अमेरिका में मेडिकल विज्ञान ने एक बड़ा कदम आगे बढ़ाते हुए जीन-एडिटेड सुअर की किडनी का इंसानों में प्रत्यारोपण (Xenotransplantation) का क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है। यह दुनिया भर में किडनी फेल्योर से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। न्यूयॉर्क स्थित एनवाईयू लैंगोन हेल्थ (NYU Langone Health) में इस अभूतपूर्व परीक्षण की शुरुआत की गई है। शुरुआत में यह ट्रायल छह मरीजों पर किया जाएगा, और सफलता मिलने पर इसे 50 मरीजों तक विस्तारित किया जाएगा। फिलहाल मरीजों की पहचान सुरक्षा कारणों से गुप्त रखी गई है।
क्यों करना पड़ा ऐसा प्रयोग?
किडनी प्रत्यारोपण के लिए दुनिया में दाताओं की भारी कमी है। कई मरीज वर्षों तक डायलिसिस पर निर्भर रहते हैं, लेकिन समय पर किडनी न मिलने के कारण उनकी जिंदगी जोखिम में पड़ जाती है।
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केवल अमेरिका में ही हर साल हजारों मरीज किडनी का इंतजार करते-करते दम तोड़ देते हैं।
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प्रतीक्षा सूची में नाम दर्ज मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
ऐसे में वैज्ञानिक वर्षों से ऐसे विकल्प खोजने में लगे थे, जिसकी मदद से प्रत्यारोपण के लिए किडनी की कमी दूर की जा सके। सुअरों को इस शोध के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि उनकी किडनी आकार और कार्यक्षमता के मामले में इंसानों से काफी मेल खाती है।
जीन-एडिटिंग कैसे मददगार?
इन ट्रायल्स में इस्तेमाल होने वाले सुअरों की किडनी को
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CRISPR जैसी जीन-एडिटिंग तकनीक से तैयार किया गया है
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जिससे प्रत्यारोपण के बाद मानव शरीर में रिजेक्शन की संभावना कम हो सके
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और किडनी मानव शरीर में बेहतर तरीके से काम कर सके
इसके साथ ही ऐसे जीन को भी हटाया गया है, जो वायरस ट्रांसफर का खतरा बढ़ा सकते थे।
अब तक की प्रमुख उपलब्धि
एनवाईयू की टीम ने बताया कि शुरुआती परिणाम उत्साहजनक रहे। एक मरीज में यह प्रत्यारोपण सफल रहा और किडनी ने शरीर में मूत्र उत्पादन शुरू कर दिया, जो ट्रांसप्लांट की सफलता का सबसे अहम संकेत माना जाता है। डॉक्टरों के अनुसार, आने वाले महीनों में इन मरीजों पर लगातार निगरानी रखी जाएगी ताकि यह देखा जा सके कि शरीर नई किडनी को कितने समय तक स्वीकार करता है।
भविष्य की उम्मीद
अगर यह ट्रायल सफल रहता है तो—
किडनी प्रत्यारोपण के लिए मानव दाताओं पर निर्भरता कम होगी
संगठित रूप से सुअरों से ट्रांसप्लांट अंग उपलब्ध हो सकेंगे
लाखों मरीजों को समय पर जीवनरक्षक उपचार मिल सकेगा
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अंगों की कृत्रिम कमी की समस्या को हल करने में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।
कुल मिलाकर, यह ट्रायल आधुनिक चिकित्सा जगत का वह अध्याय है, जो भविष्य में अनगिनत लोगों के जीवन की दिशा बदल सकता है। अब चिकित्सा समुदाय की निगाहें इस पर टिकी हैं कि यह प्रयोग कितना कारगर सिद्ध होता है और क्या यह मानव अंग प्रत्यारोपण का नया भविष्य गढ़ पाएगा।
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