वाराणसी, धर्मनगरी काशी जहां दीपों का महासागर हर साल देव दीपावली पर उमड़ पड़ता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व केवल दीप जलाने का उत्सव नहीं, बल्कि आस्था, आध्यात्मिकता और दिव्यता का अनोखा संगम है। मान्यता है कि इस दिन स्वयं देवता स्वर्गलोक से उतरकर गंगा में स्नान करते हैं। इसी कारण इसे देवताओं की दीपावली कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने इसी दिन असुर त्रिपुरासुर का संहार किया था। उस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है। काशी में गंगा के दोनों तटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं यह दृश्य इतना अद्भुत होता है कि पूरा घाट क्षेत्र मानो तारों से सज उठता है।
स्थानीय पुजारी बताते हैं, देव दीपावली पर गंगा स्नान, दान-पुण्य और दीपदान का विशेष महत्व है। ऐसा करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और जीवन में समृद्धि आती है।
वाराणसी के घाटों दशाश्वमेध, अस्सी, राजेन्द्र प्रसाद और पंचगंगा घाट पर हजारों श्रद्धालु दीपदान करते हैं। पर्यटकों के लिए यह दृश्य एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है। शहर की गलियाँ, मंदिर और घाट रोशनी से जगमगा उठते हैं, और पूरा वातावरण “हर हर गंगे” के जयकारों से गूंजता है।
देव दीपावली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह संदेश है कि प्रकाश हमेशा अंधकार पर विजय पाता है। जब देवता भी गंगा में स्नान करने उतरते हैं, तब धरती पर हर हृदय में श्रद्धा का दीप जल उठता है।
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