नालंदा और तक्षशिला जैसी शैक्षिणिक केंद्रों की फिर से जरूरत : डॉ. मोहन दास

हम जितनी भी समस्याओं (सामाजिक, शैक्षणिक एवं कॉर्पोरेट आदि जगत से संबंधित) का आज सामना कर रहे हैं, उसका मुख्य कारण आत्म प्रबंधन और आत्म शिक्षा का अभाव है। एकेडमिक शिक्षा से बस हम थोड़ा बहुत बौद्धिक विकास कर पाए हैं। लोगों में जीवन कौशल का बहुत अभाव है। इस गिरावट के पीछे गुरूकुल पद्धति से दूर होना है। अपने रोजमर्रा के जीवन में आध्यात्मिकता को शामिल करना और जीवन मूल्यों का आत्मसाध करने से ही बदलाव आएगा। शिक्षा की प्रचीन पद्धति और संस्कृति से रि-कनेक्ट होने की एक बार फिर से जरूरत है। ये विचार हार्टफुलनेस रिसर्च सेंटर 'मैसूर' के डायरेक्टर डॉ. मोहन दास हेगड़े ने सीएसजेएमयू के इंटरनेशल गेस्ट हाउस में 'हार्टफुलनेस के माध्यम से स्वयं को सशक्त बनाना एवं स्वं से जुड़ना' विषय पर आयोजित कार्यशाला में रखे।
कार्यस्थल से तनाव-उलझन को लेकर जाते हैं घर
डॉ हेगड़े ने कहा कि जीवन में भागदौड़ के कारण हम अपने आप से नहीं मिल पाते हैं। वजह यही है कि हम आनंद नहीं, तनाव के साथ जीवन को जी रहे हैं। आम जीवन या कार्यस्थल की उलझन दिन के अंत तक हमारा पीछा करती रहती हैं. तनाव और उलझन को घर तक ले जाते हैं.

हार्टफुलनेस की तकनीक से आएगा रूपांतरण 
(प्राणाहुति) और (रिजियूविनेशन) हार्टफुलनेस की दो अद्‌भुत तकनीकें हैं। प्राणाहुति के साथ ध्यान चिंता और तनाव में रहने जैसी निम्र प्रवृत्तियों को हटाकर हमें भीतर से रूपानंतरित करने में मदद करती है। सफाई की प्रक्रिया भावनात्मक बोझ से हमे मुक्त कर फिर से तरोताजा (रिजियूविनेट) कर देती है। स्थानीय ध्यान प्रशिक्षकों की मदद से आप हार्टफुलनेस की पद्धतियों का अनुभव कर सकते हैं।

भगवतगीता को आत्मसाध करने की है जरूरत
डॉ. हेगड़े ने बताया कि यूएस में 80 वर्ष के एक डॉक्टर हैं। वे छह महीने अपने प्रोफेशन की गतिविधियों में शामिल रहते हैं, और अगले छह महीने सिर्फ गीता के प्रचार-प्रसार के लिए देते हैं। लगेज में उनके कपड़े और जीवन उपयोगी समग्री से ज्यादा भगवतगीता का भार होता है। यूएस डॉक्टर अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि 10-10, 12-12 साल गीता सीखते हैं, लेकिन कुछ बदलाव नहीं आता है। सिर्फ पढ़ना और अर्थ को समझान नहीं है, बल्कि भगवतगीता को आत्मसाध करने की जरूरत है। जोनल समन्वयक शालिनी श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। हार्टफुलनेस के अनुयायी, प्रोफेसर, स्टाफ और छात्र-छात्राएं उपस्थित रही।
 नालंदा था बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त प्रथम ने 5वीं शताब्दी ईस्वी में की थी. यह विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था और उस समय के सबसे बड़े और प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में से एक था. यहाँ अन्य विषयों जैसे वेद, योगशास्त्र, चिकित्सा, तंत्रविद्या और सांख्य दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थीं. अपने चरम पर, नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया भर से छात्र और विद्वान आते थे, जिनमें तिब्बत, चीन, कोरिया और मध्य एशिया के लोग शामिल थे. नालंदा विश्वविद्यालय को 12वीं शताब्दी में बस्तियार खिलजी के नेतृत्व में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था.

 तक्षशिला था प्राचीन भारत का प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र
रामायण के अनुसार, तक्षशिला की स्थापना भगवान राम के भाई भरत ने की थी। विश्वविद्यालय का नाम उन्होंने अपने पुत्र तक्ष के नाम से रखा था। यह प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था। इसे दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है। तक्षशिला विश्वविद्यालय में कई प्रसिद्ध विद्वानों ने शिथा प्राप्त की, जिनमें कौटिल्य (जिन्होंने अर्थशास्त्र लिसखा) और चरक (एक प्रसिद्ध चिकित्सक) शामिल है। यह विश्वविद्यालय 700 ईसा पूर्व के आसपास स्थापित किया गया था।

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