अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक सामरिक संतुलन के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने संकेत दिया है कि अमेरिका लगभग 33 साल बाद परमाणु हथियारों का परीक्षण फिर से शुरू कर सकता है। ट्रंप का कहना है कि यह कदम रूस और चीन की बढ़ती परमाणु क्षमता का मुकाबला करने के उद्देश्य से उठाना अनिवार्य हो गया है। उनके इस बयान के बाद भू-राजनीतिक हलकों में चिंता और बहस दोनों तेज़ हो गई है।
वर्तमान समय में रूस और चीन लगातार अपने रक्षा तंत्र और न्यूक्लियर बॉम्ब शेल्फ को आधुनिक बनाने में जुटे हुए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों देश ने प्लूटोनियम आधारित एडवांस्ड परमाणु हथियारों के परीक्षण की संभावनाएँ बढ़ाई हैं। ऐसे में ट्रंप ने कहा कि अमेरिका अब चुप नहीं बैठेगा। “अगर रूस और चीन परीक्षण कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?” ट्रंप का यह बयान अमेरिकी सैन्य रणनीति में संभावित बड़े बदलाव का संकेत देता है।
यह घोषणा उस समय की गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करने वाले थे। जबकि बैठक का आधिकारिक उद्देश्य व्यापार और वैश्विक सामरिक मुद्दों पर चर्चा बताया गया था, लेकिन ट्रंप के इस बयान ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह वक्तव्य एक राजनीतिक दबाव रणनीति भी हो सकता है, जिससे अमेरिका अपनी शर्तों को मजबूत करना चाहता है।
साल 1992 के बाद से अमेरिका ने पूर्ण पैमाने पर कोई भी परमाणु परीक्षण नहीं किया है। इसके बाद से अमेरिका “सब-कंप्रिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी” (CTBT) के तहत केवल कंप्यूटरीकृत सिमुलेशन और लेबोरेटरी आधारित परीक्षणों पर निर्भर रहा है। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन का कहना है कि असली युद्धक क्षमता का अंदाज़ा लगाने के लिए वास्तविक परीक्षण आवश्यक हो गए हैं।
हालांकि, कई परमाणु विशेषज्ञ इस कदम का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि परीक्षण शुरू होते ही दुनिया में हथियारों की दौड़ तेज़ हो जाएगी और वैश्विक शांति पर खतरा मंडराएगा। साथ ही, इसके पर्यावरणीय खतरों और राजनीतिक परिणामों को भी ध्यान में रखना होगा।
फिर भी, ट्रंप के बयान ने यह साफ कर दिया है कि अमेरिका अब किसी भी रूप में पीछे नहीं रहना चाहता। आने वाले समय में इस प्रस्ताव पर अमेरिकी कांग्रेस, पेंटागन और वैश्विक सुरक्षा संगठनों के बीच गहन चर्चा होने की संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात को लेकर चिंतित है कि कहीं यह निर्णय एक नए शीतयुद्ध (Cold War) जैसी स्थिति न पैदा कर दे।
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