Yusuf Pathan Controversy: ‘अदीना मस्जिद’ पर पोस्ट से मचा बवाल, BJP ने बताया ‘आदिनाथ मंदिर’

विवाद की शुरुआत

पूर्व भारतीय क्रिकेटर और टीएमसी सांसद यूसुफ पठान के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने अपने एक्स (Twitter) अकाउंट पर पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में स्थित ‘अदीना मस्जिद’ (Adina Mosque) की तस्वीर साझा की और इसे “भारत की ऐतिहासिक धरोहर” बताया। उनके इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई।

‘अदीना मस्जिद’ या ‘आदिनाथ मंदिर’?

यूसुफ पठान द्वारा की गई पोस्ट के तुरंत बाद, कई सोशल मीडिया यूजर्स ने दावा किया कि जिस अदीना मस्जिद की बात की जा रही है, वह दरअसल एक प्राचीन ‘आदिनाथ मंदिर’ के ऊपर बनाई गई थी। इन यूजर्स ने अपने दावे के समर्थन में कई ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक संदर्भ भी साझा किए। कुछ लोगों ने कहा कि मस्जिद की संरचना और दीवारों पर मौजूद नक्काशी हिंदू मंदिर जैसी प्रतीत होती है।

दूसरी ओर, कुछ यूजर्स ने इन दावों को पूरी तरह झूठा और भ्रामक बताया। उनका कहना है कि अदीना मस्जिद को 14वीं शताब्दी में बंगाल सल्तनत के सुल्तान सिकंदर शाह ने बनवाया था, और इसका किसी मंदिर से कोई संबंध नहीं है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

इस विवाद में राजनीति भी जुड़ गई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कुछ नेताओं ने यूसुफ पठान पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें “इतिहास की सच्चाई जानकर ही बयान देना चाहिए।” बीजेपी ने इसे “आदिनाथ मंदिर की ऐतिहासिक विरासत” बताते हुए एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) से इस पर स्पष्टीकरण मांगा है।

वहीं, तृणमूल कांग्रेस (TMC) समर्थकों और यूसुफ पठान के फैंस ने बीजेपी के आरोपों को “राजनीतिक रंग देना” करार दिया। उनका कहना है कि यूसुफ पठान ने केवल भारत की ऐतिहासिक धरोहरों को सम्मान देने की बात कही थी, इसमें कोई राजनीतिक या धार्मिक उद्देश्य नहीं था।

अदीना मस्जिद का ऐतिहासिक महत्व

अदीना मस्जिद बंगाल के मालदा में स्थित है और इसे भारत की सबसे बड़ी मध्यकालीन मस्जिदों में से एक माना जाता है। इसका निर्माण 1368 ईस्वी में कराया गया था और इसमें इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली की झलक देखने को मिलती है। यह मस्जिद आज भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है।

निष्कर्ष

यूसुफ पठान की एक साधारण पोस्ट ने सोशल मीडिया पर इतिहास और आस्था से जुड़ी बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। जहां कुछ लोग इसे मंदिर से जुड़ी विरासत मानते हैं, वहीं दूसरे इसे इस्लामी स्थापत्य कला का प्रतीक बताते हैं। फिलहाल, इस विवाद पर एएसआई या सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

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