दत्तात्रेय: रघुकुल रीति के बारे में युवा पीढ़ी को सिखाने की है जरूरत

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न्यूज जगंल डेस्क: कानपुर पूंजीवाद और साम्यवाद से अलग कुटुम्ब प्रबोधन विचारधारा के जनक रहे है पंडित दीनदयाल उपाध्याय। इस विचारधारा को पूरे विश्व को दीनदयाल उपाध्याय ने समझाने का कार्य किया। दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहीं। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय को देश का राष्ट्रीय ऋषि बताया। दत्तात्रेय ने कहा कि दीनदयाल जी तन्त्रविज्ञान को स्वदेशी करने और स्वदेशी को युवाओं के अनुसार करने पर जोर देते रहे। उनका मानना था कि तभी एक सभ्य समाज का निर्माण हो सकता है।

बेहतर समाज श्रेस्ठ परिवार बनाते है

होसबले ने फ्रीडम रायटर्स फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर परिवार ही ठीक नहीं है तो एक बेहतर समाज की कल्पना परिकल्पना नहीं की जा सकती. समाज की प्राथमिक इकाई परिवार ही है. एक एक परिवार को ठीक किए बिना राष्ट्र की उन्नति नहीं हो सकती है. परिवारों को अनुशासित रखने लिए संस्कारों का निर्माण किया गया।

परिवार में समाई है सम्पूर्ण प्रकृति

उन्होंने बताया कि दीनदयाल जी के अनुसार कुटुंब और परिवार में अंतर बताते हुए कहा कि कुटुंब का मतलब रक्त संबंध से है। जबकि परिवार का मतलब उस घर में रहने वाले सभी लोगों से चाहे वह जानवर ही क्यों ना हो। कुटुंब प्रबोधन का अर्थ परस्पर सहयोगात्मक विकास से है और सीखने की पहली सीढ़ी परिवार है। उन्होंने कहा कि घर के वातावरण से ही व्यक्ति मनुष्य बनता है। यहीं पर वह अपने प्राथमिक संस्कार सीखता है और दुसरों के लिए त्याग करना सीखता है।

मारग्रेट थैचर ने कहा हिंदू किसी के लिये खतरा नही

इंग्लैंड में हिंदू समाज की ओर से आयोजित किए गए एक कार्यक्रम का उदाहरण देते हुए होसबोले ने कहा कि एक कार्यक्रम में ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर ने भारत की परिवार प्रणाली की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि हिंदू लोग यहां भी एक परिवार की तरह रहते हैं। हमें भी वह परिवार की अवधारणा के बारे में सिखाएं। वह किसी भी राष्ट्र के लिए खतरा नहीं हो सकते है।

रघुकुल रीति के बारे में युवा पीढ़ी को सिखाने की जरूरत

उन्होंने कहा कि हमारे एक प्रसिद्ध कहावत है कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। इसका मतलब है कि‌ मनुष्य की वाणी का भी कोई मूल्य होना चाहिए। आज की युवा पीढ़ी को इस बारे में सिखाने की बहुत ज्यादा जरूरत है। अपनी संस्कृति के बारे में बताया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि भारतीय संस्कृति मनुष्य को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।

मातृ शक्ति के ऊपर टिकी है देश की संस्कृति

उन्होंने महिलाओं को संस्कृति का रक्षक बताते हुए कहा कि एक पुरुष कहीं भी वॉइस चांसलर हो जाए तो वह सूट पैंट पहन कर ही जाता है। जबकि स्त्री आज भी अपनी संस्कृति को संजय हुए हैं वह किसी भी पद पर पहुंच जाएं लेकिन साड़ी पहनना नहीं भूलती है। इसीलिए संस्कृति से जुड़ी हुई सभी चीजों को मातृशक्ति का नाम दिया गया है चाहे वह मातृभाषा हो या मातृभूमि।

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