हें हिंदुत्व में अलगाव नहीं चाहिए हो तो मेरा यह हमेशा कहना है कि शिवसेना प्रमुख ने हिंदुत्व के लिए राजनीति की, वह हिंदुत्व मजबूत होना चाहिए, इसलिए! बता दें कि लेकिन ये राजनीति के लिए हिंदुत्व का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह हमारे और उनके हिंदुत्व में अंतर है. वे पूछते हैं न कि आपके और भाजपा के हिंदुत्व में क्या अंतर है, तो यही अंतर है. शिवसेना की राजनीति, यह हमने हिंदुत्व को मजबूत करने के लिए की है. पर उन्होंने अपनी राजनीति मजबूत करने के लिए हिंदुत्व का इस्तेमाल किया है.

आपके महाविकास अघाड़ी का मुख्यमंत्री पद स्वीकारते ही हिंदुत्व खतरे में आ गया, हिंदुत्व संकट में आ गया, ऐसा जो माहौल बनाया जा रहा है?
मतलब क्या?… मुझे कोई तो ऐसी घटना बताओ या मेरे हाथों घटित कोई बात अथवा मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए कोई ऐसा फैसला बताओ, जिससे हिंदुत्व खतरे में आया हो. एक निर्णय दिखाओ. हाल में भी आप अयोध्या गए थे. अयोध्या में हम महाराष्ट्र भवन बना रहे हैं. सही है? बता दें कि यह हिंदुत्व छोड़कर है क्या? आप ही तय करो. मुख्यमंत्री बनने से पहले मैं अयोध्या गया था. हर बार आप भी थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अयोध्या गया था. कौन क्या कहेगा इसकी मैंने परवाह नहीं की. मैं उस समय भी गया और रामलला के दर्शन लेकर आया था. दो बार मैं खुद अयोध्या गया था. अभी नई मुंबई में हमने तिरुपति मंदिर के लिए जगह दी है, जो प्राचीन मंदिर हैं उनका संवर्धन करना, जीर्णोद्धार करना यह हमने शुरू किया. गढ़-किलों का संवर्धन हमने शुरू किया. इसमें हिंदुत्व गया कहां? हम हिंदुत्व से दूर हों, ऐसा कोई भी निर्णय नहीं लिया गया. ऐसे अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं.

आप आज जिस संघर्षमय कालखंड से गुजर रहे हैं, उसकी कभी अपेक्षा की थी?
देखिए, आखिर में शिवसेना और संघर्ष एक-दूसरे के पूरक हैं. पहले भी किसी ने कहा था और उसका मुझे बारंबार अनुभव होता है कि शिवसेना, एक लहराती तलवार है.बता दें कि इसे यदि म्यान में रखा जाए, तो इसमें जंग लग जाती है. इसलिए यह लहरानी ही चाहिए. और तलवार लहराना मतलब संघर्ष आ ही गया. अर्थात इसका यह अर्थ कोई न ले कि तलवार से वार करो इत्यादि, ऐसा मेरा कहना भी नहीं है. यह एक उपमा है. अलबत्ता संघर्ष के लिए ही तो शिवसेना का जन्म हुआ है. उस वक्त मराठी माणुस के लिए, भूमिपुत्रों के न्याय व अधिकार के लिए शिवसेना का जन्म हुआ. इसके बाद हिंदुत्व के लिए शिवसेना लड़ी. फिर वो वर्ष 92-93 का दौर हो या उसके बाद का कोई भी वक्त. शिवसेना और संघर्ष… जहां अन्याय वहां वार. यह शिवसेना का ब्रीद वाक्य है.

जिस ठाणे ने शिवसेना को पहली ताकत दी… शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे और ठाणे के बीच एक भावनात्मक संबंध था. पहला भगवा झंडा ठाणे में फहराया. बालासाहेब अपने संपूर्ण जीवनकाल में अभिमान से कहते रहे कि ठाणे ने मुझे पहली सत्ता दी. उसी ठाणे से शिवसेना के लिए चुनौती खड़ी हुई है.
ठाणेकर सुधि हैं. ये जो सूखी पत्तियां-करकट हैं, वे मतलब ठाणेकर नहीं हैं. ठाणेकर मतलब ‘शिवसेना का ठाणे और ठाणे की शिवसेना’ यह जो नाता है, वह इन सूखी पत्तियों और करकटों से तोड़ा नहीं जाएगा. इसलिए मैं तो कहूंगा कि पूरा महाराष्ट्र मतलब उसमें ठाणे और मुंबई भी समाविष्ट हैं, वे चुनावों का इंतजार कर रहे हैं. इसलिए मेरा यही मानना है कि उससे पहले ऐसा एक कानून बनना चाहिए कि जिस किसी को भी गठबंधन करना हो, उन दोनों दलों का, तीनों दलों का, दसों दलों का जो कुछ गुणा-गणित आपको करना है वो करें. सिर्फ आपस में क्या करार-वरार हुआ है, उसे जनता के सामने रखें. सीटों का बंटवारा कैसे होगा? किस ध्येय से होगा? किस उद्देश्य और नीति पर आप युति कर रहे हैं? आगे क्या करनेवाले हैं वो करें.

इससे क्या साध्य होगा!
मतलब क्या हुआ होता, तो जो मेरे और भारतीय जनता पार्टी के बीच मुख्यमंत्री पद के बारे में तय हुआ था. पहले नकारने के बाद अब उन्होंने वही किया. वह पहले जनता के सामने खुलकर आ गया होता. दूसरी बात, चुनाव के बाद उसकी वजह से मुझे जो कुछ भी करना पड़ा, वह करना नहीं पड़ता. इससे महाविकास अघाड़ी का जन्म ही नहीं हुआ होता. उस महाविकास अघाड़ी को हमने जन्म दिया तब भी आपने देखा होगा कि मैंने जो शपथ ली वह शिवतीर्थ पर ली. छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा और बालासाहेब का स्मारक है वहां. उनकी साक्षी में वह ली.

हजारों-लाखों लोग उस समय मौजूद थे?
शिवतीर्थ पूरी तरह से भगवामय हो गया था, लोगों का हुजूम टूट पड़ा था. लोग नाराज होते तो वहां कोई भी नहीं आया होता. बावजूद इसके मेरी राय यह है कि अभी चुनाव कराएं.बता दें कि यदि हमने महाविकास अघाड़ी बनाकर गलती की होगी तो लोग हमें घर पर बिठा देंगे. आखिर जनता मुझे पहचानती ही है. लगातार हमारी छठी पीढ़ी महाराष्ट्र की जनता के लिए काम कर रही है. उससे पहले की भी पीढ़ियां थीं. बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने हमारे साथ जो करार किया था उसे तोड़ा. इसलिए उनकी गलती के लिए लोग उन्हें घर में बिठाएंगे या हमने पाप किया होगा तो हमें घर बिठाएंगे. हो जाने दीजिए जनता की अदालत में फैसला…मेरी तैयारी है

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