भारतीय कहावतों में छिपे अर्थ आज भी समाज और राजनीति दोनों पर खरी उतरते हैं। इन्हीं में से एक चर्चित कहावत है कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा। यह कहावत आज भी उन परिस्थितियों में कही जाती है, जब अलग-अलग, असंबंधित या असमान चीज़ों को किसी तरह जोड़कर एक समूह या संगठन खड़ा कर दिया जाता है।
भाषाविद् डॉ. सुमित्रा मिश्रा बताती हैं कि इस कहावत की जड़ें लोककथाओं में हैं। भानुमति प्राचीन भारतीय कथाओं में एक ऐसी स्त्री मानी जाती है जिसने विभिन्न स्रोतों से टुकड़े-टुकड़े इकट्ठे कर एक परिवार या समूह बनाया। यह प्रतीक बन गया ऐसे संगठन का जो बिना ठोस योजना या एकरूपता के, बस जोड़-घटाकर खड़ा कर दिया गया हो।
राजनीति में प्रासंगिकता:
हाल के दिनों में विपक्षी दलों के गठबंधन को लेकर राजनीतिक गलियारों में यही कहावत खूब सुनाई दी। विश्लेषकों का कहना है कि जब विचारधाराएँ भिन्न हों, लक्ष्य अस्पष्ट हो, और फिर भी एकता का ढोंग दिखाया जाए, तो वही स्थिति बनती है भानुमति का कुनबा।
समाज और संस्कृति में भी उदाहरण:
सिर्फ राजनीति ही नहीं, आज की तेज़-रफ़्तार ज़िंदगी में भी यह कहावत प्रासंगिक है। कभी स्कूल के प्रोजेक्ट्स में, कभी किसी रियलिटी शो की टीमों में जब अलग-अलग स्वभाव और सोच के लोग एक साथ किसी मजबूरी या मौके के कारण आते हैं, तो परिणाम अक्सर भानुमति के कुनबे जैसा ही होता है बाहर से बड़ा, पर भीतर से बिखरा।
विशेषज्ञ की राय:
सामाजिक चिंतक प्रो. हरिशंकर तिवारी कहते हैं यह कहावत हमें सिखाती है कि केवल जोड़ने से संगठन नहीं बनता, एकरूपता और लक्ष्य का होना भी ज़रूरी है। वरना ‘भानुमति का कुनबा’ जितनी जल्दी जुड़ता है, उतनी ही जल्दी बिखर जाता है।
समय बदला है, तकनीक बढ़ी है, पर कहावतों की गहराई अब भी उतनी ही जीवंत है। कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा । सिर्फ शब्द नहीं, यह आज की असंगठित एकताओं का आईना है।
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