गृहयुद्ध में जल रहा श्रीलंका, राष्ट्रपति राजपक्षे के भागने के  बाद बुलाई गयी आपात बैठक

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श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति राजपक्षे भाग चुके हैं। जबकि, बिगड़ते हालातों को काबू में लाने के लिए पीएम विक्रमसिंघे ने आपात बैठक बुलाई है

न्यूज जंगल डेस्क कानपुर:- आर्थिक तंगी से जूझ रहा श्रीलंका इस वक्त गृहयुद्ध के सबसे बुरे दौर में गुजर रहा है। कोलंबो में हजारों प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ दिए और राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास पर कब्जा कर लिया है। 22 मिलियन की आबादी वाले राष्ट्र श्रीलंका में मौजूदा हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति गोयबाया राजपक्षे परिवार समेत राष्ट्रपति भवन छोड़ चुके हैं। उधर, राजधानी कोलंबो में बढ़ते संकट के बीच प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने स्थिति पर चर्चा करने और त्वरित समाधान के लिए पार्टी नेताओं की आपात बैठक बुलाई है। उन्होंने स्पीकर से संसद को बुलाने का भी अनुरोध किया है।

एक शीर्ष सरकारी सूत्र का कहना है कि स्थिति “नियंत्रण से बाहर हो जाएगी” की खुफिया रिपोर्ट के बाद गोटाबाया राजपक्षे को कल रात ही सेना मुख्यालय ले जाया गया था।  श्रीलंका के संसद के सोलह सदस्यों पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) ने राष्ट्रपति से तत्काल इस्तीफा देने का अनुरोध किया है। समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक श्रीलंका के पीएम रानिल विक्रमसिंघे ने एक तत्काल कैबिनेट बैठक बुलाई है।

बेकाबू प्रदर्शनकारियों को रोकने में नाकाम
श्रीलंका के झंडे और हेलमेट लिए हुए हजारों प्रदर्शनकारियों ने आज सुबह राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास को घेर लिया। यह घटना तब हुई जब पुलिस ने विपक्षी दलों, कार्यकर्ताओं और बार एसोसिएशन से कानूनी चुनौती के बाद कर्फ्यू का आदेश दिया था। समाचार एजेंसी एएफपी ने एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से बताया कि पुलिस ने हवा में गोलियां चलाईं, लेकिन राष्ट्रपति आवास के आसपास से गुस्साई भीड़ को रोकने में नाकाम रही।

गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ आक्रोश
ईंधन की भारी कमी के बाद श्रीलंका में परिवहन सेवाएं ठप हो गई हैं। प्रदर्शनकारी देश के कई हिस्सों से बसों, ट्रेनों और ट्रकों में भरकर कोलंबो पहुंचने के लिए सरकार की आर्थिक बर्बादी से बचाने में विफलता का विरोध कर रहे हैं। एएफपी के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों का कहना है, ‘देश की मौजूदा स्थिति के लिए सिर्फ राष्ट्रपति गोयबाया राजपक्षे ही जिम्मेदार हैं। उनसे बार-बार इस्तीफा देने का अनुरोध किया जा रहा है। वो सिर्फ अपने फायदे के लिए सत्ता पर बने रहना चाहते हैं। हम तब तक नहीं रुकेंगे, जब तक हमारी बात नहीं सुनी जाती।’

श्रीलंकाई सरकार पर बढ़ा दबाव
श्रीलंका इस वक्त एक गंभीर विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है। जिसने ईंधन, भोजन और दवा जैसी आवश्यक चीजें सीमित हो गई हैं। देश में यह पिछली सात दशकों की सबसे खराब वित्तीय स्थिति है, जिसमें श्रीलंका डूबा हुआ नजर आ रहा है। मौजूदा हालात को काबू में लाने के लिए श्रीलंकाई सरकार का फोकस अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर रहेगी। प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने त्वरित समाधान के लिए आपात बैठक बुलाई है। जिसमें मौजूदा हालातों को काबू में लाने के लिए बड़े फैसले किए जा सकते हैं।

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