ऐसा अदभुत मंदिर जहां दर्शनों के लिए तरस जाते हैं श्रद्धालु, मदिरा पीने की वजह से हुए थे देवता कैद

चमोली जिले के देवाल विकासखंड के वाण गांव में क्षेत्रपाल देव लाटू देवता का मंदिर है यह मंदिर साल में सिर्फ एक खुलता है. वहीं, मंदिर के दर्शन बाहर से तो सभी श्रद्धालु कर सकते हैं, लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करना वर्जित है.ऐसा माना जाता है कि नागराज अद्भुत मणि के साथ मंदिर में रहते हैं ।

उत्तराखंड के चमोली जिले में रहस्य से भरा एक ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालु भगवान के दर्शन के लिए तो आते हैं लेकिन फिर भी दर्शन नहीं कर पाते हैं. चमोली जिले के देवाल विकासखंड के वाण गांव में क्षेत्रपाल देव लाटू देवता का मंदिर है. यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन खुलता है. वहीं, मंदिर के दर्शन बाहर से तो सभी श्रद्धालु कर सकते हैं, लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करना वर्जित है.यह मंदिर सिर्फ एक दिन वैशाख पूर्णिमा के दिन ही खुलता है और उसी दिन मंदिर में ब्राह्मण आंखों पर काली पट्टी और मुंह पर कपड़ा बांधकर मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

जान लीजिए वजह
ऐसा कहा जाता है कि नागराज अद्भुत मणि के साथ मंदिर में रहते हैं। मणि का तेज इतना अधिक होता है कि जो मनुष्य की आंखों की रोशनी को भी खत्म कर सकता है, इसलिए मंदिर में जाना वर्जित है।

कब खुलते हैं कपाट ?
मंदिर के पुजारी खेम सिंह नेगी बताते हैं कि मंदिर के कपाट वर्ष में सिर्फ एक ही बार भक्तों के लिए वैशाख पूर्णिमा  को खोल दिए जाते हैं. कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु दूर से ही देवता के दर्शन करते हैं. इस वर्ष लाटू देवता के कपाट 5 मई को खुलेंगे. कपाट खुलने पर श्रद्धालुओं और महिलाओं द्वारा पारंपरिक परिधानों ,आभूषणों के साथ झोड़ा, चांचड़ी लोकनृत्य प्रस्तुत किया जाता है.

लाटू देवता का मां नंदा से है यह रिश्ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी के धर्म भाई हैं. जब भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ, तो पार्वती (नंदा देवी) को विदा करने के लिए सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े. इसमें उनके चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे. रास्ते में लाटू देवता को प्यास लगी. वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे. उन्हें एक कुटिया दिखी, तो लाटू वहां पानी पीने चले गए. कुटिया में एक साथ दो मटके रखे थे, एक में पानी था और दूसरे में मदिरा थी. लाटू देवता ने गलती से मदिरा पी ली और उत्पात मचाने लगे. इससे नंदा देवी को गुस्सा आ गया और उन्होंने लाटू देवता को श्राप दे दिया. मां नंदा देवी ने गुस्से में लाटू देवता को बांधकर कैद करने का आदेश दिया।

वाण गांव से हेमकुंड तक जाते हैं लाटू देवता
लाटू देवता से मां नंदा देवी ने कहा कि वाण गांव में उसका मंदिर होगा और वैशाख महीने की पूर्णिमा को ही उसकी पूजा की जायेगी . यही नहीं, हर 12 साल जब नंदा राजजात जाएंगी, तो लोग लाटू देवता की भी पूजा करेंगे. तभी से नंदा राजजात के वाण गांव में पड़ने वाले 12वें पड़ाव में लाटू देवता की पूजा की जाती है। लाटू देवता वाण गांव से हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा को भेजने के लिए उनके साथ जाते हैं ।

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