केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में ‘संचार साथी’ ऐप की अनिवार्यता हटाने के फैसले ने इस मुद्दे को फिर सुर्खियों में ला दिया है। यह ऐप मूलतः मोबाइल चोरी रोकने, सिम कार्ड के दुरुपयोग का पता लगाने और डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था। लेकिन जब इसे अनिवार्य बनाने की बात सामने आई, तब निजता को लेकर विपक्ष और नागरिक संगठनों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया। लगातार बढ़ते दबाव के बाद सरकार ने अब अनिवार्यता वापस ले ली है।
यह विवाद एक बड़ा सवाल खड़ा करता है—अन्य लोकतांत्रिक देश डिजिटल सुरक्षा कैसे संभालते हैं? क्या वे भी नागरिकों पर ऐसे सरकारी एप थोपते हैं? इसका उत्तर है—नहीं। अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों ने साइबर सुरक्षा के लिए पूरी तरह अलग, अधिक संतुलित और गोपनीयता-सम्मत मॉडल अपनाए हैं।
अमेरिका कैसे करता है साइबर सुरक्षा?
अमेरिका में सरकार नागरिकों को कोई ऐप अनिवार्य नहीं करती।
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देश की साइबर सुरक्षा एजेंसी CISA (Cybersecurity and Infrastructure Security Agency) निजी कंपनियों, बैंकों, आईटी सेक्टर और जनता के लिए एडवाइजरी जारी करती है।
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टेक कंपनियों और मोबाइल निर्माताओं को नियमित सुरक्षा अपडेट जारी करने की जिम्मेदारी दी जाती है।
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डेटा सुरक्षा के लिए सख्त नियम हैं, लेकिन नागरिकों पर कोई सरकारी एप इंस्टॉल करने का दबाव नहीं होता।
यूरोपीय संघ (EU) का मॉडल
EU दुनिया का सबसे गोपनीयता-सम्मत ढांचा रखता है।
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GDPR (General Data Protection Regulation) के तहत किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म को नागरिकों का डेटा बिना उनकी साफ़ सहमति के इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है।
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साइबर सुरक्षा सरकार और निजी कंपनियों की साझेदारी से संभाली जाती है।
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नागरिकों पर डिजिटल निगरानी वाले किसी अनिवार्य एप का दबाव नहीं डाला जाता।
यूनाइटेड किंगडम का तरीका
UK की साइबर सुरक्षा प्रणाली नागरिक-अनुकूल है।
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NCSC (National Cyber Security Centre) साइबर अलर्ट, जागरूकता अभियान और टेक इंडस्ट्री के साथ समन्वय के जरिए डिजिटल सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
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चोरी हुआ मोबाइल या सिम ट्रैक करने के लिए कोई केंद्रीय अनिवार्य ऐप नहीं है।
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मोबाइल कंपनियाँ और बैंक अपने-अपने सुरक्षा उपाय लागू करते हैं।
भारत में आगे का रास्ता
संचार साथी ऐप तकनीकी रूप से उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसके अनिवार्य उपयोग के सवाल पर उठे निजता संबंधी चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लोकतांत्रिक देशों की तरह भारत में भी साइबर सुरक्षा को सरकारी, निजी और तकनीकी विशेषज्ञों की साझेदारी वाली व्यवस्था की ओर विकसित करने की जरूरत है—जहां सुरक्षा भी सुनिश्चित हो और गोपनीयता भी सुरक्षित रहे।
यह फैसला इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम माना जा सकता है
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