कानून सभी के लिए समान होना चाहिए, संविधान के इस  पूर्ति एक देश, एक कानून बिना संभव नहीं

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राज्यों और केंद्र के अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो राज्यों को यह संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वे इस संबंध में कानून बनाएं। जहां तक देश की बात है तो इसे बहुत पहले ही लागू हो जाना चाहिए था।

 न्यूज जंगल नेटवर्क, कानपुर : समान नागरिक संहिता पर फिर से विमर्श तेज है। कुछ राज्य सरकारों ने इसे लागू करने की मंशा जताई है। उत्तराखंड में सत्तारूढ़ सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसका वादा किया था। राज्यों और केंद्र के अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो राज्यों को यह संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वे इस संबंध में कानून बनाएं। जहां तक देश की बात है तो इसे बहुत पहले ही लागू हो जाना चाहिए था। दुर्भाग्य से अब तक ऐसा नहीं हो सका है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर कई मौकों पर सवाल भी किया है कि संविधान में जब इसे लेकर स्पष्ट प्रविधान है तो सरकारों ने इसे लागू करने को लेकर अब तक कदम क्यों नहीं उठाया?

शायद राजनीतिक कारणों और अनुकूल समय न देखते हुए पूर्व की सरकारों ने अब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया, क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए जितना अहम मुद्दा है, उससे कहीं अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक तैयारियों से जुड़ा हुआ मामला भी है। इसके बिना इसे लागू करना संभव नहीं दिखता है। अब जब इसकी बात फिर से चल रही है और राज्य सरकारों द्वारा इस पर कदम बढ़ाने की बातें कही जा रही हैं, तो उन्हें यह देखना होगा कि सही समय आ गया है या नहीं।

जहां तक लोकतंत्र और पंथनिरपेक्ष समाज की बात है तो उसके लिए किसी भी नागरिक के साथ किसी भी तरह किसी भी कारण भेदभाव नहीं होना पहली शर्त है। संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया कि कानून के समक्ष सभी समान हैं और किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा, लेकिन असल में ऐसा कहां है। अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून है। बड़ी बात कि धर्म के नाम पर यह भेदभाव है, जहां धर्म के नाम पर किसी से कोई भेदभाव नहीं करने की बात कही गई है। जैसे बहुविवाह समेत कई मसलों पर अलग-अलग वर्ग के लिए अलग कानून हैं। कानून में इस तरह का भेदभाव बहुत पहले से चला आ रहा है। इस भेदभाव को खत्म कर सबके साथ समान कानूनी व्यवहार किया जाना चाहिए। वास्तव में ऐसा नहीं किया जाना संविधान का उल्लंघन है। अनुच्छेद 15 कहता है कि धर्म, जाति, पंथ, मूल वंश व लिंग के आधार पर देश के नागरिकों में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

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