पंडित शिवकुमार शर्माः सो गया संतूर को शास्त्रीय बनाने वाला महान साधक

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भारत की महान शास्त्रीय संगीत परंपरा में संतूर एक अभिन्न अंग है लेकिन इस लोक वाद्ययंत्र को शास्त्रीय परंपरा के एक अहम वाद्य के रूप में स्थापित करने श्रेय पंडित शिवकुमार शर्मा

न्यूज जंगल नेटवर्क, कानपुर :चीड़ के जंगलों से गुजरते हुए या झील के पानी को घाटी में कलरव करते हुए अगर आपने सुना है तो आप समझ सकते हैं कि संगीत की रंगशाला में संतूर क्या है. संतूर संतूर- एक ऐसा वाद्य जो तरंगों पर सजाकर आपका कितने ही प्राकृतिक आभासों से साक्षात्कार कराता है अफ़सोस है, कि संतूर का सबसे सम्यक और विशिष्ट साधक अब हमारे बीच नहीं है. केवल अनुगुंजन है तारों से पैदा होती झंकार का, जो कानों में झरने की तरह प्रवाहित होती अमृतधारा सरीखी है. भारतीय शास्त्रीय संगीत में संतूर की स्वीकारोक्ति की कथा 60-70 साल पुरानी है. संतूर यानी शत-तंत्री वीणा. यानी 100 तारों वाला एक वाद्य. इसका अस्तित्व भारत के कश्मीर का है. और इसीलिए इनके गठन से लेकर स्वभाव और ध्वनि तक यह आपको घाटी का सफ़र कराता है. संतूर को सुनना वादियों में गुजरने जैसा है.कलकल करते झरने, तरंगित लहरें, घुंघरुओं सी हौले-तेज चलती हवाएं, झूमकर गाते चीड़, अखरोट, देवदार और पाइन के पेड़, पहाड़ियों से लुढ़कती हुई छोटी ककड़ियां भेड़ और गायों के झुंड से उठती गूंज और चहकते हुए बच्चे, पक्षी….ऐसे कितने ही बिंब हैं संतूर के सुरों भेड़ और गायों के झुंड से उठती गूंज और चहकते हुए बच्चे, पक्षी….ऐसे कितने ही बिंब हैं संतूर के सुरों में.

यह शिवकुमार शर्मा का संतूर वादन ही था कि इस वाद्य यंत्र को भी सितार और सरोद की श्रेणी में माना जाने लगा था। उन्होंने बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के साथ जोड़ी बनाई थी, जिसे संगीत प्रेमियों के बीच शिव-हरि के नाम से जाना जाता था। दोनों ने मिलकर सिलसिला, लम्हे, चांदनी जैसे कई लोकप्रिय फिल्मों के लिए संगीत दिया था। पंडित शिवकुमार शर्मा ने महज 13 साल की उम्र में ही संतूर का वादन शुरू कर दिया था। उन्होंने मुंबई में 1955 में पहली परफॉर्मेंस दी थी। उन्हें 1991 में पद्म श्री और फिर 2001 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।

पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि, सांस्कृतिक विरासत को बड़ा नुकसान

पीएम नरेंद्र मोदी ने शिवकुमार शर्मा के निधन पर शोक जताया है। ट्विटर पर श्रद्धांजलि देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने लिखा, ‘शिवकुमार शर्मा जी के निधन से हमारी सांस्कृतिक विरासत को बड़ा नुकसान पहुंचा है। उन्होंने संतूर को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया था। उनका संगीत आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करता रहेगा। मैं उनके साथ अपनी मुलाकात को याद करता हूं। उनके परिवार और उन्हें चाहने वालों को ईश्वर यह दुख सहने की शक्ति दे। ओम शांति।’

संतूर का महान साधक

संतूर घाटी में पैदा हुआ और शायद घाटी तक ही सिमटा रह जाता अगर इस वाद्ययंत्र की विरासत को पंडित शिवकुमार शर्मा जैसा शिष्य न मिलता. शिवकुमार शर्मा के पिता उमादत्त शर्मा एक प्रसिद्ध गायक और तबला वादक थे. लेकिन शिवकुमार शर्मा ने पांच साल की आयु में संतूर को साधने का संकल्प लिया.लगन और मेहनत ऐसी थी कि महज़ 13 साल की आयु में शिवकुमार शर्मा अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति दे चुके थे. इसके बाद उन्होंने संतूर को और संतूर ने उनको संवारना शुरू कर दिया

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