Supreme Court सख्त: डिजिटल अरेस्ट मामलों की जांच CBI को सौंपने पर विचार, सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी


 देशभर में तेजी से बढ़ते डिजिटल अरेस्ट (Digital Arrest) स्कैम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने इस तरह के मामलों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपने के पक्ष में अपनी राय जताते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। अदालत ने कहा है कि यह मामला अब राष्ट्रीय स्तर पर जांच का विषय बन चुका है क्योंकि साइबर ठग देशभर में एक समान तरीके से लोगों को निशाना बना रहे हैं।

क्या है डिजिटल अरेस्ट स्कैम?

डिजिटल अरेस्ट या साइबर अरेस्ट स्कैम में ठग खुद को पुलिस अधिकारी, सरकारी एजेंसी या जांच अधिकारी बताकर कॉल या वीडियो कॉल के जरिए लोगों को डराते हैं। वे कहते हैं कि व्यक्ति किसी अपराध, मनी लॉन्ड्रिंग या अवैध गतिविधि में शामिल है और उसे “डिजिटल रूप से गिरफ्तार” किया जा रहा है। डराकर वे पीड़ित से ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करवाते हैं या उसके बैंक अकाउंट और निजी जानकारी हासिल कर लेते हैं। देशभर में इस तरह की ठगी के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें आम नागरिक, कारोबारी, और यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी फंस चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर समस्या पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। अदालत ने आदेश दिया कि प्रत्येक राज्य यह बताए कि अब तक डिजिटल अरेस्ट या साइबर ठगी के कितने मामले दर्ज किए गए हैं, कितनी जांचें चल रही हैं, और अपराधियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि राज्य सरकारों ने साइबर अपराध रोकने और लोगों को जागरूक करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।

CBI जांच की संभावना पर संकेत

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि यदि राज्यों की रिपोर्ट में समन्वय की कमी पाई गई या जांच में लापरवाही नजर आई, तो ऐसे मामलों की केंद्रीय जांच एजेंसी CBI को जांच सौंपने पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। अदालत ने कहा कि यह एक राष्ट्रीय स्तर का साइबर अपराध नेटवर्क है, जिसे केवल समन्वित कार्रवाई से ही रोका जा सकता है।

अगली सुनवाई 3 नवंबर को

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर 2025 को निर्धारित की है। तब तक सभी राज्यों को अपनी रिपोर्ट दाखिल करनी होगी। अदालत ने यह भी संकेत दिया है कि अगर किसी राज्य ने जानकारी नहीं दी, तो उसे जवाबदेह ठहराया जाएगा।

यह मामला देश में बढ़ते साइबर अपराधों के खिलाफ सख्त और समन्वित कार्रवाई की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख नागरिकों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर न्यायपालिका की गहरी चिंता को दर्शाता है।

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