जोधपुर में रिटायर्ड अध्यापक ने कायम की मिसाल, चट्टानों का सीना फाड़ कर बनाई फूलों की बगिया, देखिए तस्वीरें
न्यूज जंगल डेस्क। कानपुर: जोधपुर को सूर्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि सूर्य यहां पर सबसे पहले उदय होता है और अधिक समय तक रहता है जिसके कारण यहां पर गर्मी भी भरपूर रहती है. जोधपुर के चट्टानी इलाकों और सूखे क्षेत्र में एक पौधा लगाना तो क्या एक बीज बोना भी बहुत मुश्किल है. लेकिन इन चट्टानों का सीना फाड़ कर एक पर्यावरण प्रेमी ने इसको फूलों की बगिया बना दिया. 75 साल के प्रसन्न पुरी गोस्वामी प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं. उनकी कड़ी मेहनत ने ऐसा रंग दिखाया की चट्टानों पर फूल खिलने लगे 35 साल तक इन पहाड़ों में पेड़ पौधे लगाने की लगाने का नतीजा ये है कि यहां पर हरियाली चारों और नजर आती है.
प्रश्न पुरी गोस्वामी इसी क्षेत्र में रहते हैं और उन्होंने बताया कि मुझे बचपन से ही पेड़ों के झुरमुट अच्छे लगते थे और मैं इन पहाड़ियों की बरसात इस अर्चना से अच्छी तरह से परिचित था. इसी के चलते मुझे बरसाती झड़ने की दिशा और ढलान का अनुकूल पौधारोपण करने में आसानी रही.
उन्होंने बताया कि, ये शुरुआती समय की बात है कि जब मैं स्कूल में पढ़ता था खाली समय में अपने दोस्तों के साथ किले की घाटी पर नियमित घूमता था. तभी पौधारोपण की बात चली तो प्रस्ताव तो अच्छा था लेकिन शुरू करने की बारी आई तो चुप्पी पसर गई. लेकिन मैंने ठान लिया कि इस विचार को खामोश नहीं होने देना है अपने पवित्र संकल्प के लिए मैंने उचित जगह देखकर कुछ पौधे रोप दिए.फिर बरसाती दिनों में वो खिल उठे.
शुरुआत में कुछ लोगों ने मेरी मेहनत को व्यर्थ बताया और कहा कि देखो ये पहाड़ों के पत्थरों पर फूल खिलाने आया है, लेकिन मेरी मेहनत ने रंग दिखाया और चट्टानों पर हरियाली दिखने लगी जिसने लोगों की बोलती बंद कर दी.
उन्होंने ये भी बताया कि, उसी दौरान सरकारी स्कूल से मेरा तबादला जालौर हो गया और इस जगह की जिम्मेदारी मैंने अपने बड़े बेटे प्रमोद पुरी को दी. मैंने प्रमोद पुरी को सब बताया था कि, कीड़े लगने पर किस तरह का केमिकल का छिड़काव नहीं करना है, लेकिन प्रमोद इस बात को समझ नहीं पाया और एकबार छिड़काव के वक्त कीटनाशक उसकी सांस नली में चला गया और इस दुर्घटना में वो अपनी जान गंवा बैठा.
इस घटना ने प्रसन्न पुरी गोस्वामी को झकझोर कर रख दिया. वो वृक्षा प्रेमी था और प्रकृति संरक्षण करते हुए उसके बेटे की मौत हो गई. इसके बाद उन्होंने सोचा कि वो अब ये काम नहीं करेंगे. लेकिन फिर सोचा कि ये पौधे भी तो मेरी ही संतान है और इसी जगह मेरे बेटे की आत्मा बसती है तो फिर उन्होंने काम शुरू किया जिसका परिणाम ये है कि मेहरानगढ़ किले के आसपास के क्षेत्र में 22 हेक्टर में हरियाली देखने को मिल रही है.
बता दें कि मेहरानगढ़ की तलहटी में बनी चट्टानों पर अलग-अलग भाग में पौधारोपण किया गया. यहां एक औषधालय बनाया गया तो कहीं फूलों की बगिया और इसको लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. जिसके चलते जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, शिक्षा मंत्री बीड़ी कल्ला सहित कई नामी-गिरामी लोगों ने यहां पर पौधारोपण किया जो कि आज भी जिंदा है
इन पहाड़ों पर 13 किस्मों की बोगनवेलिया और 50 किस्मों के गुलाब उगाए गए हैं. यहां 120 से अधिक ओषधि के पौधे लगाए गए हैं. लोगों में पर्यावरण प्रेम जगाने के उद्देश्य से एक औषधालय भी बनाया गया है. जहां पर राजस्थान में मिलने वाली औषधियों का पौधा रोपण किया गया है जो प्राय विलुप्त होती जा रही है.
इस औषधालय में उगने वाली औषधियों से कई लोगों को फायदा हो रहा है. ऑक्सीजन बैंक के रूप में भी ये काम आ रहा है. प्रशन पुरी जी ने कहा कि अगर आप किसी काम में जी-जान लगाकर जुड़ जाते हैं, तो ना तो उम्र रोक सकती है ना ही हालात और व्यवस्था तो अपने आप होती चली जाती है. 35 वर्ष पहले शुरू की गई मुहिम का खूबसूरत नतीजा ये है कि करीब 22 हेक्टेयर से भी अधिक नंगी पहाड़ियां ढलान पर हरियाली नजर आती है.
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