देश की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन कंपनियों में शामिल इंडिगो (IndiGo) को चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कंपनी द्वारा जारी तिमाही नतीजों के अनुसार, उसे इस दौरान 2,582.10 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा दर्ज करना पड़ा है। यह नुकसान ऐसे समय में सामने आया है जब विमानन क्षेत्र धीरे-धीरे महामारी के प्रभावों से उबर रहा है, लेकिन ईंधन कीमतों में उछाल और भारतीय रुपए की गिरावट ने एयरलाइंस की लागत को काफी बढ़ा दिया है।
क्यों बढ़ा नुकसान?
विशेषज्ञों के अनुसार, इंडिगो की आर्थिक स्थिति पर सबसे बड़ा असर रुपए की कमजोरी और एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) की कीमतों में तेजी का पड़ा। एयरलाइंस की कुल लागत में फ्यूल का हिस्सा 45–50% तक होता है, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल महंगा होने और रुपए में लगातार गिरावट से संचालन खर्च तेजी से बढ़ गया।
इसके अलावा, डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से लाभकारी अंतरराष्ट्रीय रूटों की लागत भी बढ़ी है, क्योंकि विमान किराया, मेंटेनेंस, इंजन और स्पेयर पार्ट्स जैसी अधिकांश सेवाओं का भुगतान डॉलर में करना होता है।
यात्रियों की बढ़ती संख्या भी नहीं दिला पाई राहत
हालांकि इस दौरान हवाई यात्रा में बढ़ोतरी देखी गई और यात्रियों की मांग तेज रही। इसके बावजूद कंपनी के बढ़ते खर्च के सामने राजस्व की बढ़ोतरी पर्याप्त नहीं रही। कई रूटों पर प्रतिस्पर्धा बढ़ने के चलते किराए भी ज्यादा बढ़ाना संभव नहीं था।
कंपनी का कहना है कि तिमाही के दौरान बेड़े के विस्तार, नए मार्गों की शुरुआत और कर्मचारियों से जुड़े खर्चों में भी वृद्धि हुई, जिसका असर नेट प्रॉफिट पर पड़ा।
भविष्य को लेकर उम्मीदें बरकरार
इंडिगो प्रबंधन का मानना है कि आने वाली तिमाहियों में आर्थिक माहौल बेहतर होने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय रूटों पर विस्तार, त्योहारी सीजन में बढ़ी यात्रा मांग और सामरिक व्यावसायिक कदमों के जरिए कंपनी आगे चलकर स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। साथ ही, फ्यूल कीमतों में संभावित स्थिरता और रुपए में सुधार से भी राहत मिलने की उम्मीद है।
निष्कर्ष:
हालांकि इंडिगो इस समय भारी घाटे के दबाव में है, लेकिन कंपनी की मजबूत बाज़ार हिस्सेदारी और यात्रियों के बीच उसकी लगातार बढ़ती लोकप्रियता यह संकेत देती है कि परिस्थितियां सुधरते ही वह फिर से अच्छे मुनाफे की राह पर लौट सकती है।
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